राजनीति में आने का नहीं इरादा:लालू की बेटी बोलीं रोहिणी - कोई पॉलिटिकल एंबिशन न था,न है

 राजनीति में आने का नहीं इरादा:लालू की बेटी बोलीं रोहिणी - कोई पॉलिटिकल एंबिशन न था,न है

किडनी ट्रांसप्लांट के बाद RJD सुप्रीमो लालू यादव की सेहत में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है। फिलहाल कुछ समय वे सिंगापुर में ही रहेंगे। उन्हें किडनी डोनेट करने वाली उनकी बेटी रोहिणी आचार्य पहले से बेहतर हैं। सिंगापुर में रह रहीं रोहिणी रूटीन लाइफ में लौट रही हैं।

पिता को किडनी डोनेट करने पर रोहिणी की काफी तारीफ हुई थी। हालांकि वे इसे बड़ी बात नहीं मानतीं। भास्कर से बातचीत में उन्होंने कहा कि परिवार और सोसाइटी के लिए ऐसा करने की सीख उन्हें माता-पिता से ही मिली है। परिवार को लेकर कोई बात करेगा, तो उसे उसी की भाषा में जवाब देंगी।

सवाल: किडनी डोनेशन के कॉम्प्लिकेशन हो सकते हैं, फिर भी आप इसके लिए तैयार हो गईं। इसके लिए प्रेरणा और ताकत कहां से मिली?

जवाब: मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा मेरे पिताजी हैं। उन्हीं से हम सब इंस्पायर हुए हैं। कोई भी घर आ जाए परेशानी लेकर, उन्होंने हमेशा हल निकाला, मदद के लिए तैयार हो गए। उन्होंने मुझे ऐसा इंसान बनाया कि मैं छुआ-छूत, ऊंच-नीच के खिलाफ जरूरतमंदों की आवाज बन सकूं। अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की ताकत और संस्कार मुझे मेरे माता-पिता से मिले हैं। मैं उन्हें कैसे भुला सकती हूं।

सवाल: ट्रांसप्लांट के लिए किडनी मैच होनी चाहिए। सिर्फ आपने वॉलंटियर किया या अन्य लोगों ने भी। आपके नाम पर सहमति कैसे बनी?

जवाब: पापा 10 अक्टूबर को यहां (सिंगापुर) आए थे। 18 अक्टूबर को पता चला कि किडनी ट्रांसप्लांट ही कराना होगा। डॉक्टर ने पूछा कि तय करिए कौन डोनेट करेगा। इस पर मैंने, मेरे पति और जीजाजी ने वॉलंटियर किया। तीनों के एक सप्ताह तक टेस्ट हुए। भारत में जब घर में सबको बताया तो सभी तैयार हो गए। कुछ भाई-बहनों ने अपने टेस्ट भी कराए, पर डॉक्टर्स ने मुझे ही फिट पाया।

सवाल: आपने पति और उनके परिवार को कैसे राजी किया?

जवाब: मेरे पति समरेश सिंह शुरू से ही साथ में थे। जैसे ही हमें पता चला कि बस यही विकल्प है, तो वे खुद किडनी देने को तैयार हो गए। मेरे जीजाजी भी तैयार थे। 18 नवंबर को जब डिसाइड हुआ कि मैं किडनी डोनेट करूंगी, तो हमने बच्चों को इस बारे में बताया। पहले तो वे घबरा गए।

समझाने के बाद उन्होंने नेट पर देखा कि एक किडनी देने के बाद लाइफ स्टाइल चेंज करके, सावधानियां रखते हुए सेहतमंद रहा जा सकता है, तो वे मान गए।

सवाल: लालूजी का पहला रिएक्शन क्या था, जब उन्होंने सुना कि आप किडनी दे रही हैं?

जवाब: उनकी आंखों में आंसू थे। गर्व महसूस कर रहे थे शायद। हमारे साथ क्लिनिक में ही थे। पहले तो मना करने लगे, बोले- न, न हम दवा से ठीक हो जाएंगे। किसी को किडनी-विडनी देने का जरूरत नहीं। घर आकर हमने समझाया। बच्चों का उदाहरण दिया कि जब वे मुझे लेकर निश्चिंत हैं, तो आप क्यों चिंता कर रहे हैं...तब जाकर माने।

सवाल: सिलेक्शन और ट्रांसप्लांट के बीच काफी वक्त था, इस दौरान खुद को कैसे पॉजिटिव रखा?

जवाब: नवंबर की शुरुआत में ही यह बात मीडिया में आ गई, लेकिन हमने संयम रखा। मैंने आराम से बच्चों के साथ छुट्टियां बिताईं। दोस्तों के साथ पार्टी की। खुश रहे। इस फैसले पर फिर चर्चा ही नहीं की। यह हिम्मत पिता से ही मिली कि एक बार तय कर लिया तो पीछे क्या हटना।

सवाल: पिता से जुड़े तीन किस्से बताएं, जो आपके दिल के बेहद करीब हैं?

