एक पुरानी कहावत है कि चोर चोरी से जाए हेराफेरी से ना जाए। चीन एक तरफ तो भारत को उल्लेखनीय उभरती शक्ति मानते हुए द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने की बात कही है। वहीं उसने अपना दूसरा चेहरा दिखाकर बता दिया कि वो अभी भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। दरअसल, चीन ने अरुणाचल प्रदेश पर फिर से अपने दावे पर जोर देने के मकसद से इस भारतीय राज्य के लिए चीनी, तिब्बती, प्रियन अक्षरों में नामों की तीसरी लिस्ट जारी की है। चीन के नागरिक मामलों के मंत्रालय ने अरुणाचल प्रदेश के लिए 11 जगहों के मानकीकृत नाम जारी किए हैं। आपको बता दें कि चीन की इसी तरह की हरकतों पर भारत दो टूक जवाब दे चुका है। भारत पहले भी अरुणाचल प्रदेश में जगहों के नाम बदलने के चीनी कदम को खारिज कर चुका है और वो कहता रहा है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग रहा है और हमेशा रहेगा। गढ़े गए नामों से ये तथ्य नहीं बदलता।
ड्रैगन हमेशा से अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा करता रहा है। भारत के किसी भी नेता के अरुणाचल प्रदेश का दौरा करने पर वो चिढ़ जाता है। लेकिन अब उसने तो दो कदम आगे बढ़ाते हुए अपने भौगोलिक नक्शे पर अरुणाचल की जगहों के नाम भी बदल दिए हैं। चीन ने अरुणाचल प्रदेश के लिए चीनी, तिब्बती और पिनयिन अक्षरों में नामों का तीसरा सेट जारी किया। इस कदम को शी जिनपिंग के नेतृत्व वाले देश के भारतीय राज्य पर अपने दावे पर फिर से जोर देने के प्रयासों के रूप में देखा जा रहा है। चीन 2017 से अब तक तीन बार अपने भौगोलिक नक्शे पर भारतीय जगहों का नाम बदलने का दुस्साहस कर चुका है। लेकिन अप्रैल को जारी चीन के नए लिस्ट में अरुणाचल के 11 इलाकों के नाम बदले हुए हैं। जिनमें दो जमीनी और दो रिहायिशी इलाके हैं। जबकि पांच पहाड़ियांऔर दो नदियों के नाम भी शामिल है। चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा मानता है।
भारत ने क्या कहा?
चीनी सरकार द्वारा अरुणाचल प्रदेश में 11 स्थानों के मानकीकृत नामों की सूची जारी करने के दो दिन बाद, भारतीय अधिकारियों ने मंगलवार (4 अप्रैल) को कहा कि उन्होंने इस कदम को एकमुश्त खारिज कर दिया है। भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने एक बयान में स्पष्ट रूप से कहा कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है और हमेशा रहेगाउन्होंने कहा कि हमने ऐसी रिपोर्ट देखी हैं। यह पहली बार नहीं है जब चीन ने इस तरह का प्रयास किया है। हम इसे सिरे से खारिज करते हैं। अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न, अविच्छेद्य अंग है। चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश में स्थानों का नाम बदलने पर विदेश मंत्रालय ने कहा कि आविष्कार किए गए नामों को सौंपने का प्रयास इस वास्तविकता को नहीं बदलेगा। यह पहली बार नहीं है जब चीन ने ऐसा कुछ किया है। इसने 2017 और 2021 में अरुणाचल प्रदेश में स्थानों के मानकीकृत नामों के दो अलग-अलग सेट जारी किए।
चीन उन जगहों को नाम क्यों दे रहा है जो भारत में हैं?
