राजस्थान में 25 सितंबर को विधायकों के इस्तीफे का मामला अब नया मोड़ ले सकता है। हाईकोर्ट को दिए गए विधानसभा के जवाब के बाद यह साफ हो गया है कि विधायकों ने अपनी इच्छा से इस्तीफे नहीं दिए थे। इस जवाब ने फिर से कई सवाल खड़े कर दिए हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि विधायकों ने किसके और किस दबाव में इस्तीफे दिए थे? कांग्रेस में अब पायलट गुट क्या करेगा और कांग्रेस हाईकमान का नोटिस पाने वाले मंत्रियों पर क्या कार्रवाई होगी?
इस पूरे मामले में हाईकोर्ट अगली सुनवाई 13 फरवरी को करेगा। मगर उससे पहले विधानसभा सचिव के इस जवाब का असर कांग्रेस की राजनीति पर कितना पड़ेगा, यह अब चर्चा का विषय बन गया है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि स्पीकर के अधिकार, संविधान के नियम, विधानसभा की प्रक्रियाएं और तमाम कायदों को लेकर तो कोर्ट अपनी बात कहेगा। मगर यह तय है कि विधायकों के स्वेच्छा से इस्तीफा नहीं देने की बात सामने आने के बाद एक बार फिर राजस्थान की राजनीति में उथल-पुथल देखने को मिल सकती है।
विधानसभा सचिव के जवाब से विधायकों के इस्तीफे पर कई स्थितियां बिलकुल साफ हो जाती हैं।
सबसे पहले तो यह साफ हुआ कि 91 नहीं बल्कि 81 विधायकों ने इस्तीफे दिए। इनमें से भी 5 विधायकों के इस्तीफे फोटो कॉपी थे।
सभी 81 विधायकों के इस्तीफे 6 विधायकों ने स्पीकर को सौंपे थे। इस्तीफे सौंपने वालों में शांति धारीवाल, रामलाल जाट, संयम लोढ़ा, महेंद्र चौधरी, महेश जोशी और रफीक खान शामिल थे।
नियमों और सचिव के जवाब पर गौर करें तो 5 इस्तीफे फोटो कॉपी थे। ऐसे में वैध इस्तीफे 76 ही बचते हैं।
इन 76 में से 9 इस्तीफे निर्दलीय विधायकों के थे। इसके अलावा 1 इस्तीफा बीजेपी से निष्कासित विधायक शोभारानी कुशवाहा का था।
ऐसे में अगर कांग्रेस पार्टी की बात करें तो 66 कांग्रेसी विधायकों ने 25 सितंबर को इस्तीफे दिए थे।
कांग्रेस के कुल 108 में से 66 विधायकों ने 25 सितंबर को इस्तीफे दे दिए थे।
क्या गहलोत समर्थकों के दबाव में दिए गए इस्तीफे?
विधानसभा सचिव ने अपने जवाब में कहा है कि विधायकों ने इस्तीफे अपनी इच्छा से नहीं दिए थे। ऐसे में यह साफ हो जाता है कि विधायकों पर इस्तीफे का दबाव था। इससे बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि आखिर किसके दबाव में विधायकों ने इस्तीफे दिए थे?
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यह साफ है कि 25 सितंबर को अगर विधायक इस्तीफा नहीं देते तो अशोक गहलोत को सीएम पद से हटना पड़ता। ऐसे में विधानसभा सचिव के जवाब के बाद यह साफ हो जाता है कि सीएम अशोक गहलोत के समर्थक नेताओं के दबाव में विधायकों ने इस्तीफे दिए थे।
इससे अब कांग्रेस में दो संभावना बनेगी...
1. राजनीतिक असर दिखेगा, पायलट को मिलेगी जमीन
इस पूरे वाकये का असर राजस्थान कांग्रेस की राजनीति पर देखने को मिलेगा। इस्तीफे स्वेच्छा से नहीं देने की बात का फायदा पायलट गुट उठा सकता है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इस हलफनामे को लेकर पायलट गुट हाईकमान के सामने यह दावा कर सकता है कि 25 सितंबर को हाईकमान के निर्देशों की अवहेलना हुई। बता दें कि 25 सितंबर के एपिसोड पर कांग्रेस हाईकमान ने अब तक निर्णय नहीं लिया है।
2. धारीवाल-जोशी-राठौड़ पर कार्रवाई के लिए बना सकते हैं दबाव
राजनीतिक जानकारों और कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि सचिव के हलफनामे के बाद इसका असर 25 सितंबर के एपिसोड को लेकर अनुशासनहीनता का नोटिस पाने वाले नेताओं पर हो सकता है। तीनों नेताओं को लेकर कांग्रेस ने कोई कार्रवाई नहीं की है।
अब पायलट गुट मामले में कार्रवाई का दबाव बनाएगा। कांग्रेस ने उस एपिसोड को अनुशासनहीनता मानते हुए मंत्री शांति धारीवाल, महेश जोशी और आरटीडीसी चेयरमैन धर्मेंद्र राठौड़ को दोषी माना था। ऐसे में सचिव के हलफनामे का असर तीनों नेताओं पर पड़ सकता है।
1. इस्तीफे मंजूर करते तो गिर जाती सरकार
25 सितंबर को इस्तीफे देने के बाद अगर स्पीकर 66 कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे भी स्वीकार कर लेते तो प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिर जाती। फोटो कॉपी देने वाले 5 विधायकों के इस्तीफे अगर अस्वीकार भी होते तब भी कांग्रेस के पास महज 44 विधायक ही बचते। ऐसी स्थिति में कांग्रेस की सरकार गिर जाती।
2. अस्वीकार करते तो बढ़ सकती थी खींचतान
इसी तरह अगर स्पीकर विधायकों के इस्तीफे अस्वीकार कर देते तो पार्टी में खींचतान और भी ज्यादा बढ़ जाती। पहले से सड़क पर आ चुकी कांग्रेस की लड़ाई और बढ़ जाती। इस्तीफे अस्वीकार करने के साथ ही इसका कारण भी स्पष्ट करना पड़ता। ऐसे में यह भी स्पष्ट हो जाता कि विधायकों ने इस्तीफे दबाव में दिए हैं।
पिछले साल 25 सितंबर को इस्तीफा देने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत समर्थक विधायकों के मामले में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। विधानसभा सचिव की तरफ से हाईकोर्ट में दिए हलफनामे में कहा गया है कि 81 विधायकों के इस्तीफे स्वैच्छिक नहीं थे। इसलिए इन्हें मंजूर नहीं किया गया। उपनेता प्रतिपक्ष और वरिष्ठ बीजेपी नेता राजेंद्र राठौड़ की याचिका पर सोमवार को हाईकोर्ट चीफ जस्टिस पंकज मित्थल की बेंच में सुनवाई हुई।