कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने लंदन में यह इच्छा जाहिर की थी कि अमेरिका और यूरोप के देश खुद को लोकतंत्र का रक्षक मानते हैं। वे ध्यान दें कि एक बड़े देश (भारत) के लोकतंत्र में क्या हो रहा है? बीते दिनों राहुल गांधी के विदेशी धरती पर दिए बयान पर प्रतिक्रिया हुई। जब अमेरिका और जर्मनी की सरकारों ने राहुल गांधी की संसद सदस्यता खारिज होने पर बयान दिया। वास्तव में गुजरात की एक अदालत द्वारा राहुल गांधी को मान हानि के मामले में सजा सुनाई गई। फलस्वरूप नियमानुसार उनकी संसद सदस्यता खारिज हो गई। राहुल गांधी के लंदन में बयान पर देश में जमकर राजनीति हो रही है। भारतीय जनता पार्टी राहुल गांधी से लंदन में दिए गए बयान के लिए संसद से लेकर सड़क तक माफी मांगने की मांग कर रही है।
मामले ने तूल तब पकड़ा जब राहुल गांधी की सदस्यता समाप्त होने पर प्रतिक्रया देते हुए जर्मनी के विदेश मंत्रालय की प्रेस ब्रीफिंग में अपेक्षा की कि राहुल गांधी पर कार्रवाई करते हुए न्यायिक स्वतंत्रता के मानकों और बुनियादी लोकतांत्रिक सिद्धांतों का ध्यान रखा जाए। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने जर्मनी का आभार जताया कि उसने भारत में लोकतंत्र के साथ किए जा रहे समझौतों पर ध्यान दिया है। इस हफ्ते की शुरुआत में अमेरिकी विदेश विभाग के प्रधान प्रवक्ता वेदांत पटेल ने कहा था कि अमेरिका भारतीय अदालतों में राहुल गांधी के मामले को देख रहा है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी की सांसदी तकनीकी और संवैधानिक तौर से खारिज की गई है। राहुल गांधी से पहले भी दो दर्जन से अधिक सांसदों और विधायाकों की सदस्यता खारिज हो चुकी है। लेकिन किसी की खारिज सांसदी पर, किसी भी देश ने, हमें लोकतंत्र और न्यायिक स्वतंत्रता का पाठ नहीं पढ़ाया। जर्मनी पर तानाशाह हिटलर ने भी शासन किया था, लिहाजा उसकी परंपराओं में तानाशाही है। वह दुनिया के सबसे बड़े और प्राचीनतम लोकतंत्र भारत को क्या नसीहत दे सकता है? विदेशी दखल की उनकी इच्छा आंशिक तौर पर पूरी हो गई है। जब से देश में मोदी सरकार सत्ता में आई है। कांग्रेस किसी न किसी बहाने देश में लोकतंत्र और लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सवाल खड़े करती रही है। राहुल गांधी देश-विदेश में भारत में लोकतंत्र की हत्या और गला घोंटने से जुड़े बयान देते रहे हैं।
वर्ष 2021 में अमेरिकी संस्था फ्रीडम हाउस ने भारत को ‘स्वतंत्र लोकतंत्र’ की श्रेणी से हटाकर ‘आंशिक तौर पर स्वतंत्र लोकतंत्र’ की श्रेणी में डाला गया था। इससे पूर्व स्वीडन की वी-डेम इंस्टीट्यूट ने भी ऐसी ही एक रिपोर्ट जारी की थी। इन दोनों रिपोर्टों के आने बाद भारत सरकार की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया तो नहीं आई थी लेकिन अब भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इन रिपोर्टों को ‘पाखंड’ कहा था। मार्च 2021 में एक न्यूज चैनल के कार्यक्रम में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा था, ‘हमारी आस्थाएं हैं, मूल्य हैं, लेकिन हम धार्मिक पुस्तक हाथ में लेकर पद की शपथ नहीं लेते, हमें ऐसा करने वालों से सर्टिफिकेट लेने की जरूरत नहीं है।’ इस सारे घटनाक्रम और विदेशी रिपोर्ट की पृष्ठभूमि में भी कांग्रेस नेताओं का भारतीय लोकतंत्र का लेकर दुष्प्रचार ही मूल कारण था।
राहुल गांधी की सदस्यता खारिज होने के प्रकरण की बात की जाए तो जब सर्वोच्च अदालत ने दो साल की घोषित न्यायिक सजा पर संसद और विधानसभा सदस्यता रद्द करने का फैसला सुनाया था, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की कैबिनेट ने एक अध्यादेश पारित किया था। वह न्यायपालिका का प्रत्युत्तर था। अध्यादेश के जरिए दागी और सजायाफ्ता नेताओं को बचाने के प्रावधान किए गए थे। राहुल गांधी अचानक प्रेस क्लब ऑफ इंडिया गए और उस अध्यादेश की प्रतिलिपि फाड़ते हुए बोले-‘नॉनसेंस!’ नतीजा यह हुआ कि कैबिनेट को वह अध्यादेश वापस लेने का निर्णय लेना पड़ा। आज अध्यादेश कानूनी तौर पर लागू होता, तो राहुल की सांसदी बच जाती। बहरहाल अब सर्वोच्च अदालत का फैसला लागू है। उसके तहत 15-20 नेताओं की सांसदी रद्द की जा चुकी है।
