नई दिल्ली: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी AI ने टेक की दुनिया में तहलका मचाया हुआ है. Chat GPT और GPT 4 से जुड़ी कोई न कोई खबर, लगभग हर दिन हमें पढ़ने को मिल जाती है. फिर चाहे AI के लोगों की नौकरी छीनने की खबर हो, या फिर लोगों का काम आसान बनाने की बात हो. AI ट्रेंड में बना हुआ है. पर जब AI या किसी भी नई तकनीक की बात होती है, तो अक्सर बच्चों को इग्नोर कर दिया जाता है. जबकि ये बच्चे ही हैं जिनकी बढ़ती उम्र इन तकनीकों से ज्यादा प्रभावित हो रही है.
हम अक्सर 90s के नॉस्टेल्जिया की बात करते हैं, वो दौर जब हर घर में टीवी भी नहीं पहुंचा था. जब बच्चों को घर से नहीं निकलने की सज़ा दी जाती थी. पर उन्हीं 90s किड्स के बच्चे आज मोबाइल छोड़कर बाहर निकलना पसंद नहीं करते. वो रोज़ AI से लैस तकनीकों से इंटरैक्ट करते हैं,एलेक्सा-सीरी से बात करते हैं. पैनडेमिक की वजह से उनकी पढ़ाई-लिखाई भी काफी हद तक AI पर डिपेंडेंट हुई है. ऐसे में ये समझना ज़रूरी है कि AI का बच्चों पर, उनकी ग्रोथ पर क्या असर पड़ सकता है और बच्चों को इसके बुरे प्रभावों से बचाया कैसे जा सकता है.
नवंबर 2021 में यूनिसेफ ने बच्चों के लिए AI के इस्तेमाल को लेकर एक पॉलिसी गाइडेंस जारी की थी. इसके मुताबिक, अभी जो बच्चे बड़े हो रहे हैं वो ऐसी पहली जनरेशन हैं, जिन्होंने स्मार्टफोन से पहले का समय देखा ही नहीं है और उनकी एजुकेशन, उनका हेल्थ सबकुछ AI एनेबल्ड एप्लिकेशंस से रेगुलेट होता है. इसी वजह से ये जनरेशन AI से जुड़े खतरों से भी सबसे ज्यादा प्रभावित होगी.
वर्ल्ड इकॉनमिक फोरम ने जनवरी, 2022 में एक आर्टिकल छापा था. इसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया था कि AI सिस्टम्स बनाते समय टेक इनोवेटर्स को बच्चों की बेहतरी और उनके अधिकारों का खास ख्याल रखना चाहिए. इस आर्टिकल में बताया गया था कि बच्चों के लिए तैयार होने वाले कई लर्निंग ऐप AI से तैयार हो रहे हैं. ये ऐप एक कॉन्टेंट को एक समय पर कई अलग-अलग भाषाओं में ट्रांसलेट कर सकते हैं. ये ऐप हर स्टूडेंट की ज़रूरत के ध्यान में रखकर काम करते हैं, जैसे दृष्टिबाधित बच्चों के लिए उनकी लर्निंग एबिलिटी के हिसाब से, सुनने में अक्षम बच्चों के लिए उनके हिसाब से. ताकि बच्चे बेहतर सीख सकें. ग्लोबल मार्केट इंसाइट के मुताबिक, 2027 तक AI एनेबल्ड एजुकेशन का मार्केट 22 बिलियन डॉलर यानी करीब 1.8 लाख करोड़ रुपये तक का हो सकता है.
इसके साथ ही AI एनेबल्ड खिलौने मार्केट में अवेलेबल हैं. ऐसे ज्यादातर खिलौने इंटरनेट से कनेक्टेड होते हैं और क्लाउड कम्प्यूटिंग, AI और सेंसर बेस्ड टेक्नोलॉजी की मदद से रियल टाइम में बच्चों के ऐक्शन के हिसाब से रिस्पॉन्ड करते हैं.
AI से बच्चों को क्या खतरा हो सकता है?
AI को लेकर सबसे बड़ा कंसर्न डेटा प्राइवेसी और सुरक्षा का है. बात जब बच्चों की आती है तो ये चिंता और ज्यादा बढ़ जाती है. चाइल्ड पॉर्नोग्रफी 8 बिलियन डॉलर यानी करीब 65 हज़ार करोड़ रुपये की इंडस्ट्री है. ऐसे में बच्चों की तस्वीरों के गलत इस्तेमाल के खतरे को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है. इसके साथ ही ये भी एक बड़ी चिंता है कि AI का इस्तेमाल बच्चों के विकास को रोक रहा है या उनके सीखने की प्रोसेस में, उनकी कल्पनाशीलता में कुछ जोड़ रहा है. इसलिए जब कोई AI एनेबल्ड सिस्टम बच्चों के लिए लाएं तो ये अच्छे से चेक करें कि वो सिस्टम बच्चों के डेटा की प्राइवेसी के लिए क्या पॉलिसीज़ अपनाता है.
बच्चों के लिए AI के इस्तेमाल को लेकर क्या गाइडलाइन है?
UNICEF की रिकमेंडेशन के मुताबिक, सरकारों, पॉलिसी मेकर्स और बिजनेसेस को AI एनेबल्ड टूल् बनाते हुए बच्चों से जुड़ी 9 ज़रूरतों का ध्यान रखा जाना चाहिए. वो नौ ज़रूरतें हैं-
– एक AI सिस्टम जो बच्चों के डेवलपमेंट और वेलबींग को सपोर्ट करे.
– एक इन्क्लूसिव सिस्टम तैयार हो.
– बच्चों के बीच भेदभाव को बढ़ावा देने वाला सिस्टम न हो
– बच्चों के डेटा और प्राइवेसी को प्रोटेक्ट करे
– बच्चों की सेफ्टी सुनिश्चित करे.
– ये साफ हो कि AI बच्चों पर क्या असर डाल रहा है.
– सरकारों और बिजनेसेस को AI और बच्चों के अधिकारों की जानकारी हो
– बच्चों को AI में होने वाले डेवलपमेंट्स के लिए तैयार करना
– एक ऐसा एनवायर्नमेंट तैयार करना कि हर कोई बाल केंद्रित AI डेवलप करने में अपना योगदान दे सके.
इंडिया AI की वेबसाइट के मुताबिक, जहां तक सेफ्टी, प्राइवेसी और मॉनिटरिंग की बात है, वहां पेरेंट्स को जिम्मेदारी लेनी होगी. उन्हें ये देखना होगा कि बच्चों के डेटा और प्राइवेसी का कितना एक्सेस कब और किसे देना है. इसके साथ ही ज़रूरी है कि ऐप डेवलपर्स पेरेंट्स को ये साफ़ बताएं कि डेटा किस चीज़ के लिए इकट्ठा कर रहे हैं, और उसका इस्तेमाल किस चीज़ के लिए किया जाएगा