SGPGI से चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। यहां औसतन हर सप्ताह 100 नए कैंसर पेशेंट आ रहे हैं। यह मरीज अलग-अलग तरह के कैंसर के रोगी हैं। वहीं, प्रदेश में कोलोरेक्टल कैंसर के मरीजों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि अब 30 साल की उम्र की महिलाएं भी इसकी चपेट में आ रही हैं। समय पर रोग की पहचान न होने के कारण हालात बिगड़ते देर नहीं लग रही।
कैंसर OPD में नए मरीजों की भारी तादाद
SGPGI के सीनियर कैंसर विशेषज्ञ डॉ. नीरज रस्तोगी ने बताया, कैंसर रोगियों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है। हर सप्ताह करीब 100 नए कैंसर रोगी इलाज के लिए OPD में आ रहे हैं। इनमें से करीब 10% कोलोरेक्टल कैंसर के मरीज हैं। इसके अलावा OPD में पुराने मरीजों की भी बड़ी तादाद है, जिनका इलाज किया जाता है।
डॉ. नीरज रस्तोगी ने बताया कि नए मरीजों में महिलाओं की बड़ी संख्या है। हालांकि पुरुषों के मुकाबले अभी तादाद कुछ कम है। पर सबसे ज्यादा चिंता वाली बात यह है कि अब 30 साल की उम्र की महिलाएं भी इसकी चपेट में रही हैं।
यह वह उम्र है जब महिलाओं पर घर और परिवार चलाने की जिम्मेदारी होती है। वर्किंग वुमन के लिए भी यह समय बेहद अहम होता है। लेकिन कैंसर की जद में आने के बाद उनका करियर के साथ ही परिवार भी तबाह हो रहा है।
क्यों बढ़ रहे कोलोरेक्टल कैंसर के मामले
डॉ. नीरज रस्तोगी कहते हैं कि कोलोरेक्टल यानी बड़ी आंत के इस कैंसर के मामलों में आई तेजी के पीछे अनहेल्दी लाइफस्टाइल बड़ी वजह है। खान पान में आए बदलाव भी इसके पीछे बड़ा कारण है। डाइट में फाइबर की कमी के कारण यह बीमारी तेजी से मरीजों को अपने जद में ले रही है।
फल और सब्जी के सेवन में आई कमी भी इसके पीछे बड़ी वजह है। हालांकि बड़ी बात यह है कि पहले जहां 50 से 60 साल के बाद ऐसे लक्षण महिलाओं में सामने आते थे, अब यह 30 साल की उम्र में ही आ रहे हैं।
अमेरिका में घटे और भारत में बढ़े मामले
डॉ. नीरज रस्तोगी कहते हैं कि 1994 के दौर में अमेरिका में 100 कैंसर रोगियों में से 6 कोलोरेक्टल कैंसर पीड़ित थे। इसके पीछे बड़ी वजह वहां के खान पान की आदतें थीं। लोगों की नॉन वेजिटेरियन डाइट में रेड मीट जैसे हैवी फूड आइटम्स हावी रहते थे, पर समय के साथ लोगों में जागरूकता बढ़ी और सब्जियों और फल के अलावा फाइबर युक्त डाइट का सेवन ज्यादा किया जाने लगा। यही कारण है कि अब यह संख्या घटकर 100 में से महज 1 से 2 ही रह गई है।
वहीं भारत में हालात ठीक इसके उलट हैं। यहां 1994 के दौर में जहां 100 में से महज 2 से 3 मरीज इस बीमारी की चपेट में सामने आते थे, अब रिफाइंड फूड आइटम्स और नॉन वेज अधिक खाने से यह संख्या 100 में 8 से 10 तक पहुंच गई।
अब जानते हैं इसके इलाज के बारे में
डॉ. नीरज रस्तोगी कहते हैं कि सबसे राहत की बात यह है कि कोलोरेक्टल कैंसर के मरीजों का इलाज संभव है और इसका मोर्टेलिटी रेट भी अन्य कैंसर की अपेक्षा बेहद कम है। समय रहते यदि मरीज अस्पताल पहुंच रहा हैं तो कोलोनोस्कोपी के जरिए इसका पता लगाया जा सकता है।
इस विधि से जरूरत पड़ने पर बायोप्सी भी की जा सकती है। वहीं स्टूल में आ रहे ब्लड की जांच करके भी इसका पता लगाया जा सकता है। पुष्टि के बाद ऑपेरशन करके वाले भाग को हटाया जा सकता है और यदि एडवांस स्टेज तक पहुंच गया है तो कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी के जरिए भी इसका इलाज किया जा सकता है।
कोलोरेक्टल कैंसर होने के कारण
स्वस्थ कोशिकाओं के DNA में बदलाव के कारण हो सकता है। जब ऐसी कोशिकाएं जिनमें बदलाव होता है तो उनका विकास अनियंत्रित रूप से होने लगता है और कैंसर का रूप लेने लगता है।
कोलोरेक्टल कैंसर का खतरा अधिक फैट वाला आहार लेने, ज्यादा जंक फूड खाने, फाइबर युक्त चीजों का सेवन कम करने के कारण हो सकता है।
यह कैंसर अनुवांशिक भी हो सकता है, जिन्हें डायबिटीज, मोटापा हो, उन्हें भी इस कैंसर के होने की आशंका रहती है। धूम्रपान और शराब का अधिक सेवन करने वाले लोगों में भी कोलोरेक्टल कैंसर होने का खतरा होता है।
जिन्हें पहले से ही पेट में अल्सर या पेट संबंधित कोई समस्या बनी रहती हो तो उन्हें भी कोलोरेक्टल कैंसर होने का खतरा अधिक होता है।
कोलोरेक्टल कैंसर में होते हैं यह टेस्ट
डॉक्टर मरीज के लक्षणों को समझकर कुछ जरूरी टेस्ट करवाने के लिए कह सकते हैं। इनमें मल का ओकुल्ट ब्लड टेस्ट कराया जाता है। इसमें दो तरह के टेस्ट हो सकते हैं- एक होता है FOBT टेस्ट और दूसरा होता है फेकल इम्यूनोकेमिकल टेस्ट। एफआईटी टेस्ट इसका सबसे नया और बेहतर टेस्ट होता है। कोलोरेक्टल कैंसर का पता लगाने के लिए कोलोनोस्कोपी और बायोप्सी जैसे परीक्षण भी किए जाते हैं।