म्यांमार की सेना फिलहाल कहीं कोई जंग नहीं लड़ रही है, फिर भी वहां बड़े स्तर पर हथियारों का प्रोडेक्शन किया जा रहा है। UN की एक रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि म्यामांर लोकतंत्र समर्थक अपने ही लोगों को मारने के लिए तेजी से अपने हथियारों का जखीरा बढ़ा रहा है।
म्यांमार पाबंदियों के कारण दूसरे देशों से हथियार नहीं खरीद सकता है। इसके चलते वो खुद अपने हथियार बना रहा है। इस काम में भारत, अमेरिका और जापान समेत 13 देशों की कंपनियां म्यांमार का साथ दे रही हैं।
पाबंदी के बावजूद कंपनियां म्यांमार को हथियार बनाने का सामान पहुंचा रही
UN ऑफिशियल के मुताबिक 13 देशों की कंपनियां म्यांमार को हथियार बनाने में इस्तेमाल किए जाने वाला जरूरी सामान, मशीनें और ट्रेनिंग दे रही है। 16 जनवरी 2023 यानी आज UN ने म्यांमार को लेकर एक रिपोर्ट जारी की है। जिसमें यह दावा किया गया है।
UN में मानवाधिकारों को लेकर काम करने वाले पूर्व अधिकारी येंघी ली ने बताया कि म्यांमार पर कभी किसी दूसरे देश ने हमला नहीं किया है। साथ ही म्यांमार ने कभी किसी देश से हथियार नहीं लिए हैं। वो 1950 से खुद अपने हथियार बना रहा है।
मरम्मत के लिए ताइवान भेजे जाते हैं हथियार
बीबीसी के मुताबिक लीक हुए मिलिट्री डॉक्यूमेंट और पुराने सैनिकों के इंटरव्यू में ये सारी बातें सामने आई हैं। UN की रिपोर्ट के मुताबिक हथियार बनाने के लिए ऑस्ट्रिया की कंपनी GFM स्टेयर से म्यांमार को सबसे ज्यादा मदद मिलती है।
वहीं जब हथियारों को मेंटेनेंस की जरूरत पड़ती है तो उन्हें ताइवान भेजा जाता है। जहां ऑस्ट्रियन कंपनी उन्हें ठीक करती है। इन आरोपों पर जब बीबीसी ने कंपनी से बात करनी चाही तो अधिकारियों ने कुछ भी कहने से मना कर दिया।
कौन से देश की कंपनी कौन से पार्ट भेजती है
चीन और सिंगापुर से म्यांमार की सेना ज्यादातर कच्चा माल खरीदती है। इनमें कॉपर और आयरन शामिल हैं।
रूस और भारत की कंपनियों से म्यांमार को फ्यूज और इलेक्ट्रॉनिक डिटोनेटर मिलते हैं।
वहीं हथियारों में इस्तेमाल होने वाली मुख्य मशीनरी जर्मनी, जापान, यूक्रेन और अमेरिका से हासिल होती है।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सिंगापुर म्यामांर के हथियारों के लिए ट्रांजिट हब के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। यानी सिंगापुर की कंपनियां बिचौलिए का काम करती हैं।