New Delhi: पश्चिमी देशों सहित दुनियाभर में क्यों बढ़ रहे हैं हिंदुओं पर हमले, क्या हिंदू होना अपराध है?

New Delhi: पश्चिमी देशों सहित दुनियाभर में क्यों बढ़ रहे हैं हिंदुओं पर हमले, क्या हिंदू होना अपराध है?

दुनियाभर में भले हिंदुओं की तादाद बहुत ज्यादा हो लेकिन जब कोई पद मिलने की बात आती है तो सबसे पहले हिंदू को पीछे किया जाता है, जब कोई सम्मान देने की बात आती है तो सबसे पहले हिंदू को पीछे किया जाता है। ऐसे अनेकों उदाहरण विश्व इतिहास में भरे पड़े हैं जब इतनी बड़ी आबादी होने के बावजूद हिंदुओं को भेदभाव का शिकार होना पड़ता है। जो विकसित और पश्चिमी देश भारत को तीसरी दुनिया का देश बताते हुए यहां के मानवाधिकारों के बारे में समय समय पर पक्षपाती रिपोर्ट जारी करते हैं वह खुद हिंदुओं के साथ बहुत भेदभाव करते हैं। ब्रिटेन में तो जब ऋषि सुनक प्रधानमंत्री पद की दौड़ में थे तब उनके मूल और धर्म को लेकर उन पर निशाना साधा गया था। अब ऋषि सुनक भले प्रधानमंत्री बन गये हैं लेकिन उनके देश में हिंदुओं के साथ भेदभाव जारी है। यही नहीं, अमेरिका में भी हिंदुओं के साथ भेदभाव की खबरें हाल में सामने आई हैं।

सबसे पहले ब्रिटेन की बात करें तो आपको बता दें कि भारत के हरियाणा राज्य के छात्र करण कटारिया ने दावा किया है कि भारतीय और हिंदू पहचान के चलते उसकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने के लिए जानबूझकर चलाये गये एक अभियान के परिणामस्वरूप लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (एलएसई) छात्र संघ चुनावों के लिए उसे अयोग्य करार दे दिया गया। हम आपको बता दें कि हरियाणा निवासी छात्र करण कटारिया लंदन के इस विश्वविद्यालय में कानून में स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रहा है। कटारिया ने कहा कि वह अन्य छात्रों के समर्थन से एलएसई छात्र संघ चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित हुआ। हालांकि, उसे पिछले हफ्ते अयोग्य करार दे दिया गया। उसका मानना है कि उसके खिलाफ लगाये गये आरोप बेबुनियाद हैं और उसे अपना पक्ष पूरी तरह से रखने का मौका नहीं दिया गया। उसने कहा, ‘‘दुर्भाग्य से कुछ लोग एक भारतीय-हिंदू को एलएसई छात्र संघ का नेतृत्व करते नहीं देखना चाहते थे और मेरे चरित्र तथा पहचान को दागदार करने की कोशिश की...।’’ 22 वर्षीय करण कटारिया ने कहा, ‘‘जब मैंने एलएसई में अपने स्नातकोत्तर की पढ़ाई शुरू की थी, तब मुझे पूरी उम्मीद थी कि मैं छात्र कल्याण के लिए अपने जुनून को पूरा करूंगा। लेकिन मेरे सपने उस वक्त बिखर गये, जब भारतीय और हिंदू पहचान के चलते मेरी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने के लिए जानबूझ कर तैयार किया गया एक अभियान शुरू किया गया।’’

हम आपको बता दें कि करण कटारिया एक मध्यवर्गीय कृषक पृष्ठभूमि से है और खुद को अपने परिवार में विश्वविद्यालय स्नातक की पहली पीढ़ी बताता है। एलएसई लॉ स्कूल से स्नातकोत्तर की पढ़ाई के लिए पिछले साल लंदन आने के शीघ्र बाद उसे अपने समकक्ष छात्रों का अकादमिक प्रतिनिधि चुना गया। साथ ही, उसे ब्रिटेन के नेशनल यूनियन फॉर स्टूडेंट्स के लिए प्रतिनिधि भी चुना गया। करण ने कहा, ‘‘सभी राष्ट्रीयता वाले छात्रों से अपार समर्थन मिलने के बावजूद, मुझे एलएसई छात्र संघ के महासचिव चुनाव के लिए अयोग्य करार दे दिया गया। मुझ पर होमोफोबिक (समलैंगिक लोगों को नापसंद करने वाला), इस्लामोफोबिक (इस्लाम के प्रति बैर रखने वाला) और हिंदू राष्ट्रवादी होने के आरोप लगाये गये।’’ भारतीय छात्र ने कहा, ‘‘...नफरत भरे अभियान शुरू करने वालों की पहचान करने या दंडित करने के बजाय एलएसई छात्र संघ ने मेरा पक्ष सुने बगैर या मुझे मिले वोट का खुलासा किये बगैर मुझे अयोग्य करार दे दिया।’’ करण कटारिया ने कहा, ‘‘यहां तक कि मतदान के आखिरी दिन, भारतीय छात्रों को डराया-धमकाया गया और उनकी राष्ट्रीयता एवं हिंदू धार्मिक पहचान को लेकर उन्हें निशाना बनाया। छात्रों ने यह मुद्दा उठाया, लेकिन एलएसई छात्र संघ ने धौंस देने वाले के खिलाफ कार्रवाई नहीं की।’’

