2023 झांसी की नई पहचान लेकर आया है। अब यहां जल संकट नहीं है। पानी घर-घर पहुंचने लगा है। ये वो तस्वीर है, जो झांसी से करीब 36 किमी दूर भरतपुरा गांव में दिखी। दैनिक भास्कर रिपोर्टर को यहां लोगों ने बताया कि करीब 15 दिन पहले ही पाइप लाइन के जरिए हमारे घरों तक पानी पहुंच पाया है। अब दूर-दराज पानी की खोज में नहीं जाना पड़ रहा है।
कभी पानी की कमी से पलायन के लिए मशहूर बुंदेलखंड अब 2023 में नई इबारत लिखने को तैयार है। जिस पानी की किल्लत के लिए ये इलाका बदनाम था, अब वही पानी घर-घर तक पहुंचने लगा है। जिले 45 गांवों में पेयजल की सप्लाई शुरू हो गई है। आने वाले जून 2023 तक और 648 गांवों में पानी पहुंच जाएगा। इन गांवों के 2.09 लाख घरों को पानी मिलेगा। ये सब जल जीवन मिशन की हर घर जल योजना के तहत हुए कामों की वजह से हो रहा है।
सुदामा देवी खुश होते हुए कहती हैं,हमारी शादी हुई, तो गांव में 2 हैंडपंप थे। कुछ दिनों में हमें हैंडपंप तक पानी भरने जाने लगे। वहां महिलाओं की भीड़ रहती थी। हमेशा 12 से 15 महिलाएं लाइन में ही रहती थीं। इसलिए एक घड़ा पानी के लिए 2 से 3 घंटे लग ही जाते थे। ऊपर से घूंघट हटा नहीं सकते। कई बार इतने लंबे समय लाइन में लगने के बाद पानी ले, फिर घूंघट के चक्कर में गिर भी पड़े। अब क्या करते। यहां एक चैलेंज इसका भी था कि सूरज उगने से पहले ही पानी भर लो। उसके बाद बड़े-बूढ़े घरों के बाहर आ जाते थे। अब समय बदल रहा है। पहली बार हमारे घरों में पानी पहुंचा है। ये खुशी हम कैसे बताएं... नहीं बता पाएंगे।
अब भरतपुरा गांव से आपको ले चलते हैं धावनी गांव। यहां भास्कर टीम पहुंची, तो लोगों के घर की तरफ जाती हुई पानी की लाइन दिखने लगी। कुछ अंदर आने पर राघवेंद्र दांगी का घर सामने आया। राघवेंद्र दांगी कहते हैं,जब अखबारों में पढ़ रहे थे कि पानी घर तक आए, तो ये सिर्फ मजाक लगता था। जिंदगी के इतने सालों में हमने देखा नहीं है। दूसरे शहर जाते थे, तो जरूर देखते थे।
हमने तो हैंडपंप से ही पानी भरा। ये खराब हो जाए, तो 30 से ज्यादा दिन लगते थे ठीक करवाने में। घर की महिलाएं दूसरे मुहल्लों में जाती थीं। मगर अब सीन दूसरा है, घर में पानी आ रहा है। कहीं नहीं जाना है। महिलाएं अब पानी भरने में लगने वाले समय को दूसरे कामों में लगा रही हैं।
इसी गांव की 75 साल की फूलवती बताती हैं,65 साल पहले शादी हुई तो घर पर पानी का कोई साधन नहीं था। रस्सी और बर्तन लेकर कुएं से पानी भरने जाते थे। नहाने के लिए हम महिलाएं गांव के किनारे नदी में जाया करते थे। लेकिन आज ये समस्या खत्म होने जा रही है। अब हमारे घर तक पानी पहुंच गया है। वो भी सुबह-शाम, दो टाइम पानी आ रहा है।
महेश यादव कहते हैं,आज से 60 साल पहले गांव के बाहर कुएं से पानी भरते थे। महिलाएं घड़ा और कलसा लेकर पानी भरने जाती थी। सुबह-शाम पानी भरना पड़ता था। गर्मियों को हालत खराब हो जाती थी। फिर हैंडपंप लगे तो वाटर लेबल गिरने लगा। अब घर-घर पानी पहुंचने से कोई दिक्कत खत्म हो रही है। वाटर लेबल बढ़ेगा और लोगों को पानी के लिए बर्तन लेकर बाहर नहीं निकलना पड़ेगा।