चीन अरुणाचल प्रदेश के लगभग 90,000 वर्ग किमी के क्षेत्र को अपने क्षेत्र के रूप में दावा करता है। यह क्षेत्र को चीनी भाषा में ज़ंगनान कहता है और दक्षिण तिब्बत के लिए बार-बार संदर्भ देता है। चीनी मानचित्र अरुणाचल प्रदेश को चीन के हिस्से के रूप में दिखाते हैं, और कभी-कभी इसे तथाकथित अरुणाचल प्रदेश के रूप में संदर्भित करते हैं। चीन भारतीय क्षेत्र पर इस एकतरफा दावे को रेखांकित करने के लिए समय-समय पर प्रयास करता है। अरुणाचल प्रदेश में स्थानों को चीनी नाम देना उसी प्रयास का हिस्सा है।
पिछली सूचियों में किन स्थानों को चित्रित किया गया था?
पहली सूची 14 अप्रैल, 2017 को सामने आई, जिसमें राज्य के छह स्थान शामिल थे। चीन के नागरिक मामलों के मंत्रालय ने उस समय कहा कि मानकीकृत नामों का पहला बैच जारी कर रहा था। चीनी सरकार ने कहा कि स्थानों के नामों के प्रबंधन पर प्रासंगिक नियमों के अनुसार, विभाग ने चीन के दक्षिण तिब्बत क्षेत्र में कुछ स्थानों के नामों का मानकीकरण किया है। हमने दक्षिण तिब्बत (कुल छह) में स्थानों के नामों का पहला बैच जारी किया है। उस समय उस सूची में छह नाम वोग्यानलिंग, मिला री, क्वाइडेंगार्बो री, मेनकुका, बुमो ला और नामकापुब री रोमन वर्णमाला में लिखे गए थे। नामों के साथ सूचीबद्ध अक्षांश और देशांतर क्रमशः तवांग, क्र दादी, पश्चिम सियांग, सियांग (जहां मेचुका या मेनचुका एक उभरता हुआ पर्यटन स्थल है), अंजाव और सुबनसिरी के रूप में उन स्थानों को दर्शाता है। पहली सूची जारी होने के बाद भारत ने चीनी अधिनियम की निंदा की। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा था कि अपने पड़ोसी देशों के नाम बदलने या उनके नाम गढ़ने से अवैध कब्जे को कानूनी नहीं बनाया जा सकता है। फिर, साढ़े चार साल बाद, चीन ने राज्य में जगहों के लिए नामों का एक और सेट जारी किया। सरकारी ग्लोबल टाइम्स के अनुसार इसमें आठ रिहायशी इलाके, चार पहाड़, दो नदियां और एक पहाड़ी दर्रा शामिल है। इस बार भी इसने इन स्थानों के अक्षांश और देशांतर प्रदान किए थे।
चीन का तर्क क्या है?
पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना मैकमोहन रेखा की कानूनी स्थिति पर विवाद है। अरुणाचल प्रदेश की ऐतिहासिक व भौगोलिक पृष्ठभूमि की बात करें तो तिब्बत, बर्मा और भूटानी संस्कृति का प्रभाव आसानी से देखा जा सकता है। तवांग में 16वीं सदी में बना बौद्ध मठ इसकी खास पहचान है। तिब्बत में रहने वाले बौद्ध समुदाय के लोगों के लिए काफी पवित्र माना जाता है। बताया जाता है कि प्राचीन समय में तिब्बत के शासकों व भारतीय शासकों के बीच इसे लेकर कोई विवाद पैदा नहीं हुआ था और वे आपस में समन्वय से रहा करते थे। इसलिए उन्होंने अरुणाचल और तिब्बत के बीच कोई निश्चित सीमा रेखा भी निर्धारित नहीं की थी। लेकिन 20वीं सदी की शुरुआत में राष्ट्र-राज्य की अवधारणा के साथ ही सीमाओं को तय किए जाने की आवश्यकता महसूस की जाने लगी। तब भारत एक स्वतंत्र मुल्क नहीं, बल्कि ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन एक उपनिवेश था। तवांग में बौद्ध मठ होने के मद्देनजर सीमाओं का निर्धारण शुरू किया गया, जिसके लिए 1914 में तिब्बत, चीन और ब्रिटिश भारत के प्रतिनिधियों के बीच शिमला में एक बैठक भी हुई।
शिमला समझौता क्या है?