दरअसल हम लंबे समय से सुन रहे हैं कि देश में संसद, न्यायालय, मीडिया, लोकतंत्र, संविधान खत्म हो रहे हैं और तानाशाही से सरकार चलाई जा रही है। यह अदालत की अवमानना का भी केस बनता है। सवाल है कि आज यह कैसे संभव है? यदि लोकतंत्र और संविधान को बंधक बनाकर खत्म करने की कोशिश की गई, तो राहुल की दादी इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री काल के दौरान की गई, जब 1975 में देश में आपातकाल लागू किया गया था। प्रधानमंत्री के तौर पर इंदिरा गांधी ने भी विदेशी धरती पर भारत के खिलाफ कभी, कुछ नहीं बोला। राहुल दादी से ही सबक सीख लें। भारत में संविधान, कानून, अदालत और औसत नागरिक के मौलिक अधिकार सुरक्षित हैं। तय समय पर पंचायत से लेकर संसद तक के चुनाव कराए जाते हैं। वैचारिक, राजनीतिक, धार्मिक आजादी भी है।
राहुल के सामने कानूनी विकल्प आज भी हैं। उन्हें भारत के कानून और विदेशी दखल में से एक विकल्प चुनना है। वह अदालत में चुनौती अब भी दे सकते हैं। उन्हें अदालत में जाना भी चाहिए, क्योंकि पटना उच्च न्यायालय ने 12 अप्रैल को पेश होने का नोटिस भी भेजा है। ‘मोदी उपनाम वाले ही चोर..’ वाले संदर्भ में भाजपा सांसद एवं बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने भी मानहानि का केस किया था। राहुल अदालत में गुहार लगा कर ऐसे सभी मामलों की एक ही जगह सुनवाई का अनुरोध कर सकते हैं। अदालत के जरिए ही जिस तरह लक्षद्वीप के सांसद मुहम्मद फैजल की सांसदी बहाल की गई है, उसी तरह राहुल के संदर्भ में भी संभव है।
मेरा ही नहीं करोड़ों देशवासियों का विश्वास है कि भारत एक लोकतंत्र है और सबसे जीवंत उदाहरण है। यदि कुछ लोग बेचैन हैं, छटपटा रहे हैं, तो यह उनकी कुंठा हो सकती है। देश की जनता ने भी कमोबेश उन्हें खारिज कर दिया है। बहरहाल भारत तो प्राचीन, लोकतांत्रिक सभ्यता और संस्कृति वाला राष्ट्र रहा है। कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद राहुल गांधी कुछ भी बयान दे सकते हैं, यह कोई नई बात नहीं है। यदि वह 2004 से लगातार लोकसभा सांसद हैं, तो सिर्फ लोकतंत्र के कारण।
अमेरिका और यूरोपीय देश मानवाधिकार, अल्पसंख्यक सुरक्षा और अभिव्यक्ति की आजादी संबंधी नसीहतें भारत सरकार को देते रहे हैं। ऐसे में राहुल गांधी के हित में जर्मनी का बयान कितना कारगर साबित हो सकता है? भारतीय लोकतंत्र को कौन सबक सिखा सकता है? भारत के सभी बड़े देशों से अच्छे रिश्ते हैं। यह बीते दशकों वाला भारत नहीं है। भारत आज विश्व की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था है। राहुल गांधी का मामला भारत का अपना अंदरूनी मामला है। एक और विनम्र सलाह राहुल गांधी के नाम है कि चाटुकार कांग्रेसियों पर जरा अंकुश लगाएं। अब कांग्रेस प्रवक्ता राहुल गांधी की तुलना भगवान श्रीराम से कर रहे हैं और ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को राम का वनवास करार दिया जा रहा है। इससे राहुल की सांसदी बहाल नहीं हो सकती और न ही पार्टी का वोट बैंक विस्तार पा सकता है।
2024 के आम चुनाव में अब अधिक समय शेष नहीं है। कांग्रेस को जन हित से जुड़े मुद्दों को एक सार्थक अभियान के जरिए लेकर देशवासियों के मध्य जाना होगा। देशवासियों का विश्वास प्रापत करने के लिए उसक कड़े परिश्रम करना होगा। उसे जनहित के मसलों पर सरकार को घेरना है। साथ ही अन्य विपक्षी दलों को उसे यह विश्वास दिलाना है कि वही वो दल है, जो विपक्ष का नेतृत्व कर सकता है और उसके बिना मोदी सरकार को सत्ता से हटा पाना मुश्किल है। राहुल गांधी ने ब्रिटेन में भारत के लोकतंत्र पर जो सवाल उठाए, कटघरे में खड़ा किया और लोकतंत्र की बहाली के लिए विदेशी हस्तक्षेप का आग्रह किया, वह यथार्थ से परे की निराशाजनक कुंठा है।