इस बीच, एलएसई छात्र संघ ने एक बयान जारी कर कहा कि यह निष्पक्ष और लोकतांत्रिक तरीके से संचालित होता है तथा किसी भी तरह के उत्पीड़न को कतई बर्दाश्त नहीं करने का उसका कड़ा रुख है। बयान में कहा गया है, ‘‘दुर्भाग्य से इस साल चुनाव नियमों का एक उम्मीदवार ने उल्लंघन किया, जिसके परिणामस्वरूप एलएसई छात्र संघ को इस साल महासचिव पद के लिए नेतृत्व की दौड़ से उसे अयोग्य करार देने का कठिन फैसला लेना पड़ा।

वहीं अमेरिका में हिंदुओं के खिलाफ भेदभाव की बात करें तो आपको बता दें कि कैलिफोर्निया में जातिगत भेदभाव पर प्रतिबंध लगाने के वास्ते एक विधेयक पेश करने वाली डेमोक्रेटिक पार्टी की सीनेटर के खिलाफ भारतीय-अमेरिकी समुदाय के लोगों ने शांतिपूर्ण रैली निकाली। भारतीय अमेरिकी समुदाय का कहना है कि अगर यह विधेयक पारित हो जाता है, तो यह दक्षिण एशियाई और अन्य अश्वेत लोगों के नागरिक अधिकारों का उल्लंघन होगा और उन्हें समान सुरक्षा तथा उचित प्रक्रिया से वंचित करेगा। हम आपको बता दें कि स्टेट सीनेटर आइशा वहाब ने 22 मार्च को यह विधेयक पेश किया था। विधेयक पारित होने पर अमेरिका का सबसे अधिक आबादी वाला राज्य कैलिफोर्निया जाति-आधारित पूर्वाग्रह को खत्म करने वाला देश का पहला राज्य बन सकता है। सीनेटर आइशा वहाब राज्य के सदन के लिए चुनी गई पहली मुस्लिम एवं अफगानिस्तानी अमेरिकी हैं।

इस विधेयक के खिलाफ ‘कोलेशन ऑफ हिंदूस ऑफ नॉर्थ अमेरिका’ (सीओएचएनए) ने एक शांतिपूर्ण रैली का आयोजन किया। इसमें शामिल हुए लोगों ने कहा कि सीनेटर वहाब द्वारा पेश किया गया कानून हर जाति, धर्म और वंश के लोगों के लिए समानता और न्याय के मौलिक सिद्धांतों के खिलाफ है। फ्रेमोंट शहर के निवासी एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र में कार्यरत हर्ष सिंह ने कहा कि यह विधेयक हिंदुओं और एशियाई मूल के लोगों के खिलाफ पूर्वाग्रह उत्पन्न करता है, जो नफरत को बढ़ाएगा और उनके बच्चों को निशाने पर लाएगा। इस कानून के खिलाफ पोस्टर और बैनर प्रदर्शित करते हुए, प्रदर्शनकारियों ने कैलिफोर्निया में सदन के सदस्यों से अपील की कि वे हिंदुओं को अलग-थलग न करें या यह न मान लें कि वे केवल अपने जन्म के कारण दमनकारी कृत्यों के दोषी हैं। इन लोगों ने शांतिपूर्ण तरीके से सीनेटर वहाब के कार्यालय के सामने रैली निकाली और कहा कि कानून एसबी-403 कैलिफोर्निया में ‘‘जाति’’ को एक संरक्षित श्रेणी के रूप में जोड़ने का प्रस्ताव करता है। उन्होंने कहा कि यह अप्रमाणित और पक्षपाती आंकड़ों पर आधारित है जो दक्षिण एशियाई लोगों के साथ-साथ जापानी, अफ्रीकी तथा दक्षिण अमेरिकी समुदायों के अश्वेत लोगों को लक्षित करता है।