जवाब: बचपन के ढेरों किस्से हैं। पापा से मैं बहुत अटैच्ड थी। वे मुख्यमंत्री थे। आते-आते रात के दो-तीन बज जाते थे। जब भी आते तो एक-एक कर सभी बच्चों के कमरों में जाकर देखते कि लाइट ऑफ है कि नहीं, पंखा चल रहा है कि नहीं, ठंड है तो सबने चादर ओढ़ी है कि नहीं। ठंड में हम अचानक जाग जाते थे। देखते थे मां सरसों के तेल की कटोरी लिए हुए हैं और पिता पांव दबा रहे हैं, तलवों में तेल लगा रहे हैं।

जब तक वे खाना नहीं खाते थे, मैं भी नहीं खाती थी। मैंने नियम बना दिया कि उन्हें रात में 9.30 बजे तक खाना खाने आना ही होगा। जब तक मैं हॉस्टल नहीं गई, तब तक यही शेड्यूल चलता रहा। पापा को शेविंग के दौरान कट लग जाता था तो मैं खूब रोती। एक बार पैर में हेयरलाइन फ्रैक्चर हो गया तो मैं घबरा गई।

घर वालों ने तय किया कुछ भी हो जाए चुन्नू (घर का नाम) को मत बताना। उसके बाद से आज तक मुझे ज्यादातर न्यूज मीडिया के जरिए ही मिलती है। पापा को कुकिंग का बहुत शौक था। मुझे किचन में ले जाते पर कुछ करने नहीं देते। कहते- तुम जल जाओगी। दूर से सीखो। आज भी बच्चों के लिए कुकिंग करते वक्त मैं बहुत सी चीजों की रेसिपी उन्हीं से फोन करके पूछती हूं।

सवाल: आपकी पॉपुलैरिटी बहुत बढ़ गई है। सामाजिक जीवन में आने की कोई योजना है?

जवाब: मैंने बेटी होने का धर्म निभाया, अब मां होने का धर्म निभाना है। बच्चे स्कूल में हैं अभी। एक बार वे पढ़-लिख जाएं, फिर सोचेंगे क्या करना है।

सवाल: आपके चेहरे से RJD को बड़ा फायदा मिल सकता है। पार्टी को जरूरत हुई तो क्या राजनीति में आना चाहेंगी?

जवाब: मेरा कोई पॉलिटिकल एंबिशन न था, न है। पर जहां भी रहूंगी बिहार को, वहां के लोगों को, जो संभव होगा मदद करूंगी। पार्टी को भविष्य में जरूरत हुई तो देखा जाएगा। फिलहाल कोई इरादा नहीं है। भविष्य में किसको पता कि क्या होगा। पापा को जरूरत पड़ेगी और मैं किडनी दूंगी..यह सोचा था क्या?

सवाल: बिहार की पॉलिटिक्स पर नजर रखती हैं?

जवाब: यह तो बचपन से ही है। बिहार की पॉलिटिक्स पर नजर रहती है। खासकर परिवार से जुड़े मसलाें पर। जब भी मेरे परिवार की बात आएगी तो मैं हमेशा जवाब दूंगी। जो जिस भाषा में बात करता है, कोशिश करती हूं कि उसे उसी भाषा में जवाब दूं।

सवाल: भाई-बहनों में आप सबसे ज्यादा किसके करीब हैं?

जवाब: वैसे तो सभी से है। मीसा दीदी मां जैसी रहीं। मां-पापा बिजी रहते थे इसलिए उन्होंने ही हमेशा ख्याल रखा। हालांकि बचपन से ही मैं तेजस्वी (टुट्टू) के थोड़ा ज्यादा करीब हूं। वह स्कूल से आता तो मैं उसका और छोटों का ख्याल रखती। एक-बार मेरी बेटी का हाथ टूट गया। जैसे ही उसे पता चला तो वह अगले दिन ही पहुंच गया। मेरे बच्चे भी उससे अटैच्ड हैं काफी।

सवाल: तेजस्वी को पॉलिटिशियन के तौर पर कैसे देखती हैं?

जवाब: तेजस्वी में काबिलियत है। बिहार को लेकर चलने वाला लड़का है।

सवाल: भविष्य में भारत आने की कोई योजना?

जवाब: (हंसते हुए...) मेरे पति को नौकरी दिलवा दीजिए वहां, तो मैं आ जाऊंगी। अपना देश कौन मिस नहीं करता।

सवाल: आपको लगता है कि बेटियों को वह स्टेटस मिल गया है, जिसकी वे हकदार हैं?

जवाब: लोगों से मिलकर ही समाज बनता है। आज भी कई घरों में लड़कों की तुलना में लड़कियों को दबाया जाता है। सभी लोगों को बेटियों की पढ़ाई हर हाल में पूरी करानी चाहिए। पढेंगी तभी तो आगे बढ़ेंगी बेटियां।


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yhfee@chitthi.in, 10 June 2023

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