उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव को लेकर दाखिल की गई हाई कोर्ट लखनऊ बेंच की याचिका पर होने वाली सुनवाई सातवीं बार फिर टल गई। हाई कोर्ट में यह सुनवाई अब शनिवार को होनी है। हाईकोर्ट ने नगर निकाय चुनाव को लेकर लगाया गया इसके जारी रखा है।
फिलहाल 51 याचिकाओं पर निकाय चुनाव के आरक्षण को लेकर आपत्तियां दाखिल की गई है। गुरुवार को न्यायिक सेवा में तैनात कर्मियों के निधन पर शोक प्रस्ताव की वजह से सुनवाई नहीं हो सकी थी। 25 दिसंबर से कोर्ट में विंटर वेकेशन शुरू हो रहा है।
अब तक दाखिल हो चुकी है 51 याचिकाएं
राज्य सरकार की ओर से मामले में जवाबी हलफ़नामा दाखिल किया जा चुका है। इस पर याचियों के वकीलों ने प्रति उत्तर भी दाखिल कर दिए हैं।यह आदेश न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने रायबरेली निवासी सामाजिक कार्यकर्ता वैभव पांडेय व अन्य की जनहित याचिकाओं पर दिया।
वैभव के अलावा 51 याचिकाएं और वार्ड आरक्षण को लेकर दाखिल की जा चुकी हैं। फिलहाल अधिवक्ताओं का या मानना है कि सभी याचिकाएं एक ही जैसे मुद्दों की आपत्तियों पर है इसलिए इसको एक साथ ही सुना जा रहा है।
आरक्षण लागू करने पर ट्रिपल टेस्ट कराना अनिवार्य
इससे पहले बुधवार दोपहर 2:45 से शुरू हुई बहस के दौरान याचियों की ओर से दलील दी गई कि निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण एक प्रकार का राजनीतिक आरक्षण है। इसका सामाजिक‚ आर्थिक अथवा शैक्षिक पिछड़ेपन से कोई लेना-देना नहीं है। ऐसे में ओबीसी आरक्षण तय किए जाने से पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई व्यवस्था के तहत डेडिकेटेड कमेटी द्वारा ट्रिपल टेस्ट कराना अनिवार्य है।
मंगलवार को सरकार के हलफनामे पर याचिकाकर्ताओं ने उठाए थे सवाल
बीते मंगलवार को मामले की सुनवाई के समय राज्य सरकार का कहना था कि मांगे गए सारे जवाब‚ प्रति शपथपत्र में दाखिल कर दिए गए हैं। इस पर याचियों के वकीलों ने आपत्ति करते हुए सरकार से विस्तृत जवाब मांगे जाने की गुजारिश की‚ जिसे कोर्ट ने नहीं माना। उधर‚ राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता विनोद कुमार शाही ने इस मामले को सुनवाई के बाद जल्द निस्तारित किए जाने का आग्रह किया था।
यूपी सरकार के वकील ने हलफनामा देकर सभी का जवाब
राज्य सरकार ने दाखिल किए गए अपने हलफनामे में कहा कि स्थानीय निकाय चुनाव मामले में 2017 में हुए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के सर्वे को आरक्षण का आधार माना जाए।
सरकार ने कहा कि इसी सर्वे को ट्रिपल टेस्ट माना जाए, कहा गया कि ट्रांसजेंडर्स को चुनाव में आरक्षण नहीं दिया जा सकता है।
पिछली सुनवाई में हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा था कि किन प्रावधानों के तहत निकायों में प्रशासकों की नियुक्ति की गई है।
इस पर सरकार ने कहा कि 5 दिसंबर‚ 2011 के हाईकोर्ट के फैसले के तहत इसका प्रावधान है।
कोर्ट ने पहले स्थानीय निकाय चुनाव की अंतिम अधिसूचना जारी करने पर 20 दिसंबर तक रोक लगा दी थी‚ साथ ही राज्य सरकार को आदेश दिया था कि 20 दिसंबर तक बीती 5 दिसंबर को जारी अनंतिम आरक्षण की अधिसूचना के तहत आदेश जारी न करे।
हाई कोर्ट ने ओबीसी को उचित आरक्षण का लाभ दिए जाने व सीटों के रोटेशन के मुद्दों को लेकर दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया था।