राजस्थान के बांध उगलेंगे 20 हजार करोड़ रुपए: तलहटी से बजरी निकालकर बेचेगी सरकार, बीसलपुर से होगी शुरुआत

राजस्थान के बांध उगलेंगे 20 हजार करोड़ रुपए: तलहटी से बजरी निकालकर बेचेगी सरकार, बीसलपुर से होगी शुरुआत

राजस्थान के बांधों की तलहटी में एक खजाना छुपा हुआ है। इस खजाने की कीमत 20 हजार करोड़ रुपए है। हैरान हो गए....खजाने का मतलब सोना-चांदी या कीमती सामान नहीं, बल्कि उस बजरी से है, जिसे बेचकर सरकार 20 हजार करोड़ रुपए कमाएगी। इससे न सिर्फ सरकार की कमाई बढ़ेगी, बल्कि बजरी की किल्लत भी प्रदेश में दूर होगी और बांधों में पानी भी ज्यादा आ सकेगा।

सबसे पहले प्रदेश के सबसे बड़े बांध बीसलपुर से बजरी निकालकर ऐसा किया जाएगा। ऐसा राजस्थान में पहली बार होगा। सिर्फ बीसलपुर बांध से सरकार को 2800 करोड़ रुपए की कमाई होगी।

इसके लिए राज्य सरकार ने प्रोसेस शुरू कर दी है। प्रदेश के अन्य बांधों से बजरी निकालने के लिए प्रदेश में गठित ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (ईआरसीपी लिमिटेड) जल्द ही टेंडर जारी करने वाली है।

चुनावी साल है। पिछले साल और इस साल बजट में होने वाली लोक-लुभावन घोषणाओं को पूरा करने के लिए सरकार के पास फंड की कमी है, इसी कमी को दूर करने और कमाई बढ़ाने के लिए सरकार ने यह रास्ता निकाला है।

सिंचाई विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव शिखर अग्रवाल के मुताबिक फिलहाल टेंडर के लिए तैयारियां कर रहे हैं। बीसलपुर के अलावा बांधों से बजरी निकालने से मिलने वाली राशि से ईआरसीपी के तहत बहुत से प्रोजेक्ट को आर्थिक ताकत मिल सकेगी।

सूत्रों के अनुसार इसे लेकर बजट में भी कोई नीति(पॉलिसी) सामने आ सकती है। केन्द्रीय जल आयोग द्वारा 2021 में करवाए गए अध्ययन के मुताबिक बीसलपुर बांध की कुल भराव क्षमता 1095.84 मिलियन घन मीटर है। इसमें 65.90 मिलियन घन मीटर में सिल्ट और बजरी जमा हो चुकी है। यह नदियों के साथ बहकर आई है। इससे बांध की भराव क्षमता 6 प्रतिशत तक कम हो चुकी है।

अब यह भराव क्षमता भी बढ़ेगी और इससे सरकार को 2800 करोड़ रुपए की आय भी होगी। आयोग के अध्ययन के अनुसार इसी तरह की सिल्ट-बजरी प्रदेश के अन्य बांधों में भी 4 से 8 प्रतिशत तक जमा है।

ERCP खुद उठा पाएगा अपना बहुत सा खर्च

ईआरसीपी प्रोजेक्ट केन्द्र व राज्य सरकार के बीच पिछले चार साल से लगातार विवाद का मुद्दा बना हुआ है। राज्य सरकार चाहती है कि केन्द्र सरकार इस प्रोजेक्ट को नेशनल प्रोजेक्ट घोषित करे। इसे लेकर कई बार सीएम अशोक गहलोत और केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के बीच राजनीतिक बयानबाजी भी हुई है।

हाल ही सीएम गहलोत ने विधानसभा में भाजपा के सदस्यों को कहा था कि आप लोग मुझे पीएम नरेंद्र मोदी के पास लेकर चलो। मैं उनसे बात करूंगा कि ईआरसीपी प्रोजेक्ट को नेशनल प्रोजेक्ट घोषित करें। उन्होंने स्वयं ने 2018 में राजस्थान में इसकी घोषणा की थी। उन्हें अब वादा निभाना चाहिए।

सिंचाई विभाग के सूत्रों का कहना है कि ईआरसीपी प्रोजेक्ट पर राज्य सरकार लगभग 10,000 करोड़ रुपए का बजट रिजर्व कर चुकी है। अब ईआरसीपी के तहत बांधों से बजरी निकालकर लगभग 20 हजार करोड़ रुपए कमाए जाएंगे। इससे ईआरसीपी प्रोजेक्ट का एक बड़ा खर्चा यह प्रोजेक्ट खुद ही वहन कर सकेगा। इससे राज्य सरकार के बजट पर ईआरसीपी प्रोजेक्ट का भार कम होगा और वह पैसा अन्य फ्लैगशिप स्कीम्स पर खर्च किया जा सकेगा।

