प्रदेश के मुखिया के बजट भाषण को लेकर जिस तरह की मार्केटिंग की गई, वह सत्ताधाारी पार्टी में अब तक कभी नहीं की गई। राजधानी से लेकर दूर दराज के गांव तक स्कूल-कॉलेज से लेकर सरकारी दफ्तरों तक लोगों को इकट्ठा करके बजट भाषण सुनाने के इंतजाम किए गए। इन इंतजामों के रंग में भंग तब पड़ गया जब मुखिया ने बजट भाषण में तीसरा ही पेज पिछले साल के बजट का जुड़ गया।
पहली बार इस तरह की महागलती हुई, विपक्ष को मुंह मांगी मुराद मिल गई। जितनी चर्चा चुनावी बजट की हुई उससे कई गुणा ज्यादा चर्चा तो इस बात की हो रही है कि आखिर इतने बड़े बड़े अफसरों के हाथों से गुजरने के बाद भी बजट भाषण में पुराना पन्ना कैसे जुड़ गया? सियासी जानकार इसके पीछे दो ही कारण बता रहे हैं, या तो किसी अपने ने साजिश की है, या टॉप लेवल के सिस्टम में ही टाइटेनिक इफेक्ट आ गया। कॉन्सपिरेंसी थ्योरी से इनकार नहीं किया जा सकता। इस घटना ने नरेटिव जरूर बदल दिया है, आगे अब गलती की कौन क्या कीमत चुकाता है इसका इंतजार है?
संगठन के मुखिया ने क्यों की राजे के मंत्री की तारीफ?
सत्ताधारी और विपक्षी पार्टी के नेताओं के बीच ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है जब दोनों एक दूसरे की तारीफ करें। आम तौर पर दोनों एक दूसरे को कोसने का कोई मौका नहीं छोड़ते, लेकिन पिछले दिनों शेखावाटी वाले नेताजी ने इस परिपाटी से अलग हटकर बयान दिए। सत्ताधारी पार्टी के मुखिया पिछले दिनों सबसे प्रभावशाली नेता का दिया असाइन्मेंट पूरा करने अपनी जन्मभूमि के दौरे पर थे। संगठन के मुखियाजी लोगों की मांगों पर चर्चा कर रहे थे तो सड़कों का जिक्र आया। सड़क की बात आते ही उन्होंने विपक्षी राज के दौरान सरकार में नंबर टू माने जाने वाले पावरफुल पीडब्ल्यूडी मंत्री की तारीफों के पुल बांध दिए। यह तारीफ वाला वीडियो अब मारवाड़ और शेखावाटी से लेकर राजधानी तक सियासी चर्चा का मुद्दा बन गया है। अब इस तारीफ के मायने निकाले जा रहे हैं, कहीं कोई नया सियासी समीकरण तो नहीं बन रहा है। यूं भी प्रदेश की पुरानी मुखिया के प्रति मौजूदा सत्ताधारी संगठन के मुखिया के तेवर नरम ही रहे हैं। वैसे दोनों नेता गुरुभाई भी हैं, तारीफ के पीछे वह स्कूली रिश्ता भी हो सकता है।
सत्ताधाारी पार्टी की यूथ विंग में मेंबरशिप लीक, फर्जी वोटर पकड़ने बनाया ऐप
सत्ता और संगठन के लिए लीक शब्द लगातार समस्याएं पैदा कर रहा है। पेपरलीक का विवाद खत्म नहीं हुआ कि सत्ताधारी पार्टी की यूथ विंग के चुनावों में भी लीक की गूंज सुनाई देने लग गई। यूथ विंग में चुनावी धांधली का विवाद नया नहीं है, पहले भी खूब हल्ला मचा था। पिछली बार तो ऑनलाइन वोटिंग ही हैक हो गई थी। इस बार भी मेंबरशिप को लेकर टेंपरिंग ओर हैकिंग के आरोपों की गूंज सुनाई दे रही है। वोटिंग में गड़बड़ी मेंबरशिप से ही शुरू होती है, शिकायत दिल्ली पहुंची तो रातोंरात नेता दौड़ कर आए। अब हैंकिंग और टैंपरिंग का तोड़ निकालने के लिए नया ऐप बनाया गया है, यह एप फर्जी मेंबरशिप को पकड़ेगा। कुल मिलाकर विवाद की शुरुआत हो चुकी हे, बात दूर तक जाएगी।
मुंबई के नेता के दिल्ली दौरे का राजस्थान के विवाद से कनेक्शन
सियासत में कई बार नेताओं का मूवमेंट और दौरे बहुत कुछ तय करते हैं। सत्ताधारी पार्टी में टॉप लेवल पर चल रहे विवाद का अंत होते नहीं दिख रहा, शह मात का खेल लगातार जारी है। युवा नेता और प्रदेश के मुखिया के बीच अब भी कोल्ड वॉर नए रूप में सामने आ गया है। इस विवाद को लेकर पार्टी के राष्ट्रीय लेवल पर दखल वाले नेताओं के आकलन भी निराले हैं। एक नेताजी ने पिछले दिनों मुंबई के एक नेताजी से राजस्थान के विवाद का कनेक्शन जोड़ दिया। नेताजी का तर्क था कि मुंबई के नेताजी जब भी दिल्ली दौरे पर जाते हैं तो राजस्थान में कुछ न कुछ अशांति हो जाती है, चाहे यह अशांति बयानों की ही हो। अब नेताजी का यह आकलन उनका अपना है लेकिन बात में दम भी है।