कोलेशन ऑफ हिंदूस ऑफ नॉर्थ अमेरिका के अनुसार, 'अगर यह विधेयक पारित हो जाता है, तो यह दक्षिण एशियाई और अन्य अश्वेत लोगों के नागरिक अधिकारों का उल्लंघन होगा और उन्हें समान सुरक्षा तथा उचित प्रक्रिया से वंचित करेगा।’’ गौरतलब है कि ऐसा ही एक कानून सिएटल में भी लागू किया गया है और वह जाति आधारित भेदभाव को प्रतिबंधित करने वाला अमेरिका का पहला शहर है।

वहीं, अमेरिका में हिंदुओं के समर्थन में भी एक खबर आई है लेकिन यह खबर तब आई जब हिंदुओं ने एकजुट होकर अपनी ताकत दिखाई। अमेरिका की जॉर्जिया असेम्बली ने ‘हिंदूफोबिया’ (हिंदू धर्म के प्रति पूर्वाग्रह) की निंदा करने वाला एक प्रस्ताव पारित किया है। यह इस तरह का कानूनी उपाय करने वाला पहला अमेरिकी राज्य बन गया है। हिंदूफोबिया और हिंदू विरोधी कट्टरता की निंदा करते हुए प्रस्ताव में कहा गया है कि हिंदू धर्म दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे पुराना धर्म है और दुनिया के 100 से ज्यादा देशों में 1.2 अरब लोग इस धर्म को मानते हैं। प्रस्ताव में कहा गया कि यह धर्म स्वीकार्यता, आपसी सम्मान एवं शांति के मूल्यों के साथ विविध परंपराओं एवं आस्था प्रणालियों को सम्मिलित करता है। इस प्रस्ताव को अटलांटा की फोरसाइथ काउंटी से जनप्रतिनिधि लॉरेन मैक्डोनल्ड और टॉड जोन्स ने पेश किया था। हम आपको बता दें कि अटलांटा में बड़ी संख्या में हिंदू और भारतीय-अमेरिकी समुदाय के लोग रहते हैं। प्रस्ताव में कहा गया है कि अमेरिकी-हिंदू समुदाय का चिकित्सा, विज्ञान एवं इंजीनियरिंग, सूचना प्रौद्योगिकी, आतिथ्य, वित्त, शिक्षा, विनिर्माण, ऊर्जा और खुदरा व्यापार जैसे विविध क्षेत्रों में प्रमुख योगदान रहा है।

इसमें कहा गया है कि योग, आयुर्वेद, ध्यान, भोजन, संगीत और कला के क्षेत्र में समुदाय के योगदान ने सांस्कृतिक ताने-बाने को समृद्ध किया है और इसे अमेरिकी समाज में व्यापक रूप से अपनाया गया है तथा इसने लाखों लोगों के जीवन को सुधारा है। प्रस्ताव में कहा गया है कि बीते कुछ साल में देश के कई हिस्सों में हिंदू-अमेरिकियों के खिलाफ नफरती अपराध के कई मामले दर्ज हुए हैं। प्रस्ताव के मुताबिक, कुछ ऐसे ‘‘शिक्षाविदों ने हिंदूफोबिया को भड़काया है जो हिंदू धर्म को नष्ट करने का समर्थन करते हैं और इसके पवित्र ग्रंथों एवं सांस्कृतिक प्रथाओं पर हिंसा एवं उत्पीड़न को बढ़ावा देने’’ का आरोप लगाते हैं। इस प्रस्ताव संबंधी कदम की अगुवाई कोलेशन ऑफ हिंदूस ऑफ नॉर्थ अमेरिका की अटलांटा इकाई ने की है। उसने 22 मार्च को ‘जॉर्जिया स्टेट कैपिटल’ में ‘हिंदू एडवोकेसी डे’ का आयोजन किया था। इसमें करीब 25 जनप्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था जिसमें रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी, दोनों के सदस्य शामिल थे। 

बहरहाल, विश्व इतिहास दर्शाता है कि एकजुटता के साथ ही किसी भी लड़ाई को जीता जा सकता है। हिंदुओं पर हो रहे प्रहार का मुकाबला एकता और शांति के साथ ही किया जा सकता है। वैसे हिंदुओं के लिए यह तो चिंता का विषय है ही कि दुनिया में सर्वाधिक हिंदू आबादी वाला देश भारत जोकि एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है वहां भी कई बार ऐसी स्थितियां पैदा हो जाती हैं कि हिंदुओं को लगने लगता है कि बहुसंख्यक होने से अच्छा तो अल्पसंख्यक होना है। 


 pzozap
yhfee@chitthi.in, 10 June 2023

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