1914 में जब भारत में ब्रिटिश शासन था और तिब्बत सरकार के साथ शिमला समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। ब्रिटिश सरकार के एक प्रशासक सर हेनरी मैकमोहन तिब्बत सरकार के प्रतिनिधि के साथ समझौता करने वाले व्यक्ति थे। जिनके नाम पर तिब्बत और भारत की सीमा को मैकमोहन लाइन का नाम दिया गया। लेकिन चूंकि चीन तिब्बत को स्वायत्त नहीं मानता है, इसलिए उसने तिब्बत सरकार द्वारा हस्ताक्षर किए उस समझौते को भी कभी नहीं माना। वहीं दूसरी ओर भारत में मैकमोहन लाइन को दर्शाता हुआ मानचित्र आधिकारिक रूप से 1938 में प्रकाशित हो गया था और तब ही से ये मान्य है। इस सम्मेलन में मानत्रित का कोई लिखित रिकॉर्ड नहीं रखा गया। बस एक मैप पर लाइनों के सहारे आउटर तिब्बत को इनर तिब्बत और इनर तिब्बत को चीन से अलग कर दिया गया। दो मानचित्र आए। पहला 27 अप्रैल 1914 को जिसपर चीन के प्रतिनिधि ने दस्तखत कर दी। दूसरा आया 3 जुलाई 1914 को ये डिजेस्ड मैप था जिस पर चीन ने हस्ताक्षर से इनकार कर दिया। दूसरी ओर भारत में मैकमोहन लाइन को दर्शाता हुआ मानचित्र आधिकारिक रूप से 1938 में प्रकाशित हो गया था और तब ही से ये मान्य है।
इन दावों से चीन क्या हासिल करना चाहता है?
ये भारतीय क्षेत्र पर अपने क्षेत्रीय दावों का दावा करने की चीनी रणनीति का एक हिस्सा है। इस रणनीति के तहत ब भी कोई भारतीय गणमान्य व्यक्ति अरुणाचल प्रदेश का दौरा करता है, तो चीन नियमित रूप से नाराजगी के बयान जारी करता है। जिंग अपनी स्थिर और स्पष्ट स्थिति पर जोर देता रहता है कि अरुणाचल प्रदेश पर भारतीय कब्ज़ा, हालांकि दुनिया द्वारा दृढ़ता से स्थापित और मान्यता प्राप्त है। पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) ने अरुणाचल प्रदेश के ईटानगर में आयोजित दो दिवसीय जी20 बैठक के लिए अपना प्रतिनिधिमंडल नहीं भेजा था।
अमेरिकी सांसदों ने पेश किया था विधेयक
अरुणाचल प्रदेश को लेकर चीन की आक्रमक नीति का अमेरिका ने खुलकर विरोध किया है। भारत का पक्ष लेते हुए अमेरिका ने दो टूक कहा है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न हिस्सा है। ओरेगन से डेमोक्रेटिक सीनेटर जेफ मर्कले और टेनेसी से रिपब्लिकन सीनेटर बिल हेगर्टी ने सीनेट में एक प्रस्ताव पेश किया, जो भारत गणराज्य के अभिन्न अंग के रूप में एक भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश की संयुक्त राज्य अमेरिका की मान्यता की पुष्टि करता है। यह संकल्प पूर्वी क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन के बीच हालिया संघर्ष के जवाब में है, जो छह वर्षों में अपने चरनम पर है। 2017 में नाम बदलने का पहला बैच दलाई लामा के अरुणाचल प्रदेश के दौरे के कुछ दिनों बाद आया था। जिसके खिलाफ बीजिंग ने कड़ा विरोध दर्ज कराया था। प्रवक्ता लू ने, हालांकि, दावा किया था कि मानकीकरण आवश्यक था क्योंकि दक्षिणी तिब्बत में उपयोग किए जाने वाले सभी नाम अल्पसंख्यक जातीय समूहों द्वारा मौखिक रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी विरासत में मिले थे।