बजरी भी सस्ती मिल सकेगी

बांधों में जिन भी नदियों का पानी आता है, उनमें पानी के साथ बजरी भी धीमे-धीमे बहकर बांध में आती रहती है। इससे बांध की सतह ऊपर आती रहती है और बांध की भराव क्षमता लगातार कम होती रहती है। इस बजरी को निकालना बांध की भराव क्षमता को बढ़ाने के लिए भी जरूरी होता है। अभी बजरी के लिए नदियों के सीने छलनी करके वैध-अवैध ढंग से पूरे राजस्थान में बजरी निकालने, दोहन करने और उसे बेचने का अरबों रुपयों का व्यापार है।

लोगों को आसानी से वैध रूप से सरकारी बजरी मिल सकेगी

सरकार को बजरी से आय होगी

बांधों में ज्यादा पानी स्टोर किया जा सकेगा

क्षेत्र में रोजगार के साधन बढ़ेंगे

बजरी के दाम भी कुछ हद तक कम हो सकेंगे

पुलिस और कानून व्यवस्था के लिए आसानी रहेगी

प्रदेश में अवैध बजरी से होने वाले खनन से कई बार पुलिस और अपराधियों, ग्रामीणों और क्षेत्रीय लोगों के बीच झड़प होती रही है। धौलपुर, भीलवाड़ा, टोंक, अजमेर, अलवर आदि क्षेत्रों में अवैध बजरी खनन-परिवहन रोकने पर पुलिसकर्मियों सहित प्रशासनिक अधिकारियों तक से मारपीट और उन पर वाहन चढ़ाने की घटनाएं तक हो चुकी हैं। वैध बजरी बाजार में उपलब्ध होगी तो अवैध बजरी के कारोबार पर प्रभावी रोक लग सकेगी।

राहुल गांधी की यात्रा में सीएम सहित कांग्रेस नेताओं ने जताई थी चिंता

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के तहत अलवर में जब राहुल गांधी ने कांग्रेसजनों के साथ मुलाकात की थी, तो सभी ने एक स्वर में नदियों और पहाड़ी क्षेत्रों में अवैध खनन और बजरी के अवैध कारोबार पर चिंता जताई थी। राहुल गांधी ने तब सीएम गहलोत से भी जानकारी ली थी।

सीएम गहलोत ने कहा था कि इस क्षेत्र में आईजी स्तर के पुलिस अफसर को नियुक्त किया है और अलवर जिले में एसपी स्तर पर दो जिले (अलवर और भिवाड़ी) गठित कर दिए हैं। फिर भी अवैध खनन पर प्रभावी रोक नहीं लग सकी है।

राजस्थान की बजरी से होता है उत्तर भारत में निर्माण

राजस्थान से जाने वाली वैध-अवैध बजरी सम्पूर्ण उत्तर भारत में निर्माण कार्य में सर्वाधिक उपयोग में आती है। बजरी का अवैध परिवहन सरकार, पुलिस, प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती तो है ही, साथ ही पर्यावरण और नदियों की सेहत के लिए भी बेहद खतरनाक है। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट और ग्रीन ट्रिब्यूनल भी कई बार राजस्थान सरकार के प्रति आपत्ति जता चुके हैं।

बांध के पैंदे वाली बजरी की गुणवत्ता होती है बेहतर

बांध-तालाब के पैंदों पर जमा बजरी नदियों के साथ बहकर आती है। लगातार बहने से वो बारीक होती है और बड़े पत्थर-कंकर उसमें नहीं होते। ऐसे में निर्माण कार्यों के लिए उसे अन्य स्थानों से प्राप्त होने वाली बजरी से बेहतर माना जाता है। वो सीमेंट के साथ जल्दी पक जाती है। अगर राजस्थान सरकार का यह प्रयास सफल हुआ तो प्रदेश में एक नया उद्योग विकसित होसकेगा।

क्या कहते हैं पर्यावरण के जानकार

पर्यावरणविद रविंद्र सिंह तोमर (कोटा) ने बताया कि बांध के पैंदे से बजरी निकालना पर्यावरण के नजरिये से भी बिल्कुल ठीक कदम है। इससे बांध की भराव क्षमता भी बढ़ेगी और रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे। हां, ये ध्यान रखा जाए कि बांध की मूल सतह से कोई छेड़छाड़ न हो।

पर्यावरण विशेषज्ञ प्रो. अनिल त्रिपाठी (भीलवाड़ा) के अनुसार इससे पीने और सिंचाई के लिए ज्यादा पानी मिलेगा। जलीय पक्षियों व जंतुओं के लिए फूड चेन बेहतर होगी और निर्माण कार्यों के लिए वैध बजरी भी मिल सकेगी।

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