मुंबई: Gurmeet Choudhary Career: गुरमीत चौधरी और देबीना बनर्जी के सबसे प्यारे कपल और फेमस सेलेब्स हैं. देबीना और गुरमीत ने लंबे समय तक एक-दूसरे को डेट करने के बाद शादी की. दोनों आज टीवी के बड़े स्टार्स हैं, लेकिन अपनी जड़ों को भूले नहीं हैं. दोनों काफी स्ट्रगल के बाद एक मिडिल क्लास फैमिली से यहां तक पहुंचे हैं. देबीना ने एक वीडियो के जरिए पति गुरमीत की स्ट्रगल और करियर को दिखाया है और एक बार फिर उन जगहों पर दोबारा गईं, जहां से गुरमीत ने मुंबई में अपनी जर्नी शुरू की और उनकी कैसे मुलाकात हुई और दोनों मुंबई के कौन-से इलाके और रेस्तरां मिलते थे.
गुरमीत चौधरी (Gurmeet Choudhary) का जन्म बिहार के भागलपुर में हुआ. लेकिन उन्होंने 12वीं तक की पढ़ाई जबलपुर में की. उनके पिता आर्मी में थे और उनकी पोस्टिंग जबलपुर में थी. 10वीं तक पढ़ने के बाद गुरमीत को एक्टिंग का करने का विचार आया. गुरमीत काफी अच्छा डांस करते थे. इसलिए जबलपुर में जिस कॉलोनी में वह रहते थे, वहां उनकी खूब चर्चा थी.
गुरमीत ने बताया कि उन्हें और उनके पिता को नहीं पता था कि वह एक्टर बनने के लिए क्या करना होता है. तो उनके पिता अचानक मुंबई आने का फैसला किया. गुरमीत और उनके पिता मुंबई के कोलाबा में आर्मी कैंट एरिया में एक गेस्ट हाउस में रुके. इस गेस्ट हाउस का 30-40 रुपए किराया था. देबीना और गुरमीत ने वो घर भी दिखाया जब देबीना(Debina Bonnerjee) , गुरमीत की मम्मी से पहली बार मिलने आई थीं.
गुरमीत चौधरी ने बताया कि आर्मी कैंट से बस पकड़ते थे और कोलाबा स्टेशन जाते और फिर ट्रेन से अंधेरी बांद्रा जाते थे, जहां बॉलीवुड है. उन्होंने कहा उनका एक दिन का बजट होता था. गुरमीत ने कहा, “मुझे एक दिन का 40 रुपए मिलता था खर्च करने के लिए. जिसमें 6 रुपए बस का टिकट. 9 रुपए ट्रेन का एक साइड का होता था. और इसके बाद इतना किराया वापसी के लिए भी. मां टिफिन देती थी. लेकिन अगर ज्याद भूख लगती थी. इसी 40 रुपए मैं मैनेज करना होता था.”
एक दिन में 4-5 ऑडिशन देते थे गुरमीत चौधरी
गुरमीत चौधरी ने आगे बताया कि वह अपने एक दोस्त की बाइक पर घूमते थे. वो दोस्त भी एक्टर बनने आया था. कभी ऑडिशन देने और कभी काम के चक्कर में. उन्होंने कहा कि वह टारगेट लेकर चलते थे कि एक दिन में 4-5 ऑडिशन दे दें, जिसमें उन्हें यकीन होता था किसी एक में तो सेलेक्ट हो जाएंगे. लेकिन ऐसा नहीं होता. गुरमीत ने कहा कि उनके पास ट्रैवल करने लायक पैसे नहीं होते थे. बस के टिकट लेने के पैसे नहीं होते थे. ऑटो पर बैठने की हिम्मत भी नहीं थी.