नई दिल्ली: टीम इंडिया को 2 बार विश्व विजेता बना चुके एमएस धोनी बचपन से एक दिग्गज खिलाड़ी की तरह खेलना चाहते थे. उनको देखकर क्रिकेट सीखने की कोशिश करते. कुछ अरसा बाद धोनी को एहसास हुआ कि उनकी कोशिश गलत है. वह क्या, कोई भी खिलाड़ी इस दिग्गज क्रिकेटर की तरह नहीं बन सकता है. हालांकि, आगे चलकर धोनी ने ही इस महान खिलाड़ी की सबसे बड़ी ख्वाहिश को पूरा किया.
टीम इंडिया के पूर्व कप्तान एमएस धोनी ने इंटरव्यू कहा कि मैं इस बात पर यकीन नहीं करता हूं कि मैं एक लीजेंड हूं. लीजेंड का मतलब किसी भी क्षेत्र चाहे वह बॉलीवुड हो, क्रिकेट हो, बिजनेस हो, बैंकिग या शिक्षा आदि कोई भी सेक्टर हो, किसी व्यक्ति ने उस क्षेत्र में एक अच्छा खासा समय बिताया हो तो वह लीजेंड हो सकता है. धोनी ने कहा कि मुझे लगता है कि मेरी ताकत ये नहीं है कि मैं लीजेंड हूं. मेरी ताकत यह है कि मेरा आम लोगों से कनेक्शन बहुत बेहतर और अच्छा है.
महेंद्र सिंह धोनी ने कहा, लोगों को लगता है कि मैं उनके बीच से ही उठकर आया हूं. मैं जिस तरह से मैं खेलता हूं, वैसा तो सब खेलते हैं. माही ने कहा कि हम सचिन पाजी की बात करें तो जो भी उन्हें देखता तो यहीं कहता हैं कि हम तेंदुलकर की तरह नहीं खेल सकते हैं. मैं खेलता हूं तो लोग कहते हैं, ऐसे तो हम भी खेलते हैं. धोनी की तरह हम भी अपनी गली और ग्राउंड में चौके-छक्के लगाते हैं.
धोनी ने कहा कि जैसे आम लोग खेलते हैं, मैं भी वैसे ही खेलता हूं. मैं हर तरफ बॉल मारता हूं. एकदम कॉमनमैन में छिपे खिलाड़ी की तरह. यही मेरी सबसे बड़ी ताकत है कि मैं कोई लीजेंड नहीं, आम लोगों का क्रिकेटर हूं. बता दें कि सचिन तेंदुलकर टीम इंडिया को वनडे वर्ल्ड कप जीताना चाहते थे. सचिन 1992 से 2011 तक 6 बार वर्ल्ड कप खेले. हालांकि, उनका सपना 2011 में एमएस धोनी की कप्तानी में ही पूरा हुआ.