यूपी नगर निकाय चुनाव में OBC आरक्षण पर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सोमवार को बड़ा फैसला सुनाया। हाईकोर्ट ने OBC आरक्षण के बिना ही निकाय चुनाव कराने का आदेश दिया है। ऐसे में OBC के लिए आरक्षित सीट अब जनरल मानी जाएगी। वहीं, कोर्ट के फैसले के तुरंत बाद सीएम योगी आदित्यनाथ की प्रतिक्रिया भी सामने आई। उन्होंने कहा, प्रदेश में पहले OBC आरक्षण देंगे, फिर चुनाव कराएंगे। अगर जरूरत पड़ी सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। सीएम ने आरक्षण पर आयोग का गठन करने की भी बात कही है।
इस फैसले के साथ ही हाईकोर्ट ने 5 दिसंबर को यूपी सरकार की तरफ से जारी ड्राफ्ट नोटिफिकेशन को भी खारिज कर दिया है। जज देवेंद्र कुमार उपाध्याय और सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने कहा कि सरकार को चुनाव जल्दी कराने चाहिए। अगर आरक्षण तय करना है, तो ट्रिपल टेस्ट के बिना कोई आरक्षण तय नहीं होगा।
हाईकोर्ट के इस फैसले को सरकार के लिए बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है। कोर्ट का यह आदेश रायबरेली के सामाजिक कार्यकर्ता वैभव पांडेय की जनहित याचिका पर आया है। इस मामले में 24 दिसंबर को बहस पूरी हो गई थी। कोर्ट ने निकाय चुनावों से संबंधित सभी 93 याचिकाओं पर सुनवाई के बाद 27 दिसंबर तक फैसला सुरक्षित कर लिया था।
निकाय चुनाव पर फैसला आने के बाद राजनीतिक बयानबाजी भी शुरू हो गई है। पढ़िए किसने क्या कहा-
केशव मौर्य: डिप्टी सीएम ने कहा नगरीय निकाय चुनाव के संबंध में माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद के आदेश का विस्तृत अध्ययन कर विधि विशेषज्ञों से परामर्श के बाद सरकार के स्तर पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा, परंतु पिछड़े वर्ग के अधिकारों को लेकर कोई समझौता नहीं किया जाएगा
अखिलेश यादव: सप्रा प्रमुख ने कहा आज आरक्षण विरोधी भाजपा निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण के विषय पर घड़ियाली सहानुभूति दिखा रही है। आज भाजपा ने पिछड़ों के आरक्षण का हक छीना है, कल भाजपा बाबा साहब द्वारा दिए गये दलितों का आरक्षण भी छीन लेगी। आरक्षण को बचाने की लड़ाई में पिछड़ों व दलितों से सपा का साथ देने की अपील है।
मायावती: बसपा प्रमुख ने कहा, यूपी में बहुप्रतीक्षित निकाय चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग को संवैधानिक अधिकार के तहत मिलने वाले आरक्षण को लेकर सरकार की कारगुजारी का संज्ञान लेने सम्बंधी माननीय हाईकोर्ट का फैसला सही मायने में भाजपा व उनकी सरकार की ओबीसी एवं आरक्षण-विरोधी सोच व मानसिकता को प्रकट करता है।
मायावती ने कहा, यूपी सरकार को मा. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पूरी निष्ठा व ईमानदारी से अनुपालन करते हुए ट्रिपल टेस्ट द्वारा ओबीसी आरक्षण की व्यवस्था को समय से निर्धारित करके चुनाव की प्रक्रिया को अन्तिम रूप दिया जाना था, जो सही से नहीं हुआ। इस गलती की सजा ओबीसी समाज बीजेपी को जरूर देगा।
स्वामी प्रसाद मौर्य: सपा नेता ने कहा, नगर निकाय चुनाव अधिसूचना में जान-बूझकर की गई अनियमितता के फलस्वरूप पिछड़ी जातियों को आरक्षण से हाथ धोना पड़ा। आखिर पिछड़े वर्ग के लोग भाजपा की आरक्षण विरोधी नीति को कब समझेंगे।
अनुप्रिया पटेल: अपना दल एस ने कहा, OBC आरक्षण के बिना निकाय चुनाव किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। हम इस संदर्भ में माननीय लखनऊ उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले का अध्ययन कर रहे हैं। जरूरत पड़ी तो @ApnaDalOfficial ओबीसी के हक के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगा।
राम गोपाल यादव: सपा नेता ने कहा निकाय चुनावों में ओबीसी का आरक्षण खत्म करने का फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है। यह उत्तर प्रदेश सरकार की साजिश है। न्यायालय के सामने जान-बूझकर तथ्य प्रस्तुत नहीं किए गए। उत्तर प्रदेश की 60 फीसदी आबादी को आरक्षण से वंचित किया गया है। ओबीसी मंत्रियों के मुंह पर ताले लगे हुए हैं। मौर्या (डिप्टी सीएम) की स्थिति बंधुआ मजदूर जैसी हो गई है।
खबर में आगे बढ़ने से पहले ट्रिपल टेस्ट के फॉर्मूला के बारे में बता देते हैं...