विपक्षी पार्टी में नए समीकरणों से याद आई कबीर की उलटबांसियां
कबीर की उलटबांसियों की तरह पिछले दिनों एक रोचक सियासी मिलन हुआ। अब तक जिस नेता के साथ छत्तीस का आंकड़ा माना जाता था उस नेता ने एक सांसद के साथ एक चर्चित केंद्रीय मंत्री से मुलाकात की। इस मुलाकात का फोटो सामने आने के बाद हर कोई हैरान है। हैरानी इस बात की है कि दक्षिणी राजस्थान से जुड़े संघनिष्ठ नेता के साथ सांसद और उनके परिजनों की सियासी सुलह कैसे हो गई? सियासी जानकार इस मुलाकात को नई सियासी घटना के तौर देख रहे हैं।
नेता पत्नी के सियासी सपने और सोम शर्मा की कहानी
विपक्षी पार्टी में चेहरों की लड़ाई के बीच रोज कोई न कोई समीकरण बन बिगड़ रहे हैं। कौन किसके साथ है और किसके खिलाफ इसका भी पुख्ता ठौर ठिकाना नहीं है। विपक्षी पार्टी के नेताजी की पत्नी ने अपने फ्रेंड सर्किल में बाकायदा उन्हें सीएम चेहरा घोषित कर दिया, यही नहीं आगे की सियासी व्यूह रचना भी बता दी। नेताजी की पत्नी के प्लान के मुताबिक आगे प्रदेश संभालने के बाद परिवार से ही अगला टिकट मिलना है। नेता पत्नी की खुशफहमी वाले इस प्लान की बात सियासी गलियरों तक पहुंच गई। इस पूरे मामले में एक नेताजी ने जोरदार तंज कसते हुए कहा कि सब कुछ पाल लीजिए, लेकिन गलतफहमी नहीं पालनी चाहिए, इस अति उत्साह में कहीं सोम शर्मा की कहानी नहीं दोहरा दी जाए, मतलब जो हाथ में है उससे कहीं हाथ न धो बैठें।
नए जिलों की घोषणा पर क्यों लगा ब्रेक, कमेटी मतलब काम अटकाना
प्रदेश के बजट में नए जिले और संभागों की घोषणा नहीं होने से पक्ष-विपक्ष के कई नेताओं की परेशानियां बढ़ा दी हैं तो कई इसे आगे की राजनीति का रास्ता देख रहे हैं। जिलों की कमेटी की रिपोर्ट भी तैयार है, केवल इशारे का इंतजार है। नए जिले बनाने में सियासी फायदे से ज्यादा नुकसान की भी आशंका है, इसी वजह से मुखिया सोच समझकर ही कदम उठाने के पक्ष में हैं। मुखिया हवन करते हुए हाथ जलाने के मूड में नहीं है इसलिए मामला होल्ड पर रखा है। नए जिलों पर एक रोचक संयोग भी है। नए जिलों को लेकर पिछली तीन सरकारों में तीन रिटायर्ड आईएएस अफसरों की कमेटियां बनीं, हर कमेटी ने आखिरी साल में ही सरकार को रिपोर्ट दी लेकिन जिले नहीं बने। कई नेता तो अब कहने लगे हैं कि कमेटी बनाने का मतलब ही काम अटकाना होता है। जिले की मांग को लेकर नंगे पैर घूम रहे विधायक को पूरी उम्मीद थी, इसलिए उन्होंने नए जूते मंगवा लिए लेकिन बजट भाषण के बाद उन्हें वापस भिजवाना पड़ा, विधायक को अब आगे बजट बहस के जवाब और बजट पारित होने वाले दिन से उम्मीद है कि शायद मुराद पूरी हो जाए।
चर्चित उद्योगपति ने क्यों रोका राजस्थान में बड़ा निवेश?
निवेश के लिए बुलाए गए इंवेस्ट राजस्थान समिट में बढ़चढ़कर एमओयू करने वाले प्रसिद्ध और चर्चित उद्योगपति ने निवेश को होल्ड पर रख दिया है। इस उद्योगपति ने 60 हजार करोड़ से ज्यादा निवेश की घोषणा की थी। इसे लेकर सत्ताधारी पार्टी और विपक्ष के बीच खूब बयानबाजी भी हुई थी। उद्योगपति का पहले भी एनर्जी और कई सैक्टर में निवेश है। ग्रुप पिछले दिनों एक रिपोर्ट को लेकर विवाद में आया तो अब राजस्थान में होने वाला निवेश फिलहाल होल्ड पर रख दिया है। अब यह होल्ड कितने दिनों तक चलेगा, इसका समय तय नहीं है। विवाद से हालात सामान्य होने तक कुछ वक्त लगेगा, तब तक चुनावी समय नजदीक आ जाएगा। चुनाव तक निवेश नहीं हुआ तो सत्ताधाारी पार्टी को तो पर्सेप्शन के मोर्चे पर नुकसान होना ही है।