There’s no other love like the love for father. There’s no other love like the love from father.
ये लिखा था आज से हफ्ते भर पहले अपने बीमार पिता को निहारते उनका सर अपनी गोद मे लेकर सय्यद अम्मार ज़ैदी ने , आज सुबह ख़बर आयी कि अब्बू नही रहे , नही रहे पिहानी वाले नबाब सय्यद अज़ादार हुसैन ज़ैदी साहब । काफी समय से अपनी नासाज़ तबियत के चलते लखनऊ के विवेकानन्द अस्पताल में भर्ती अज़ादार हुसैन साहब आज रुख़सत हो गए हमेशा के लिए ।
उनके निधन की खबर आने पर पिहानी से लेकर पूरे हरदोई में मातम पसर गया क्योंकि ज़नाब अज़ादार हुसैन साहब की शख़्सियत ही कुछ इतनी अज़ीम थी कि जो उनको जानता और समझता था वो उनका मुरीद होता ही होता था । इस दुःखद ख़बर के आने पर तमाम आम और खास लोगों ने अपने अपने तरीके से अज़ादार हुसैन साहब को याद किया ।
पिहानी के शफीउल्लाह खान लिखते हैं कि
उस्तादे मोहतरम आली जनाब नवाब सय्यद अज़ादार हुसैन ज़ैदी साहब ने भी आज इस दुनियाएं फ़ानी को अलविदा कह दिया हालांकि जाना सभी को है एक दिन मगर कुछ लोगों का जाना बेहद अफ़सोसनाक और एक दौर के ख़ात्मे (युग के अंत) जैसा होता है । मास्टर साहब पिहानी के बेहद मिलनसार , हमदर्द तबीयत और बज़ादार शख्सियत थे । वो हमारे वालिद साहब के दोस्त तो क्या बल्कि बड़े भाई जैसे थे और हमेशा हम लोगों के साथ इसी बड़प्पन और हमदर्दी के जज़्बे के साथ हर सुख दुःख में शरीक़ रहते थे । मुझे उनकी एक आदत जो आज के ज़माने में ढूंढे से भी लोगों के अंदर नहीं मिलती , बेहद पसंद थी , वो ये कि उन्हें जब भी ये मालूम होता कि हमारे परिवार का कोई काम कहीं अटका हुआ है तो वो बिना बुलाये ख़ुद घर पर आ जाते और उस मसले को हल करने में उनके जो भी वसाएल होते न सिर्फ़ बता देते बल्कि पूरे ख़ुशु खुज़ू के साथ लगा देते । उनका ये तरीक़ा सिर्फ़ हमारे ही साथ नहीं बल्कि पिहानी के तमाम लोगों के साथ था । कुछ लोग मेरी ज़िंदगी मे ऐसे हैं जिन्हें देखकर मेरे अंदर ख़ुद ब ख़ुद ऐहतराम का जज़्बा बेदार हो जाता है। उन्हीं में एक शख्सियत मास्टर साहब भी थे ।
मास्टर साहब को देखकर पिहानी के नवाबी दौर की यादें ताज़ा हो जाती थीं उनका रहन सहन , उनका लिबास , उनका अंदाज़ , उनका लहज़ा और उनकी वज़ादारी बेशक़ उम्दा और आला थीं । बेशक़ उनके जाने से पिहानी से एक शख़्स नहीं बल्कि एक दौर का ख़ात्मा हुआ है ।
हरदोई के अनुपम पांडेय लिखते हैं कि
इस खबर से मुझे बहुत तकलीफ़ हो रही है ,अम्मार के घर पर हम लोग अक्सर जाते थे और वो हम लोगो के पास ज़रूर बैठने आ जाते थे ,ख़ूब बातें करते थे ।अम्मार के घर की रौनक़ आम शहरी से फ़ाज़िल सिर्फ़ उनके अब्बू थे ।उनके घर पर मुझे ख़ुद एक अध्यापक पुत्र होने के नाते ज़्यादा सुकूंन और ख़ुशी होती थी । मुझे हमेशा उनकी कमी खलेगी ।भगवान उन्हें जन्नत दें ।
नोयडा से सर्वेश मिश्र लिखते हैं कि
अम्मार भाई के घर जब भी जाना हुआ तो चाचा जी से हमेशा मुलाकात हुई वो बहुत खुश होकर स्वागत करते थे और प्यार से अपने अनुभव बताते रहते थे।
हम सब को उनसे बहुत प्यार था, उनका चला जाना बहुत दुखद है और पिहानी ने एक जिम्मेदार शहरी एक अभिभावक को खो दिया। इस दुख की घड़ी में हम सब अम्मार भाई के साथ है और ईश्वर से प्रार्थना करते हैं की उनको और परिवार को इस दुख को सहन करने की शक्ति दे ।
ज़नाब अज़ादार हुसैन साहब से जुड़े संस्मरणों को साझा करने वालों की संख्या अनगिनत है , उनकी रूह की शांति के लिए की जा रही प्रार्थनाएं अनगिनत हैं । Khanzar Sutra की पूरी टीम की तरफ से अब्बू ज़नाब अज़ादार हुसैन ज़ैदी साहब को भावभीनी श्रद्दांजलि ।