प्रदेश के मुखिया ने बजट पास होने से पहले जिस तरह ताबड़तोड़ जिलों की घोषणाएं की उसकी कइयों की उम्मीद नहीं थी। विधानसभा की कार्यवाही स्थगित होने के बाद प्रदेश के मुखिया विधायकों के हेडमास्टर के चैंबर में पहुंच गए।
पीछे पीछे जिले की घोषणा से उत्साहित कुछ विधायक भी पहुंच गए। विपक्षी पार्टी से जुड़े एक विधायक जिले की खुशी रोक नहीं पाए और प्रदेश के मुखिया के पांव छू लिए।
पांव छूते देख साथी विधायकों ने कमेंट किया कि पार्टी ही जॉइन कर लो। पांव छूने वाले विधायक जिला बनाने के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहे थे लेकिन बंद कमरे में पांव छूने की घटना की चर्चा पार्टी तक पहुंच चुकी है।
महिला नेता ने दिल्ली से फोन करवाकर कैसे पलटवाया फैसला?
सत्ताधारी पार्टी में जिसकी दिल्ली में पकड़ है वही असली नेता माना जाता है। अगर दिल्ली में पकड़ है तो फील्ड में चाहे कितना ही कमजोर हो,इसके बूते बड़े-बड़े नेताओं को पानी पिला सकते हैं। सत्ताधारी पार्टी की एक महिला नेता कुछ समर्थकों को संगठन में पद दिलाने की पैरवी कर रही थीं।
जब प्रदेश में नहीं सुनी गई तो दिल्ली दौड़ लगाई। दिल्ली वाले नेताजी ने प्रदेश में वाले जिम्मेदार नेताजी को फोन लगाया। महिला नेता के समर्थक को पद देने के लिए आदेश दिए गए तो सामने से हारी हुई कैंडिडेट का तर्क आया।
दिल्ली वाले नेताजी ने साफ लहजे में बता दिया कि करना है तो करना है। अब दिल्ली के बड़े नेता का आदेश कौन टाल सकता है? प्रदेश के नेताओं को समझ आ गया होगा कि दिल्ली में जो मजबूत हैं उनकी बात पहले ही मान लेनी चाहिए।
कर्नाटक के रिजल्ट से तय होगा फेस वॉर का रिजल्ट
विपक्षी पार्टी में फेस वॉर किसी से छिपा नहीं है, यह वॉर कई मोर्चों पर लड़ा जा रहा है। पार्ट का एक मजबूत खेमा वेट एंड वॉच की मुद्रा में है। इस खेमे के रणनीतिकारों का अनुमान है कि कर्नाटक का रिजल्ट पार्टी के अनुकूल आया तो उन्हें शायद ही फायदा हो, लेकिन पार्टी हारी तो उनके नेता को आगे किया जाना तय है।
अब इस खेमे के नेताओं की किस्मत कर्नाटक की हार से बनेगी तो फिर जीत की कामना तो कोई क्यों ही करेगा? इसलिए सब अपने अपने समीकरण देख रहे हैं। आगे फेस वॉर में कौन जीतेगा यह कोई नहीं कह सकता, क्योंकि सेंट्रल लीडरशिप भारी हो तो बोलने की हिम्मत कम ही कर पाते हैं।
ब्यूरोक्रेसी के मुखिया की रेस में कौन आगे?
प्रदेश में एक बार फिर ब्यूरोक्रेसी के मुखिया के लिए दौड़—धूप शुरू होने वाली है। मौजूदा ब्यूरोक्रेसी के मुखिया का जून अंत में रिटायरमेंट है। 1 जुलाई से पहले ही ब्यूरोक्रेसी के नए मुखिया का सलेक्शन होना है। इस बार सलेक्शन के लिए काफी पहले से ब्रेन स्टॉर्मिंग शुरू हो चुकी है।
किसे बनाना है यह प्रदेश के मुखिया ने तय कर ली लिया होगा। दौड़ में माइंस, फूड और फाइनेंस वाले तक के अफसरों के नाम बताए जा रहे हैं। अभी साढ़े तीन महीने बाकी है, तब तक रेस में कई अंदर बाहर होंगे लेकिन ज्यादा विकल्प भी नहीं है।
इस पोस्ट पर जो भी आएगा लेकिन यह तय माना जा रहा है कि सीनियरिटी लांघी जाएगी। रेस में खजाना चुनावी साल में इस पोस्ट पर काम करना बहुत जोखिम भरा होता है क्योंकि मौजूदा मुखिया के पिछले कार्यकाल में सौम्य छवि वाले ब्यूरोक्रेसी के मुखिया को चुनाव के दौरान छुट्टियों पर जाना पड़ा था और फिर सरकार बदलने पर उन्हें भी बदल दिया गया था।
सूत न कपास...भावी सीएम का सचिव बनने के लिए चक्कर
फ्यूचर प्लानिंग की हर जगह अहमियत होती है, मामला जब ब्यूरोक्रेसी और पॉलिटिक्स का हो तो सारा खेल ही इसी पर टिका है। डेपुटेशन पर दिल्ली जा चुके एक आईएएस अफसर की इन दिनों विपक्षी पार्टी में खूब घुट रही है।
इन्होंने पूरा फ्यूचर प्लानिंग विपक्षी पार्टी के फेस पर ही कर रखा है। इनकी इच्छा अगले सीएम का सचिव बनने की है, इसलिए संभावना वाले एक चेहरे के चककर काट रहे हैं। फ्यूचर प्लानिंग हो तो ऐसी, अब फ्यूवर सिक्योर करने के लिए फ्यूचर प्लानिंग तो करनी ही पड़ेगी। आईएएस की भविष्य की महत्वाकांक्षा को लेकर ब्यूरोक्रेसी में खूब चर्चाएं हैं।
आर्य समाजी नेता की संगठन पर निगाह
विपक्षी पार्टी की सियासत में भी इन दिनों नित नए समीकरण बन और बिगड़ रहे हैं। प्रदेश के एक सांसद की हाल ही दिल्ली में पार्टी के चाणक्य माने जाने वाले नेताजी से मुलाकात की चर्चा है। अंदर खाने चर्चा इस बात है कि सांसद की निगाह अब संगठन के मुखिया की कुर्सी पर है।
सांसद के पैरोकारों ने सियासी समीकरणों के तहत उनका नाम आगे बढ़ाना शुरू किया है। तर्क यह दिया कि रिप्लेसमेंट हो तो आर्य समाजी सांसद पर दांव लगाने के बारे में सोचा जा सकता है।
इससे जातीय समीकरण भी सध जाएंगे और भगवाधारी होने का फायदा बोनस में मिल जाएगा। लुटियंस जोन में चल रही इन चर्चाओं के अपने मायने हैं। खैर, सियासत में हर किसी को सपने देखने का हक है।