नई दिल्ली: यह इंटरनेट का दौर है. आज हम अपने ज्यादातर काम इंटरनेट की मदद से घर बैठे-बैठे कर लेते हैं. आज इंटरनेट की मदद से बैंकिंग से लेकर शॉपिंग तक चुटकियों में की जा सकती है. यह ही कारण है कि इंटरनेट बढ़ने के साथ-साथ भारत में ऑनलाइन रिटेल का बाजार भी काफी तेजी से बढ़ा है. अभी भारत में ई-कॉमर्स कारोबार के ग्रोथ की संभावनाएं काफी ज्यादा हैं. हालांकि, ग्राहकों के साथ होने वाले फ्रॉड से दिक्कतें आ रही हैं और कई लोग अभी भी ऑनलाइन शॉपिंग से दूरी बनाए हुए हैं. लोगों के साथ लगातार हो रहे फ्रॉड से निपटने के लिए अब सरकार ने सख्ती बरतनी की तैयारी कर ली है. खबरों की मानें तो जल्दी ही इस संबंध में नए और कड़े नियम जारी होने वाले हैं.
इकॉनोमिक टाइम्स की रिपोर्ट अनुसार उपभोक्ता मामलों का मंत्रालय अमेजन और फ्लिपकार्ट समेत तमाम ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए नियमों को सख्त बनाने पर काम कर रहा है. जानकारी के मुताबिक सरकार ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स पर होने वाले फ्रॉड के लिए कंपनी को जिम्मेदार बनाना चाहती है. रिपोर्ट के अनुसार अगर ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर सेलर के द्वारा ग्राहक के साथ फ्रॉड किया जाता है, तो माना जाएगा कि संबंधित कंपनी एक मध्यस्थ की भूमिका निभा पाने में असफल रही.
कंपनियों को भेजे सवाल
खबर में मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से कहा गया है, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने ई-कॉमर्स कंपनियों को कुछ सवाल भेजे हैं. कंपनियों की ओर से उन सवालों पर प्रतिक्रिया मिल जाने के बाद नियमों को अमल में लाया जाएगा. जानकारी के मुताबिक इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने ई-कॉमर्स कंपनियों से कहा है कि वे एक मध्यस्थ के तौर पर अपनी भूमिका को स्पष्ट करें.
मिले हुए हैं ये संरक्षण
बता दें कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की धारा 79 के तहत ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म ऐसे मध्यस्थ माने गए हैं, जो खरीदारों और विक्रेताओं को जोड़ने का काम करते हैं. अमेजन, फ्लिपकार्ट, स्नैपडील समेत तमाम साइट्स को संबंधित धारा के तहत कुछ संरक्षण भी मिले हुए हैं.
पहले भी हो चुका है प्रयास
इससे पहले सरकार ने जुलाई 2020 में नए ई-कॉमर्स नियमों को अधिसूचित किया था. नए नियमों में ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म से संबंधित निकायों के विक्रेता बनने पर रोक और फ्लैश सेल्स पर पाबंदी जैसी सख्तियां की गई थीं. हालांकि टॉप ई-कॉमर्स कंपनियां सरकार के इस कदम से खुश नहीं हुई थीं. यहां तक कि नीति आयोग जैसे सरकारी थिंकटैंक ने भी प्रस्तावित बदलावों का विरोध किया था.