सरकार कर सकती है कमीशन गठित
कोर्ट के इस फैसले के बाद अगर सरकार को OBC आरक्षण लागू करना है, तो कमीशन गठित करना होगा। ये कमीशन पिछड़ा वर्ग की स्थिति पर अपनी रिपोर्ट देगा। इसके आधार पर आरक्षण लागू होगा। आरक्षण देने के लिए ट्रिपल टेस्ट यानी 3 स्तर पर मानक रखे जाते हैं। इसे ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूला कहा गया है।
अब इस टेस्ट में देखना होगा कि राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग की आर्थिक-शैक्षणिक स्थिति कैसी है? उनको आरक्षण देने की जरूरत है या नहीं? उनको आरक्षण दिया जा सकता है या नहीं?
कोर्ट में कहा गया कि ये एक राजनीतिक आरक्षण
UP सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता विनोद कुमार शाही और मुख्य स्थाई अधिवक्ता अभिनव नारायन त्रिवेदी ने सरकार का पक्ष रखा था। दलील दी गई कि निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण एक प्रकार का राजनीतिक आरक्षण है।
पहले मामले की सुनवाई के समय राज्य सरकार का कहना था कि मांगे गए सारे जवाब प्रति शपथपत्र में दाखिल कर दिए गए हैं। इस पर याचियों के वकीलों ने आपत्ति करते हुए सरकार से विस्तृत जवाब की गुजारिश की जिसे कोर्ट ने नहीं माना।
राज्य सरकार ने दाखिल किए गए अपने हलफनामे में कहा कि स्थानीय निकाय चुनाव मामले में 2017 में हुए अन्य पिछड़ा वर्ग के सर्वे को आरक्षण का आधार माना जाए। सरकार ने कहा कि इसी सर्वे को ट्रिपल टेस्ट माना जाए। यह भी कहा कि ट्रांसजेंडर्स को चुनाव में आरक्षण नहीं दिया जा सकता है।
ट्रिपल टेस्ट के साथ कुल आरक्षण 50% से ज्यादा ना हो
याचिकाकर्ता के वकील शरद पाठक ने बताया,अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग के अलग-अलग स्थितियां हैं। इसमें राज्य सरकार को तय करना होगा कि वह अपने राज्य में ओबीसी को कितना आरक्षण देना चाहते हैं, लेकिन महाराष्ट्र के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल टेस्ट का एक फॉर्मूला दिया।
ट्रिपल टेस्ट में साथ ही कुल आरक्षण 50% से अधिक ना हो। इसे ट्रिपल टेस्ट का नाम दिया गया है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक निर्देश में कहा कि अगर अन्य पिछड़ा वर्ग को ट्रिपल टेस्ट के तहत आरक्षण नहीं दिया तो अन्य पिछड़ा वर्ग की सीटों को अनारक्षित माना जाएगा।
याचिकाकर्ताओं की 65 आपत्तियां
हाईकोर्ट में निकाय चुनाव में आरक्षण पर 65 आपत्तियां दाखिल की गईं। हाईकोर्ट ने सभी मामलों को सुनवाई पूरी कर ली है। याचिकाकर्ताओं के द्वारा ओबीसी आरक्षण से लेकर जनरल आरक्षण पर आपत्तियां दर्ज कराई गई थी।
सरकार के वकील की तरफ से 2017 के फार्मूले पर आरक्षण लागू किए जाने का दावा किया गया। जिस पर हाईकोर्ट ने सख्त सवाल करते हुए पूछा कि जब सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में ओबीसी आरक्षण को लेकर नई गाइडलाइन जारी की गई है तो उसका पालन क्यों नहीं किया गया?