भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सभी केंद्र शासित राज्यों के एलजी को दो नए अधिकार दिए हैं। इनमें औद्योगिक संबंध संहिता- 2020 और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य स्थिति संहिता- 2020 शामिल है। इसके बाद दिल्ली के एलजी वीके सक्सेना और मजबूत हो गए हैं। एलजी सक्सेना को इन अतिरिक्त शक्तियों के मिलने से उक्त कानूनों के तहत नियम बनाने की जिम्मेदारी भी आ जाएगी।
एलजी के बनाए नियम केंद्र शासित प्रदेश के क्षेत्रों में जहां इनकी जरूरत होगी, लागू किए जा सकेंगे। आधिकारिक बयान में कहा गया है कि 16 जनवरी को गृह मंत्रालय की ओर से जारी दो अलग-अलग नोटिफिकेशन का उल्लेख करते हुए निर्देशित किया जाता है कि दिल्ली के एलजी अगले आदेश तक इन नियमों के तहत शक्तियों का प्रयोग करेंगे और उपयुक्त सरकार या राज्य सरकार के कार्यों का निर्वहन करेंगे।
नोटिफिकेशन के अनुसार, अंडमान और निकोबार आइलैंड, दादरा और नागर हवेली और दमन और दीव, चंडीगढ़, पुडुचेरी और लक्षद्वीप सहित पांच अन्य केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों और एलजी को भी राष्ट्रपति की ओर से ऐसी ही समान शक्तियां प्रदान की गई हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में ट्रांसफर और पोस्टिंग मामले में फैसला सुरक्षित रखा
दिल्ली में अधिकारियों की पोस्टिंग और ट्रांसफर के अधिकार को लेकर केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच विवाद पर सुनवाई पूरी हो गई। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने बुधवार को फैसला सुरक्षित रख लिया। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की अध्यक्षता वाली पीठ ने 5 दिन चली सुनवाई के बाद केंद्र और दिल्ली सरकार को दो दिन के भीतर लिखित दलीलें दायर करने को कहा। इससे पहले केंद्र सरकार ने मामला बड़ी पीठ को भेजने की मांग की। इस पर संविधान पीठ ने आश्चर्य जताते हुए कहा कि इस तरह की मांग पर पहले कोई दलील नहीं पेश की गई है।
सिंघवी बोले- यह मामले में देरी का एक तरीका है
कोर्ट के समक्ष केंद्र की मांग पर आपत्ति जताते हुए दिल्ली सरकार के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा- यहां ऐसी तस्वीर पेश की जा रही है कि राष्ट्रीय राजधानी को हाईजैक किया जा रहा है। संसद कोई भी कानून बना सकती है, लेकिन यहां अधिकारियों को लेकर नोटिफिकेशन का मामला है। यह मामले में देरी का एक तरीका है, जो केंद्र सरकार अपना रही है।
सॉलीसिटर जनरल बोले- मामला राजधानी का, इसलिए बड़ी बेंच को भेजा जाए
केंद्र की ओर से पेश सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा- मामला देश की राजधानी का है। इसलिए इसे बड़ी बेंच को भेजा जाए। इतिहास शायद हमें याद न रखे कि हमने देश की राजधानी को पूर्ण अराजकता के हवाले कर दिया था, इसलिए सुप्रीम कोर्ट की ओर से फैसले में देरी को मानदंड नहीं बनाना चाहिए। इस पर CJI ने कहा- जब सुनवाई पूरी होने वाली है, ऐसी मांग कैसे कर सकते हैं? केंद्र ने इस पर पहले बहस क्यों नहीं की? इसके बाद कोर्ट ने सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया।