नई दिल्ली: अफगानिस्तान में आतंक मचा रहे आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रोविंस (आईएसकेपी) को भारत में आतंक मचाने वाला संगठन लश्कर-ए-तैयबा और पाकिस्तान के अलावा खाड़ी देश वित्तीय सहायता पहुंचा रहे हैं. अफगानिस्तान में पाकिस्तानी दूतावास पर आईएसकेपी द्वारा किया गया हमला भी केवल एक नाटक था. कभी खुद आतंकवादियों की भर्ती करने और आतंकवादी संगठन के साथ मिलकर लड़ने वाले पूर्व आतंकवादी अब्दुल रहीम ने मुस्लिम दोस्त के सामने यह खुलासा किया है.
अफगानिस्तान में तालिबान समर्थक लोगों से बातचीत करते हुए अब्दुल रहीम ने कहा कि साल 2015 में जब इस्लामिक स्टेट खोरासन प्रोविंस खड़ा हो रहा था, तब उसे पहली सहायता आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा ने 50 लाख पाकिस्तानी नोटों के रूप में दी थी. पूर्व आतंकवादी का कहना है कि यह आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट सीरिया और इराक से भी वित्तीय मदद ले रहा है. इसके अलावा आईएसकेपी अपने वित्तीय तंत्र को मजबूत करने के लिए अपहरण और जबरन वसूली के जरिए भी फंड एकत्र करता है.
ध्यान रहे कि पाकिस्तान एक तरफ तो अफगानिस्तान को सहायता करने की बात करता है और उसने बाकायदा अपना दूतावास भी अफगानिस्तान के अंदर खुला रखा है, लेकिन दूसरी तरफ से अफगानिस्तान में खुलेआम आतंक मचाने वाले आतंकवादी गुट को सीधे तौर पर सहायता पहुंचा रहा है. यह बात जगजाहिर है कि लश्कर-ए-तैयबा को भारत समेत अन्य देशों में आतंक मचाने के लिए जो धन मिलता है उसके पीछे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का ही हाथ होता है.
तालिबान समर्थित समूह ने जब मुस्लिम दोस्त से पूछा कि अगर आईएसकेपी को पाकिस्तान और उसके समर्थक आतंकवादी समूहों का समर्थन हासिल है, तो उसने अफगानिस्तान में पाकिस्तानी दूतावास पर हमला क्यों किया? इसके जवाब में पूर्व आतंकवादी ने कहा कि यह हमला अफगानिस्तान में मौजूद तालिबान सरकार की आंखों में धूल झोंकने जैसा था क्योंकि इस हमले में पाकिस्तानी दूतावास का एक भी कर्मचारी नहीं मारा गया, केवल एक गार्ड घायल हुआ. उसने कहा, ‘काबुल में पाक दूतावास पर हमला सिर्फ एक नाटक था. राजदूत को कुछ नहीं हुआ. बस एक अंगरक्षक घायल हो गया.’
अब्दुल रहीम को किसी समय में अमेरिकी फौजों ने आतंकवादियों के साथ संबंधों के शक में हिरासत में लेकर कुख्यात टॉर्चर सेंटर क्यूबा के ग्वांतानामो बे शिविरों में असाधारण हिरासत में भी रखा गया था. जहां से उसे कुछ साल बाद रिहा कर दिया गया था. साल 2006 में उसे पाकिस्तान में मस्जिद से बाहर निकलते हुए पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने अपनी हिरासत में लिया था और इसके बाद पाकिस्तान तालिबान और पाकिस्तानी सरकार के बीच एक कैदी की अदला-बदली के तौर पर उसे रिहा किया गया था.
उस समय पाकिस्तान तालिबान ने पाकिस्तान के कुछ महत्वपूर्ण लोगों को बंधक बना रखा था. खुद को कभी पत्रकार तो कभी सुनार बताने वाले इस पूर्व आतंकवादी ने साल 2014 में, उग्रवादी इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड द लेवांट्स अफगानिस्तान शाखा ज्वाइन कर ली जहां उसने आईएसआईएल नेता अबू बक्र अल-बगदादी को समर्थन देकर उसके प्रति वफादार रहने की प्रतिज्ञा ली.
इसके बाद उसे अफगानिस्तान के नूरिस्तान और कुनार प्रांतों में खुरासान शाखा के लिए लड़ाकों की भर्ती और प्रचार प्रसार का काम सौंप दिया गया. 2015 के अंत में उसने कथित तौर पर अफगानिस्तान में हत्याओं की निंदा करते हुए खुरासान में आईएसआईएल से सार्वजनिक रूप से खुद को अलग कर लिया. इस पूर्व आतंकी के इस बड़े खुलासे ने एक बार फिर पाकिस्तान की पूरी तरह से खोल दी है.