विधानसभा चुनाव में महज 10 महीने बचे हैं और भाजपा व कांग्रेस दोनों ही इलेक्शन मोड में आ गई है। लोकलुभावन बजट घोषणाओं के साथ जहां अशोक गहलोत ने कांग्रेस की चुनावी तैयारियों का संकेत दिया है, वहीं भाजपा भी इलेक्शन मोड में आकर माइक्रो लेवल एनालिसिस करने में जुटी है।
भाजपा परफेक्ट इलेक्शन प्लान के लिए राजस्थान में हुए पिछले तीन चुनावों(2008, 2013, 2018) के नतीजों का एनालिसिस करा रही है। इन कई बिंदुओं पर एनालिसिस कर भाजपा रणनीति बनाने में जुटी है।
- कौन सी सीटे हैं जहां भाजपा 1 चुनाव हारी? - कितनी सीटों पर 2 बार शिकस्त झेली? - कौन सी सीटें हैं, जहां पिछले तीनों चुनावों में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा? हार की वजह क्या रही? इन सवालों के जवाब पर डिटेल में एनालिसिस किया जा रहा है।
भाजपा का ये एनालिसिस ही विधानसभा चुनाव 2023 की रणनीति की धुरी बनेगा। इसके लिए प्रदेश मुख्यालय ने दो सीनियर नेताओं पूर्व मंत्री व अजमेर विधायक वासुदेव देवनानी और प्रदेश उपाध्यक्ष व रानीवाड़ा विधायक नारायण सिंह देवल को जिम्मेदारी दी है।
भाजपा ने 200 सीटों को पांच कैटेगरी में बांटा है। हर कैटेगरी के लिए जीत की अलग रणनीति तय की जा रही है। मसलन, बहुत कमजोर सीटें जहां भाजपा पिछले तीनों चुनावों में हारी, वहां पर केंद्रीय नेताओं सहित प्रदेश के प्रभावी नेताओं के दौरे करवाने की तैयारी है।
वहीं वे सीटें जिन पर पार्टी मजबूत तो है लेकिन मौजूदा विधायकों की एंटीइनकमबेंसी के कारण नुकसान की आशंका है, वहां इस बार चेहरे बदलने की भी कवायद होगी। इसके अलावा जिन सीटों पर पिछली बार टिकट बांटने के बाद बगावत के कारण पार्टी की हार हुई, उन पर नाराजगी दूर करने के लिए नेताओं की घर वापसी की तैयारी भी चल रही है।
पढ़िए मिशन 2023 के लिए भाजपा का एक्शन प्लान
कैटेगरी 1 : 37 सीटें जहां 2008 और 2013 में जीत, फिर 2018 में हार
जोधपुर, बिलाड़ा, नोहर, खाजूवाला, बीकानेर वेस्ट, तारानगर, पिलानी, खंडेला, विराटनगर, शाहपुरा, झोटवाड़ा, किशनपोल, आदर्शनगर, चाकसू, किशनगढ़बास, बहरोड, थानागाजी, रामगढ़, कठुमर, नगर, भरतपुर, नदबई, वैर, बयाना, बसेड़ी, मेड़ता, डेगाना, परबतसर, मारवाड़ जंक्शन, लोहावट, शेरगढ़, भोपालगढ़, जैसलमेर, सिरोही, प्रतापगढ़, भीम, नाथद्वारा।
रणनीति : ज्यादातर सीटों पर उतरेंगे नए चेहरे
भाजपा इन 37 सीटों को बेहद महत्वपूर्ण मानकर चल रही है। माना जा रहा है कि इन सीटों पर पार्टी का कैडर मजबूत है। यहां यह देखा जा रहा है कि 2008 और 2013 में अगर जीत हुई थी तो फिर 2018 में ऐसे क्या कारण रहे कि पार्टी ने सीट खो दी।
इन सीटों पर पिछली बार किन गलतियों के कारण हार हुई? क्या चेहरे का चुनाव गलत हुआ? क्या पिछली बार जो विधायक था उसे लेकर क्षेत्र में नाराजगी थी? कार्यकर्ता चुनाव में निष्क्रिय हुआ, मैनेजमेंट सही नहीं था या अचानक समीकरण बदल गए? इन 37 सीटों पर वापसी के लिए ज्यादा संभावना है कि अधिकतर नए चेहरे उतारे जाए।
कैटेगरी 2 : 58 सीटों पर 2008 में हार, 2013 में जीत, 2018 में फिर हार
