चुनावी साल में अब राजस्थान में केंद्रीय एजेंसियां कभी भी एक्टिव हो सकती हैं। केंद्र-राज्य की सत्ताओं के गलियारों में इसकी आहट सुनाई देना शुरू हो गई है। कुछ मंत्री और सत्ता के बड़े लाभार्थी नेता-अफसर ईडी के राडार पर बताए जा रहे हैं।
इनमें से ज्यादातर के खिलाफ बहुत पहले दस्तावेजी सबूत पहुंचाए जा चुके हैं। चुनिंदा मंत्रियों और सत्ता के नजदीक नेताओं को कभी भी नोटिस आ सकते हैं। पहले फेज में आधा दर्जन नोटिस जारी होने की चर्चा है।
ईडी के राडार पर आईटी छापों का सामना कर चुके मंत्री और सत्ता के नजदीकी तो है हीं, कुछ चौंकाने वाले नाम भी हैं। अब जिसे नोटिस मिलेगा उसकी गूंज तो अपने आप सुनाई दे जाएगी।
क्योंकि सत्ताधारी पार्टी चुनावी साल में इसे मुद्दा भी तो बनाएगी। मुद्दा विपक्षी पार्टी भी बनाएगी, क्योंकि करप्शन का मुद्दा हर चुनाव से पहले उठता है।
पुराना मामला बढ़ाएगा एक नेताजी की परेशानी
गड़े मुर्दे उखाड़ने वाली कहावत चुनावी साल में कई नेताओं को परेशान करने वाली है। जनता के बीच अक्सर कहा जाता है कि कि पुराने कर्मों का फल कभी न कभी भोगना ही पड़ता है। एक नेताजी इसी कहावत के चक्कर में भारी परेशान है।
परेशानी का कारण पुराना विवाद फिर से ताजा होने की सुगबुगाहट से है। नेताजी के खिलाफ किसी महिला ने शिकायत की थी, वह शिकायत प्रभाव का इस्तेमाल करके दबा दी गई थी। अब वह शिकायत फिर से ताजा होने वाली है।
दरअसल शिकायतकर्ता का रिश्ता नवाबी तहजीब के लिए विख्यात पड़ौसी राज्य की राजधानी से जुड़ा है। जिस मामले को नेताजी ने कभी प्रभाव का इस्तेमाल करके दबा दिया था अब वह मामला पड़ोसी राज्य की राजधानी में दर्ज करवाने की तैयारी है। बुल्डोजर जस्टिस वाले राज्य की राजधानी में मामला दर्ज होने के मायने हैं।
नेताजी के फोन ने मचाई विपक्षी पार्टी के चेहरों में खलबली
विपक्षी पार्टी में सीएम फेस पर कभी चर्चा खत्म ही नहीं होती। विपक्षी पार्टी की स्टूडेंट विंग से टॉप पर पहुंचे नेताजी के फोन ने खलबली मचा रखी है। नेताजी सीधे मंडल लेवल से भी नीचे फोन करके योजनाओं का फीडबैक मांग रहे हैं।
कई नेताओं-कार्यकर्ताओं के जब लगातार फोन पहुंचने लगे तो सीएम फेस की रेस वालों के कान खड़े हो गए। चर्चा यहां तक चल निकली कि ये भाई साहब ही सब कुछ बनकर आ रहे हैं। चर्चाओं का तो पता नहीं लेकिन फोन की असली वजह का खुलासा हो गया है। दरअसल ये फोन लाभार्थी सम्मेलनों के लिए किए जा रहे थे।
चुनावों से पहले विपक्षी पार्टी केंद्र सरकार की योजनाओं के लाभार्थियों के सम्मेलनों की तैयारी कर रही है। नेताजी को ही देश भर में इन सम्मेलनों की तैयारियों का जिम्मा है। अब चर्चाएं इसलिए भी ज्यादा चलीं क्योंकि नेताजी का नाम पहले भी राजस्थान के लिए चलता रहा है।
