देश के विकास की बागडोर नेताओं के हाथ में है। देश में लोकतांत्रिक शासन पद्धति होने से उम्मीद यही की जाती है कि नेता देश को नई दशा-दिशा देंगे। देश और समाज के समक्ष अपने आचरण और व्यवहार से आदर्श पेश करेंगे। इसके विपरीत यदि नेता ही अपने जुबान पर लगाम नहीं रख पाएं तो देश के भले की उम्मीद नहीं की जा सकती। अभिव्यक्ति की आजादी का मतलब यह नहीं है नेता बदजुबानी पर उतर आएं। ऐसे बेलगाम नेता पार्टी के कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों को संयम और अनुशासन बरतने का क्या संदेश देंगे। आत्मनुशासन की बजाए नेताओं को कानून के जरिए संयत भाषा और आचरण से नियंत्रित किए जाने की कार्रवाई उनको आईना दिखाने वाली मानी जाएगी। अपशब्द कहने पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी को मिली सजा और उससे गई संसद की सदस्यता से उम्मीद की जानी चाहिए कि देश के नेता अपनी जुबान पर लगाम लगाएंगे। नेताओं को जुबान पर लगाम का सबक सिखाने के मामले में राहुल गांधी को मिली सजा मील का पत्थर साबित होगी। इससे कम से कम सार्वजनिक रूप से गरिमा के प्रतिकूल टिप्पणी करने की कीमत चुकाने से नेताओं में डर पैदा होगा।
यह पहला मौका नहीं है जब किसी राष्ट्रीय स्तर के नेता को अदालत से मिली सजा और उसके बाद संसद की सदस्यता गंवानी पड़ी हो। इससे पहले राजद के नेता लालू प्रसाद यादव, पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता सहित कई नेताओं को विधानसभा और लोकसभा से सदस्यता से हाथ धोना पड़ा था। राहुल के सिवाय इन नेताओं को आपराधिक और दूसरे मामलों में जेल की सजा सुनाए जाने पर सदस्यता खोनी पड़ी। इसके विपरीत राहुल को एक जाति विशेष पर अपशब्द कहने के कारण सदस्यता से हाथ धोना पड़ा। देश की विभिन्न अदालतों में अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने पर नेताओं के खिलाफ दर्जनों मानहानि और आपराधिक मामले विचाराधीन हैं। इनमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के खिलाफ भी करीब आधा दर्जन से अधिक मामले दर्ज हैं। राहुल गांधी के खिलाफ आरएसएस पर टिप्पणी करने पर कई मामले चल रहे हैं। गौरतलब है कि राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चौकीदार चोर है जैसी टिप्पणी करने पर वर्ष 2019 में सुप्रीम कोर्ट में बगैर शर्त माफी मांगी थी। राहुल गांधी ने इससे सीख लेने की बजाए अमर्यादित भाषा बोलना बंद नहीं किया। अदालत से बाहर भी राहुल ने इस तरह की अभद्रता करने पर अफसोस जाहिर नहीं किया। अब कांग्रेस इसे राष्ट्रीय मुद्दा बनाए हुए है। कांग्रेस इसे कर्नाटक चुनाव सहित आगामी चुनावों में मुद्दा बना रही है। इससे यही माना जाएगा कि कानून का सम्मान करने की बजाए आंखें दिखा कर सहानुभूति बटोरने के प्रयास से कांग्रेस देश में समस्याओं के असली मुद्दों से मुंह फेर रही है।
