नेपाल में काली गण्डकी नदी से प्राप्त करीब 6 करोड़ वर्ष पुरानी शालिग्राम शिला आज यानि मंगलवार को भगवान बुद्ध की परिनिर्वाण स्थली कुशीनगर पहुंचेगी। उतर प्रदेश के अयोध्या में निर्माणाधीन भगवान श्रीराम मंदिर में भगवान की मूर्ति निर्माण हेतु शालिग्राम पत्थर का प्रयोग होना है। जिसको नेपाल के पोखरा से निकलने वाली गण्डक नदी से निकाला गया हैं। इस नदी को शालिग्राम नदी के नाम से भी जाना जाता हैं। नेपाल की गण्डक नदी से दो बड़े आकर वाले पत्थरों को निकाला गया हैं, जिनको जानकारों ने 6 हजार करोड़ से भी ज्यादा पुराना बताया हैं।
इन शिलाखंडो की विधिवत पूजन अर्चन कर बड़े ट्रक(कंटेनर) के जरिए मां सीता की जन्मभूमि जनकपुर से होते हुए भारत लाया जा रहा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक शालिग्राम पत्थर को लाने का सफर 26 जनवरी से ही शुरू हुआ। नेपाल से बिहार होते हुए शालिग्राम पत्थरों की खेप आज सुबह उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में पहुचेंगी। जिसको लेकर जिला प्रशासन ने अपनी तैयारियां पूरी कर ली है। उत्तर प्रदेश के चार जिलों की सीमा से होते हुए यह अयोध्या तक जाएगी।
नेपाल से बिहार के रास्ते लाया जा रहा है उत्तर प्रदेश
भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या में बन रहे भव्य मंदिर में मूर्ति निर्माण का कार्य नेपाल से लाए जाने वाले शालिग्राम पत्थरों से होना हैं। जिसके लिए बड़े कंटेनर की मदद से 6 हजार करोड़ साल से भी पुराने दो बड़े शालिग्राम पत्थरों को नेपाल से बिहार के रास्ते उत्तर प्रदेश लाया जा रहा हैं। नेपाल सीमा से लाए जा रहे दो पत्थरों में एक का वजन 26 टन और दूसरे का वजन 14 टन बताया जा रहा हैं। जिसे विधिवत पूजन अर्चन के बाद नेपाल की सीमा से बिहार के रास्ते दो दिन का समय लग चुका हैं।
दो फरवरी को अयोध्या पहुंचेगी शिलाएं
वहीं अभी दो तारीख तक अयोध्या में पहुंचेगी। इसके पहले आज सुबह साढ़े आठ बजे उत्तर प्रदेश के बिहार सीमा स्थित सलेमगढ़ टोल से एनएच 28 के रास्ते कुशीनगर में सुबह 9 बजे तक प्रवेश करेगी। जिसको लेकर जिला प्रशासन ने सारी तैयारियां पहले ही पूरी कर ली हैं। बिहार की सीमा से उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में शालिग्राम पत्थरों को प्रवेश करते ही विधिवत पूजन अर्चन के बाद नेशनल हाईवे 28 के रास्ते गोरखपुर, संतकबीरनगर, बस्ती होते हुए अयोध्या को जाएगी।
शाम 4 बजे गोरखपुर पहुंचेगी शिलाएं
वहां से कुशीनगर होते हुए जगदीशपुर से होते हुए गोरखपुर में सायंकाल 4 बजे तक पहुंचेंगे। इन पत्थरों के गोरखपुर पहुंचने से पहले यहां कार्यकर्ता और आम जनमानस में बहुत उत्साह का माहौल है। यात्रा का गोरखपुर में प्रवेश होने पर कुसमी में शानदार ढंग से स्वागत किया जाएगा। इसके बाद गौतम गुरुंग चौराहा, मोहद्दीपुर चौराहा, विश्वविद्यालय चौराहा, यातायात चौराहा, धर्मशाला बाजार तरंग क्रॉसिंग के पास, गोरखनाथ मंदिर ओवरब्रिज के पास विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं एवं विभिन्न सामाजिक और धार्मिक संगठनों के लोगों द्वारा यात्रा का जोरदार ढंग से स्वागत किया जाएगा।
श्रद्धालुओं को रास्ते में कराए जा रहे हैं दर्शन
रास्ते में जगह-जगह इन ट्रकों को रोककर श्रद्धालुओं को शिलाओं के दर्शन भी कराए जा रहे हैं। नेपाल में जिन-जिन रास्तों से ये पत्थर गुजर रहे हैं श्रद्धालुओं की भारी भीड़ वहां जमा हो रही है। दरअसल सनातन धर्म में शालिग्राम पत्थर का विशेष महत्व है। शालिग्राम पत्थर भगवान विष्णु के स्वरूप मानें जाते हैं और कई हिन्दू घरों में इनकी नितदिन विशेष पूजा की जाती है।
जानिए शालिग्राम के बारे में
वैज्ञानिक तौर पर शालिग्राम एक प्रकार का जीवाश्म पत्थर है। धार्मिक आधार पर इसका प्रयोग परमेश्वर के प्रतिनिधि के रूप में भगवान का आह्वान करने के लिए किया जाता है। शालिग्राम आमतौर पर पवित्र नदी की तली या किनारों से एकत्र किया जाता है। वैष्णव (हिंदू) पवित्र नदी गंडकी में पाया जानेवाला एक गोलाकार, आमतौर पर काले रंग के एमोनोइड जीवाश्म को विष्णु के प्रतिनिधि के रूप में पूजते हैं। शालिग्राम भगवान विष्णु का प्रसिद्ध नाम है।
नेपाल सरकार ने दिसंबर में दी थी मंजूरी
रिपोर्ट्स के मुताबिक पूर्व नेपाली उप प्रधानमंत्री ने इन पवित्र शिलाओं को अयोध्या भेजे जाने के बारे में आगे बताया है कि मैं जानकी मंदिर के महंत और मेरे सहयोगी राम तपेश्वर दास के साथ अयोध्या गया था। हमारी ट्रस्ट के अधिकारियों और अयोध्या के अन्य संतों के साथ एक बैठक हुई थी। यह निर्णय लिया गया कि नेपाल की काली गंडकी नदी में पत्थर उपलब्ध होने पर उसी से रामलला की मूर्ति बनाना अच्छा रहेगा। नेपाल सरकार ने पिछले महीने ही इन शिलाओ को अयोध्या भेजने की मंजूरी दी थी। अब इन्हें अयोध्या ले जाया जा रहा हैं।