करणपुर, हनुमानगढ़, भादरा, श्रीडूंगरगढ़, सुजानगढ़, धोद, नीमकाथाना, श्रीमाधोपुर, दूदू, जमवारामगढ़, हवामहल, सिविल लाइंस, बगरू, तिजारा, अलवर ग्रामीण, कामां, हिंडौन, बांदीकुई, महुवा, दौसा, गंगापुरसिटी, बामनवास, सवाई माधोपुर, खंडार, निवाई, टोंक, देवली-उनियारा, किशनगढ़, मसूदा, केकड़ी, लाडनूं, डीडवाना, जायल, नावां, ओसियां, लूणी, पोकरण, शिव, बायतू, पचपदरा, गुढ़ामालानी, चौहटन, खैरवाड़ा, डूंगरपुर, सागवाड़ा, चौरासी, बांसवाड़ा, कुशलगढ़, बेगूं, निंबाहेड़ा, मांडल, सहाड़ा, पीपल्दा, सांगोद, कोटा नोर्थ, अंता, किशनगंज, बारां-अटरू।
रणनीति : बड़े नेताओं के दौरे और कांग्रेस की खामियों के प्रचार पर जोर
ये ऐसी सीटें हैं, जिन्हें भाजपा कमजोर सीटों की श्रेणी में मानकर चल रही है। यहां भाजपा को 2013 में जीत सिर्फ इसलिए मिल पाई कि कांग्रेस सरकार की एंटीइनकमबेंसी थी। यहां भाजपा का कैडर कमजोर है। बूथ कमेटियों और पन्ना प्रमुख तैनाती की के साथ भाजपा की रणनीति इस बार इन सीटों पर ऐसी होगी कि यहां कांग्रेस सरकार के विरोध में माहौल बनाया जाए।
यहां जातिगत आधार पर बड़े नेताओं की चुनावी रैलियों की तैयारी भी रहेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह समेत केंद्रीय नेताओं के दौरे भी होंगे। कांग्रेस सरकार की नीतियों की विफलता का प्रचार करने के हिसाब से पार्टी के सोशल मीडिया सेंटर को तैयार किया जा रहा है। करीब 45 हजार वॉट्सऐप ग्रुप के जरिए सरकार की खामियों को लोगों तक पहुंचाया जाएगा। पार्टी मुख्यालय में अलग से ‘वाट्सऐप वाॅर रूम’ बनाया जा रहा है।
कैटेगरी 3 : 31 सीटें, जहां पिछले दोनों चुनाव जीते
सूरतगढ़, अनूपगढ़, सांगरिया, चुरू, मालपुरा, पुष्कर, नसीराबाद, जैतारण, सुमेरपुर, फलौदी, आहोर, जालोर, रानीवाड़ा, पिंडवाड़ा-आबू, गोगूंदा, उदयपुर ग्रामीण, मावली, सलूंबर, धरियावद, आसपुर, घाटोल, गढ़ी, कपासन, चितौड़गढ़, बड़ी सादड़ी, शाहपुरा (भीलवाड़ा), मांडलगढ़, केशोरायपाटन, छबड़ा, डग, मनोहरथाना।
रणनीति : हार से बचने के लिए काटेंगे कई टिकट
2008 में हार के बाद 2013 और 2018 में लगातार इन सीटों पर भाजपा ने चुनाव जीता है। इसलिए यहां भाजपा थोड़ी राहत में है। लेकिन इन सीटों में से कहीं कोई समीकरण बिगड़ने से हार नहीं हो जाए इसके लिए पार्टी की रणनीति बन रही है। ऐसी सीटों पर कोशिश रहेगी कि मौजूदा विधायक की अगर जनता में एंटीइनकमबेंसी नहीं है तो ही टिकट दिया जाए अन्यथा टिकट में बदलाव करके नए चेहरे को उतारा जा सकता है।
कैटेगरी 4 : 19 सीटें जहां तीनों चुनाव हारी भाजपा
बस्सी, बागीदोरा, वल्लभनगर, सांचौर, बाड़मेर, सरदारपुरा, लालसोट, सिकराय, सपोटरा, टोडाभीम, बाड़ी, राजगढ़-लक्ष्मणगढ़, कोटपूतली, दांतारामगढ़, लक्ष्मणगढ़, फतेहपुर, खेतड़ी, नवलगढ़, झुन्झुनूं।
रणनीति : जातीय समीकरणों की स्टडी