फिलहाल असली वजह सामने आ चुकी है लेकिन राजनीति, मौसम और क्रिकेट में कब क्या हो जाए कोई नहीं कह सकता।
फोन टैपिंग से जुड़े लीक लेटर के सोर्स की तलाश
प्रदेश की राजनीति में फोन टैपिंग का मामला कई बार तूल पकड़ चुका है। अब इसमें फिर कुछ होने की सुगबुगाहट सुनाई देने लगी है। पिछले दिनों फोन टैपिंग से जुड़ा एक लेटर सियासी गलियारों में खूब सर्कुलेट हुआ।
लेटर फोन टैप करने वाले अफसर का था। लेटर में एक मोबाइल नंबर चौंकाने वाला था,लेकिन वह नंबर नहीं था जिस पर सरकार गिराने की साजिश का आरोप था। अगर यह लेटर फोरेंसिक जांच में सही निकला तो सियासी भूचाल का कारण बनेगा।
इस लेटर के सोर्स को लेकर तरह तरह की बातें की जा रही हैं। दिल्ली से लेकर जयपुर तक घूम रहे इस लेटर पर कइयों की निगाहें हैं। फिलहाल एक लेटर ही सामले आया है, यह सही पाया गया तो कोर्ट में बड़ा सबूत बन सकता है। इसका मतलब इस तरह के कई और लेटर भी होंगे। अब इस लेटर के सोस्र को लेकर निगाहें दिल्ली की तरफ घूम रही है।
युवा नेता, आंदोलन-स्ट्राइक और बाबा पॉलिटिक्स
आंदोलन करके सरकार के लिए समय समय पर परेशानियां खड़ी करने वाले मुद्दे उठाने वाले बाबा की सियासत को समझना आसान काम नहीं है। सत्ताधारी पार्टी के युवा नेता के बंगले पर अचानक वीरांगनाओं ने धावा बोला और उसके बाद जिस तरह बाबा ने कमान संभाली, वह सबके सामने है।
केवल सामान्य विधायक युवा नेता के बंगले के बाहर आंदोलन स्ट्राइक करके बाबा ने सिविल लाइन को वॉर जोन बनाए रखा। अब बाबा जैसा राजनीतिज्ञ बेवजह कोई जगह तो नहीं चुनेगा। आंदोलन के स्पॉट शिफ्टिंग को लेकर जितने मुंह उतनी बातें की जा रही है।
कोई इसे अव्वल दर्जे की सियासी जादूगिरी बता रहा है तो कोई इसे बाबा पॉलिटिक्स का नया समीकरण बता रहा है। फिलहाल यह गुत्थी सुलझाी नहीं है, लेकिन कुछ दिनों में यह रहस्य डिकोड हो जाएगा, क्योंकि इसके संकेत मिल गए हैं।
मुखिया के ओएसडी की मंत्री की सीट पर निगाह
सियासत की भी गजब तासीर है। जो जनता से चुनकर आते हैं उन्हें सत्ता के नजदीक नहीं होने का मलाल है और जो सत्ता के नजदीक हैं उन्हें चुनकर नहीं आने का मलाल। यह मलाल सही भी है, विधायक की वैल्यू मौजूदा सरकार से ज्यादा कौन समझ सकता है, सियासी संकट में सब देख ही चुके हैं।
प्रदेश के मुखिया की साइबर मोर्चे पर छवि सुधारने का जिम्मा संभालने वाले ओएसडी अब जनता के दरबार में जाकर परीक्षा देना चाहते हैं। इसके लिए एक्सरसाइज शुरू कर दी है। जनता के दरबार में परीक्षा देने के लिए सीट भी तलाश ली है, जातीय समीकरण भी अनुकूल हैं।
कई बार सीट के दौरे पर भी कर आए हैं। शुभचिंतकों को एक्टिव भी कर दिया है। इस सीट पर एक ही संकट है, यह सीट सौम्य छवि वाले मौजूदा मंत्री की है। अब यह मुखिया पर निर्भर करेगा कि वे किसकी पैरवी करते हैं।