8 दिसंबर 1971: भारत-पाकिस्तान युद्ध में पूर्वी सीमा पर तैनात एक पायलट को हुक्म मिला कि पाकिस्तान की सेना पर बम गिराए जाएं। उनका कोड था- गुड वाइफ।
पायलट अपने मिशन पर निकला। उनकी फ्रीक्वेंसी को पाकिस्तानी रडार ने भी इंटरसेप्ट कर लिया। पायलट को कमांड मिली- दिस इज योर गुड वाइफ। हमला करो। पायलट ने हमला शुरू कर दिया, तभी एक और आवाज आई- दिस इज योर रियल गुड वाइफ। हमला मत करो। पायलट कंफ्यूज हो गए, लेकिन आवाज के लहजे से समझ गए कि दिस इज योर रियल गुड वाइफ कहने वाला पाकिस्तानी है।
पायलट के लिए पाकिस्तान ने जो जाल बिछाया था, पायलट उसमें नहीं फंसे और मिशन को अंजाम देकर निकल गए। अपनी चालाकी से मौत को मात देने वाला यह पायलट राजेश्वर प्रसाद बिधूरी था, जो आगे चलकर राजेश पायलट हुआ।
उन्हीं राजेश पायलट का आज जन्मदिन है। दस्तावेजों के मुताबिक आज (10 फरवरी) उनका जन्म दिन है, लेकिन तमाम पुराने भारतीयों की तरह कागजों में यह तारीख किसी और कारण से लिखी गई होगी। दरअसल, उनका असली जन्मदिन दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा के दिन होता है।
ऑमलेट के लिए दूसरों के होमवर्क किए
राजेश्वर प्रसाद बिधूरी के राजेश पायलट बनने की कहानी शुरू होती है, दिल्ली के उन पॉश बंगलों से, जहां वे दूध बेचा करते थे। पिता के निधन के बाद राजेश्वर लुटियंस दिल्ली के कई बंगलों और पार्लियामेंट में भी दूध सप्लाई करते थे। वे रोज सुबह उठकर मवेशियों को चारा खिलाने, दूध दुहने के बाद दूध बांटने जाते थे और फिर दिल्ली के ही अंग्रेजी मीडियम वाले म्यूनिसिपल बोर्ड स्कूल में पढ़ने जाते थे।
जब दिल्ली में बहुत ठंड होती थी तो राजेश्वर के पास इससे बचने के बहुत अच्छे संसाधन नहीं थे। व गर्मी पाने के लिए कई बार भैंस से चिपक कर सो जाया करते थे।
गरीबी की स्थिति ऐसी थी कि एक ऑमलेट के लिए अपने साथ पढ़ने वाले स्टूडेंट्स का होमवर्क किया करते थे। स्कूल में दौड़ में भाग ले रहे राजेश्वर को इसलिए बाहर कर दिया गया था क्योंकि उनके पास जूते नहीं थे, हालांकि जब उन्होंने प्रिंसिपल को अपनी स्थिति बताई तो न सिर्फ दौड़ने को मिला, बल्कि कपड़े भी मिले।
वायुसेना में स्क्वाड्रन लीडर पद पर काम कर रहे राजेश्वर के मन में ख्याल आया- पत्नी वकील है, बेटा-बेटी ठीक से पढ़ जाएंगे, तो मेरे परिवार का पेट तो भर जाएगा, लेकिन मेरे जैसे बाकि लोगों का क्या होगा, जो इतनी गरीबी झेल रहे हैं।
नौकरी के बाद पेंशन लेकर तो यह काम नहीं किया जा सकता, इसलिए राजनीति में आना जरूरी है। उन्होंने मन बनाया और तय किया कि अब वायुसेना की नौकरी छोड़नी होगी।
राष्ट्रपति से ली मंजूरी
उन्होंने इस्तीफा दे दिया, लेकिन वायुसेना उनका इस्तीफा स्वीकार ही नहीं कर रही थी। परेशान होकर राजेश्वर किसी तरह तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के पास पहुंच गए और अपनी बात कही।
सेना के सर्वोच्च कमांडर राष्ट्रपति ने उनकी गुजारिश पर लिख भी दिया कि इन्हें वायुसेना छोड़ने की इजाजत दी जाए। आखिरकार उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया। 1980 के लोकभा चुनाव आ गए थे।
इंदिरा से कहा- सलाह नहीं, आशीर्वाद लेने आया हूं
इसके बाद वे तत्काल इंदिरा गांधी के पास पहुंचे और तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ने की इच्छा जताई।
इंदिरा गांधी ने कहा कि मैं आपको सलाह नहीं दूंगी कि आप राजनीति में आएं। वायुसेना में आपका भविष्य उज्ज्वल है। पायलट ने जवाब दिया कि मैं सलाह लेने नहीं, आपका आशीर्वाद लेने आया हूं। मैं इस्तीफा दे चुका हूं। इंदिरा गांधी ने कहा कि देखते हैं।
कुछ समय बाद कांग्रेस की पहली सूची आई तो राजेश्वर का नाम गायब था। वे परेशान हो गए। कोशिश जारी रही। एक दिन राजेश्वर अपने घर पर नहीं थे। फोन आया तो उनकी पत्नी रमा ने उठाया। उनसे कहा गया कि राजेश्वर प्रसाद से कहें कि संजय गांधी ने बुलाया है।
थोड़ी देर बाद राजेश्वर स्कूटर पर घर पहुंचे तो पत्नी ने उन्हें घर में घुसने से पहले कहा कि जल्दी चलो, संजयजी ने बुलाया है। वे संजय गांधी के पास पहुंचे। उनसे कहा गया कि आपके लिए इंदिराजी का मैसेज है, आपको भरतपुर से चुनाव लड़ना है।