भाजपा पिछले तीन चुनाव हार चुकी है। ये ऐसी सीटें हैं जहां जातीय समीकरण और स्थानीय मुद्दे ऐसे हैं कि भाजपा हर बार मुंह की खा जाती है। इस बार यहां किस तरह से रणनीति बनाई जाए यह भाजपा के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है। बताया जा रहा है कि यहां के जातीय समीकरणों की स्टडी की जा रही है। इस बार यहां चेहरों के चयन में खास पैरामीटर देखे जाएंगे। इन क्षेत्रों में भाजपा अपने केंद्रीय नेताओं और प्रदेश के सीनियर नेताओं के दौरे और सभाएं कराने की भी तैयारी कर रही है।
कैटेगरी 5 : 28 सीटों पर तीनों चुनाव जीती भाजपा
बीकानेर ईस्ट, रतनगढ़, फुलेरा, विद्याधरनगर, मालवीयनगर, सांगानेर, अलवर शहर, अजमेर नोर्थ, अजमेर साउथ, ब्यावर, नागौर, सोजत, पाली, बाली, सूरसागर, सिवाना, भीनमाल, रेवदर, उदयपुर, राजसमंद, आसींद, भीलवाड़ा, बूंदी, कोटा साउथ, लाडपुरा, रामगंजमंडी, झालरापाटन, खानपुर।
रणनीति : एंटीइनकमबेंसी से बचने के लिए नए चेहरों को मिलेगा माैका
इन सीटों पर भाजपा ने पिछले तीनों चुनाव लगातार जीते हैं। ये भाजपा की सबसे मजबूत सीटों में गिनी जाती है। भाजपा इस बार भी इनको जीतने की रणनीति पर काम कर रही है। उदयपुर सीट से पिछली बार विधायक रहे गुलाबचंद कटारिया अब असम के राज्यपाल बन चुके हैं। इसलिए यहां से नया चेहरा तय है।
जिन सीटों पर मौजूदा विधायकों की उम्र ज्यादा हो चुकी है और जहां लगातार एक ही चेहरे के बार--बार चुनाव लड़ने से लोगों में बदलाव की जरूरत महसूस होगी, भाजपा अपने आंकलन के हिसाब से नये चेहरे उतार सकती है।
हर सीट पर एक अनुभवी नेता होगा तैनात, एक साल तक वहीं रहेगा
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया और प्रदेश महामंत्री चंद्रशेखर ने लगभग 170 सीटों पर एक-एक अनुभवी नेता को विस्तारक के रूप में एक साल तक जिम्मेदारी देना तय किया है। यह काम पूर्व मंत्री देवनानी और भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष देवल देख रहे हैं।
देवनानी कहते हैं- हम सभी 200 विधानसभा सीटों के लिए अपने चुनाव अभियान की रणनीति बना रहे हैं। ज्यादा फोकस 170 सीटों पर हैं। जहां हम ऐसी रणनीति बना रहे हैं कि इस बार तीन-चौथाई सीटें जीत कर सरकार में वापसी करें। पार्टी कुछ सीटें पिछले तीन चुनाव में लगातार जीतती आ रही है। 19 सीटें ऐसी हैं जो हम पिछले तीनों चुनाव में हार गए। इसके अलावा कुछ सीटें दो चुनाव में जीते तो कुछ सीटें दो में से एक चुनाव में ही जीती। सभी सीटों पर पार्टी के अनुभवी और एक्टिव नेताओं को विस्तारक के रूप में नियुक्त करेंगे। प्रत्येक सीट की ग्राउंड पर स्थिति, जातीय समीकरण, जीतने वाले चेहरों पर मंथन जैसे कई काम हैं जो पार्टी कर रही है। पन्ना प्रमुख, बूथ प्रमुख प्रभावी ढंग से तय कर रहे हैं।
मोदी की सभाएं यहां संभव
भीलवाड़ा और दौसा में सभाएं करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही मिशन राजस्थान की शुरुआत कर चुके हैं। आने वाले दिनों में उनकी श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, झुंझुनूं, सीकर, जयपुर, नागौर, जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा जैसे इलाकों में भी सभाएं होंगी।
