उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल की शुक्रवार को हुई बैठक में सरकार द्वारा शहरी स्थानीय निकाय चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को आरक्षण प्रदान करने के लिए गठित पांच सदस्यीय आयोग की रिपोर्ट स्वीकार कर ली गई। यह रिपोर्ट अब उच्चतम न्यायालय के समक्ष पेश की जाएगी, जहां मामला विचाराधीन है। ओबीसी आरक्षण के संबंध में आयोग की रिपोर्ट बृहस्पतिवार शाम को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सौंपी गई थी।
मंत्रिमंडल की बैठक के बाद संवाददाताओं से बातचीत में नगर विकास मंत्री अरविंद कुमार शर्मा ने बताया, “आयोग ने अपनी रिपोर्ट तीन महीने के भीतर सौंप दी। शुक्रवार को मंत्रिमंडल की बैठक में इसे स्वीकार्य कर लिया गया। रिपोर्ट अब उच्चतम न्यायालय के समक्ष पेश की जाएगी, जहां यह मामला विचाराधीन है।” हालांकि, मंत्री ने रिपोर्ट की सामग्री साझा करने से इनकार कर दिया। वहीं राज्य की मुख्य विपक्षी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने मांग की कि आयोग द्वारा क्या सिफारिश की गई है, यह जानने के लिए रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए।
समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा, “हमें नहीं पता कि रिपोर्ट में क्या है, हम मांग करते हैं कि सरकार इसे सार्वजनिक करे ताकि हम इसका अध्ययन कर सकें।” कांग्रेस प्रवक्ता अशोक सिंह ने कहा, “उत्तर प्रदेश कांग्रेस चाहती है कि सरकार रिपोर्ट सार्वजनिक करे। कांग्रेस चुनाव के लिए तैयार है और हम जानना चाहते हैं कि रिपोर्ट में क्या कहा गया है।” इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ द्वारा पिछले साल दिसंबर में शहरी स्थानीय निकाय चुनावों पर राज्य सरकार की मसौदा अधिसूचना को रद्द करने और ओबीसी आरक्षण के बिना ही चुनाव कराने का आदेश देने के बाद इस आयोग का गठन किया गया था।
अदालत ने कहा था कि राज्य सरकार शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित ‘ट्रिपल टेस्ट’ नियम के पालन में नाकाम रही है। ‘ट्रिपल टेस्ट’ नियम के तहत स्थानीय निकायों के संदर्भ में ‘पिछड़ेपन’ की स्थितियों (आर्थिक एवं शैक्षणिक), प्रकृति और प्रभाव के ‘विस्तृत आकलन’ के लिए एक आयोग के गठन की आवश्यकता है। यह नियम आयोग की सिफारिशों के आधार पर नगर निगम और नगर पालिका चुनाव में आरक्षण के अनुपात को निर्दिष्ट करता है, जो 50 प्रतिशत की कुल आरक्षण सीमा से अधिक नहीं होनी चाहिए।
उच्च न्यायालय के फैसले के बाद योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि राज्य में शहरी स्थानीय निकाय चुनाव ओबीसी आरक्षण के बिना नहीं कराए जाएंगे और उन्होंने इस बाबत आयोग का गठन किया था। राज्य सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख भी किया था। शर्मा ने कहा, “उच्चतम न्यायालय में मामले की अगली सुनवाई 11 अप्रैल को होनी है। हम अगले कुछ दिनों में यह रिपोर्ट शीर्ष अदालत में पेश करेंगे।”
न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) राम अवतार सिंह के नेतृत्व वाले आयोग में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के सेवानिवृत्त अधिकारी चौब सिंह वर्मा और महेंद्र कुमार के अलावा राज्य सरकार के पूर्व कानूनी सलाहकार संतोष कुमार विश्वकर्मा और ब्रजेश कुमार सोनी शामिल हैं। विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने उच्च न्यायालय के फैसले के बाद योगी सरकार पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया था कि वह ओबीसी समुदाय के हितों की अनदेखी कर रही है।
मंत्रिमंडल की बैठक के बाद उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने ट्वीट किया, “सरकार शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27 फीसदी आरक्षण सुनिश्चित करने को प्रतिबद्ध है। राज्य मंत्रिमंडल ने उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद गठित ओबीसी आयोग की रिपोर्ट स्वीकार कर ली है। भाजपा पिछड़े वर्गों को उनके अधिकार दिलाने को समर्पित है। सपा, बसपा और कांग्रेस ओबीसी विरोधी हैं।