इंदिरा गांधी के मैसेज के बाद भी राजेश्वर की राह इतनी आसान नहीं थी, क्योंकि भरतपुर सीट से राजस्थान कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष जगन्नाथ सिंह पहाड़िया अपनी पत्नी को चुनाव लड़वाना चाहते थे। राजेश्वर चुनाव न लड़ पाएं, इसके लिए कई नाकामयाब साजिश भी की गई।
नाम गधा लिखवाओ, लेकिन चुनाव जिताओ
राजेश्वर जब भरतपुर पहुंचे तो किसी ने उन्हें नहीं पहचाना, क्योंकि वहां सबको मैसेज था कि इंदिरा गांधी ने किसी पायलट को चुनाव लड़ने के लिए भेजा है।
जब उन्होंने नामांकन फार्म में राजेश्वर प्रसाद बिधूरी नाम लिखा तो पीछे से किसी ने कहा कि हम किसी राजेश्वर प्रसाद को नहीं जानते, हम सिर्फ पायलट को जानते हैं।
राजेश्वर ने कहा कि चाहे नाम गधा लिखवा लो, लेकिन चुनाव जितवाओ। इसके बाद 2 रुपए के स्टाम्प पेपर पर शपथ पत्र के साथ राजेश्वर प्रसाद बिधूरी राजेश पायलट हो गए।
प्लेन क्रैश वाले दिन संजय गांधी के साथ होते राजेश पायलट
22 जून 1980। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी ने राजेश पायलट से कहा कि कल सुबह जल्दी सफदरजंग एयरपोर्ट पहुंच जाना।
पायलट बोले- कल तो मेरठ से कुछ किसान मिलने आ रहे हैं। संजय ने कहा कि ये सब मैं नहीं जानता, कल सुबह तुम एयरपोर्ट पहुंच जाना।
23 जून की सुबह राजेश पायलट किसानों से जल्दी-जल्दी मिल रहे थे। उन्होंने स्टाफ से गाड़ी लाने को कहा। पता चला कि ड्राइवर नहीं है।
राजेश पायलट ने अपना स्कूटर निकाला, लेकिन स्कूटर भी स्टार्ट नहीं हुआ तो वे सफदरजंग एयरपोर्ट के लिए टैक्सी ढूंढने निकले। टैक्सी भी नहीं मिली।
उन्हें वापस घर लौटना पड़ा और थोड़ी देर बाद पता चला कि संजय गांधी का प्लेन क्रैश हो गया है। यदि पायलट समय पर एयरपोर्ट पहुंच जाते तो प्लेन की कॉकपिट पर संजय गांधी के साथ वे भी बैठे होते।
समय अपनी रफ्तार से बढ़ता गया। राजेश पायलट ने भी राजनीति में जड़ें गहरी कर लीं। वे अकसर कुर्ता और धोती पहनते थे और अपने आप को किसान नेता प्रोजेक्ट करते थे।
इस बीच कुछ चुनाव जीते तो एक लोकसभा चुनाव हारे भी। पीवी नरसिम्हा राव सरकार में उन्हें गृह राज्य मंत्री बनाया गया। पीवी नरसिम्हा राव उन्हें इतना पसंद करते थे कि तत्कालीन गृह मंत्री के सामने भी उन्हें मिस्टर होम मिनिस्टर कहते हुए संबोधित करते थे।
11 जून 2000। कांग्रेस नेता राजेश पायलट के घर की घंटी बजती है। उनकी पत्नी रमा पायलट दरवाजा खोलती हैं। सामने कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी खड़ी थीं।
सोनिया तेजी से घर के अंदर दाखिल हुईं। अंदर आकर सोनिया गांधी ने रमा से पूछा कि तुम ईश्वर में विश्वास करती हो? रमा ने कहा- हां, लेकिन मेरे पति मुझसे भी ज्यादा विश्वास करते हैं।
वे घर से कभी हनुमान चालीसा पढ़े बिना नहीं निकलते। अभी भी वे अपने संसदीय क्षेत्र में एक हवन में शामिल होने गए हुए हैं।
सोनिया गांधी लंबी सांस भरती हैं और कहती हैं कि हमें जयपुर चलना है। उनके सामने खड़ीं रमा पायलट समझ नहीं पाईं कि अचानक कांग्रेस अध्यक्ष घर क्यों आईं और साथ जयपुर क्यों ले जा रही हैं।
बहरहाल, वे जयपुर के लिए निकले। जयपुर हवाई अड्डे पर भारी भीड़ और तमाम सुरक्षा के इंतजामों को वे डिकोड नहीं कर पा रहीं थीं, तभी उनकी गाड़ी एक अस्पताल में दाखिल हुईं और सोनिया गांधी उन्हें अस्पताल के एक कमरे में लेकर गईं।
यहां एक पलंग था, उस पर एक शख्स लेटा था, माथे पर सफेद पट्टी बंधी थी और कमरे में पसरी शांति भी चीख रही थी। रमा चेहरा पहचान गईं। पलंग पर जो शख्स लेटा था, वह राजेश पायलट था।
कमरे में पसरी खामोशी चीत्कार में बदल गई, क्योंकि भारतीय राजनीति का एक उजला सितारा बहुत दूर सितारों में जा बसा था।
करीब-करीब बीस साल पहले जैसे भीषण हादसे का शिकार होते-होते बचे थे, वैसे ही एक कार हादसे में राजेश पायलट का निधन हो गया था। राजेश पायलट खुद कार ड्राइव कर रहे थे और उनकी कार एक बस से भिड़ गई थी। राजेश पायलट को उसी दिन दिल्ली होते हुए मुंबई अपने बच्चों सारिका और सचिन पायलट से मिलने जाना था।