राहुल से पहले भी अभद्र टिप्पणी करने पर कई नेताओं के खिलाफ कानूनी कार्रवाई हुई है। कांग्रेस की इंदौर इकाई के सेवादल के पूर्व जिलाध्यक्ष चन्द्रशेखर पटेल को पुलिस ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ अभद्र भाषा का उपयोग करने के आरोप में गिरफ्तार किया था। नागपुर पुलिस ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ अशोभनीय भाषा का इस्तेमाल करने के आरोप में पूर्व कांग्रेस जिला पदाधिकारी शेख हुसैन के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई। राहुल गांधी के खिलाफ नेशनल हेराल्ड मनी लॉन्डरिंग के मामले में प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई पर कांग्रेस के प्रदर्शन के दौरान हुसैन ने पीएम मोदी के लिए अपमानजनक शब्द कहे थे। इसी तरह के आरोप में लखनऊ पुलिस ने समाजवादी पार्टी के सोशल मीडिया सेल से सम्बद्ध मनीष जगन अग्रवाल को गिरफ्तार किया। कोलकाता पुलिस ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की गरिमा को ठेस पहुंचाने के आरोप में कांग्रेस नेता कौस्तुभ बागची को गिरफ्तार किया। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के खिलाफ मानहानि के कई मामले अदालतों में विचाराधीन हैं।
जिला या राज्यस्तरीय नेता होने के कारण इन मामलों में की हुई कानूनी कार्रवाई राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय नहीं रही। परोक्ष तौर पर कांग्रेस के सर्वेसर्वा होने के कारण राहुल गांधी के खिलाफ हुई कार्रवाई की गूंज देशभर में है। राहुल गांधी की संसद सदस्यता जाने से भड़की कांग्रेस देश भर में धरने-प्रदर्शन करके इसे चुनावी मुद्दा बना रही है। सजा चूंकि अदालत से मिली है, इसलिए राहुल और कांग्रेस इसके लिए भाजपा को जिम्मेदार नहीं ठहरा सके, किन्तु सजा से सदस्यता चले जाने के मुद्दे को बड़ा मुद्दा बना लिया। विपक्षी दलों के नेता भी इस मुद्दे पर राहुल गांधी का समर्थन कर रहे हैं। आश्चर्य की बात यह है कि कांग्रेस और दूसरे दलों के नेताओं ने अमर्यादित टिप्पणियों से बचने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। क्षेत्रीय दलों के नेताओं के एक-दूसरे के खिलाफ और भाजपा के नेताओं के खिलाफ अभद्र भाषा के इस्तेमाल करने के कई मामले सामने आ चुके हैं।
देश में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की संख्या बढ़ने के साथ ही सत्ता के लिए मची होड़ ने नैतिकता के साथ कानून की तमाम हदें भी पार की हैं। क्षेत्रीय दलों में ज्यादातार नेताओं के परिवार का बोलबाला है। इसीलिए सत्ता पाने की प्रतिस्पर्धा से राजनीति में गिरावट का सिलसिला जारी है। कांग्रेस के पास अन्य दलों की तुलना में लोकसभा में सीटें बेशक कम हों, किन्तु विपक्षी दलों में कांग्रेस एकमात्र पार्टी है, जिसकी तीन राज्यों में सत्ता होने के साथ राष्ट्रीय स्तर पर संगठन का नेटवर्क है। इससे कांग्रेस की जिम्मेदारी अन्य दलों से कहीं ज्यादा है। सार्वजनिक जीवन में संयमित आचरण और ईमानदारी के मानदंड स्थापित करने की ज्यादा जिम्मेदारी भी कांग्रेस पर है। सत्ता पक्ष की नीतियों की आलोचना करना स्वस्थ लोकतंत्र की परंपरा और जरूरत है। इसके विपरीत यदि व्यक्तिगत आक्षेप लगा कर राजनीति को गंदा किया जाए तो आम लोगों से जुड़े मुद्दे हाशिए पर चले जाएंगे। इससे एक नए तरीके का विद्रूप राजनीतिक माहौल देश में बनेगा। ऐसे वातावरण की कीमत देश को पिछड़ने से चुकानी पड़ेगी। उम्मीद यही की जानी चाहिए कि राहुल को मिली सजा और सांसद का पद जाने से देश के नेताओं को सार्वजनिक तौर पर बोलने से पहले सोचने पर मजबूर होना पड़ेगा।