प्रदेश में चुनाव तक उनका जोर उन संभाग और जिलों पर होगा जहां भाजपा की स्थिति कमजोर है। सीकर, भरतपुर, करौली, दौसा, सवाईमाधोपुर, जैसलमेर जिलों में भाजपा की एक भी सीट नहीं है। अकेले इन छह जिलों में विधानसभा की कुल 29 सीटें हैं, जिनमें से भाजपा की स्थिति शून्य है। अलवर जिले की कुल 11,जोधपुर की 10, बाड़मेर की 7 में से भाजपा के पास सिर्फ 2-2 सीटें हैं। जयपुर जो कभी भाजपा का गढ़ कहलाता था, अभी 19 में से भाजपा के पास मात्र 6 सीटें ही है।
पिछली बार पार्टी छोड़ने वाले नेताओं की अब घर वापसी होगी
पिछले चुनाव में जिन सीटों पर बगावत हुई और जिन नेताओं के कारण पार्टी हारी, उनको बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। दिल्ली में पिछले माह हुई राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में पीएम मोदी ने पार्टी के खिलाफ चुनाव लड़ने वालों को फिर से पार्टी से जोड़ने के लिए कहा था। ऐसे में इस बार चुनाव से पहले बागियों को वापस पार्टी में लाने की कवायद भी तेजी से चल रही है।
इसके लिए पार्टी ने पिछले दिनों प्रदेश स्तरीय कमेटी भी गठित की थी। अब यह कमेटी पार्टी के संगठन के हिसाब से 44 जिलों से ऐसे नेताओं की जानकारी मांग रही है, जो पिछले चुनाव में पार्टी छोड़ गए या बाहर निकाल दिए गए। इनकी घर वापसी जल्द ही शुरू होने की संभावना है। कुछ नेताओं की जिला स्तर पर वापसी होगी और कुछ नेताओं को प्रदेश स्तर पर फिर से पार्टी की सदस्यता दिलाई जाएगी।
फिर से सत्ता में आने के लिए फोकस पॉइंट
1. माइक्रो लेवल पर स्टडी : मुद्दे क्या हैं, जातिगत समीकरण क्या हैं, क्यों हार रहे हैं, सीट की सामाजिक और भौगोलिक स्थिति, पिछली बार जिनको टिकट दिए गए उनका भी एनालिसिस किया जा रहा है।
2. प्लानिंग, एक्जीक्यूशन और मॉनिटरिंग : जातिगत समीकरण देखते हुए संगठन को मजबूत बनाया जाएगा। नरेंद्र मोदी, अमित शाह जेपी नड्डा सहित बड़े नेताओं के दौरे ज्यादा होंगे। डेढ़ सौ नेता विस्तारक के रूप में तैनात होंगे। फुल टाइम, अनुभवी और रणनीतिकारों को एक-एक सीट पर जिम्मेदारी देंगे। ये नेता अधिकतर दूसरे विधानसभा क्षेत्रों के होंगे।
इनको एक साल तक क्षेत्र में रहकर बूथ कमेटियों, पन्ना प्रमुख नियुक्ति और वेरिफिकेशन के साथ वहां के समीकरणों पर बारीकी से नजर रखनी होगी। जो भी मुद्दा या समीकरण पैदा हो, उसके बारे में तत्काल प्रदेश नेतृत्व की जानकारी में लाना होगा।
3.सक्रिय और साफ छवि वाले विधायक को ही टिकट: यह देखा जाएगा कि लगातार जीतने वाले विधायक की इस बार क्षेत्र में नाराजगी तो नहीं, भ्रष्टाचार या छवि को लेकर तो कोई मुद्दा नहीं? सक्रिय और साफ छवि वाले नेताओं को ही टिकट दिया जाएगा। स्थानीय स्तर पर संगठन को और मजबूती से काम करने के लिए एक्टिव किया जाएगा।
4. सर्वे भी कराए जा रहे हैं : पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की ओर से इंटरनल सर्वे भी कराए जा रहे हैं। कुछ एजेंसियों के जरिए हो रहे हैं, कुछ सर्वे केंद्रीय नेतृत्व के स्तर पर भी हो रहे हैं। सर्वे भी प्रत्याशी चयन के लिए आधार होंगे।