चीन की वुहान लैब फिर चर्चाओं में है. इस विवादास्पद प्रयोगशाला में काम करने वाले अमेरिका एक वैज्ञानिन एंड्र्यू हफ ने एक किताब लिखी है, किताब का नाम है द ट्रुथ अबाउट वुहान (The Truth About Wuhan) जिसमें दावा किया गया है कि दुनियाभर को दो सालों से दहला रहा कोरोना वायरस ना केवल मानव निर्मित था बल्कि इसी लैब में पैदा हुआ. जानते हैं कि कैसी है ये लैब.
चीन के वुहान में एक अमेरिकी वैज्ञानिक एंड्यू हफ ने कुछ समय तक काम किया. उन्होंने अपनी नई किताब के जरिए जो दावा किया, उससे चीन की वुहान लैब फिर चर्चाओं में आ गई है. उन्होंने इस लैब के बारे में काफी कुछ लिखा है. उनका दावा है कि सुरक्षा नहीं होने की वजह से कोरोना वायरस का रिसाव लैब में हुआ और फिर इसे रोका नहीं जा सका
वुहान चीन के बड़े शहरों में है. ये हुबेई प्रांत की राजधानी भी है. इस शहर में वो सारी सुविधाएं हैं, जो एक वर्ल्ड क्लास सिटी में होनी चाहिए. मध्य चीन का ये सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर भी है. इन दिनों इसी शहर की एक वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी लैब दुनियाभर में सुर्खियों में है. जानते हैं कि ये लैब कैसी है, शहर से कितनी दूर है.
गूगल मैप का कहना है कि वुहान शहर से वुहान इंस्टीट्यूट 10.4 किलोमीटर दूर है और वहां तक शहर से पहुंचने में करीब 21 मिनट तक लगते हैं. हालांकि ये जिस जगह पर है, वहां आसपास का एरिया प्रोटेक्टेड है यानि जबरदस्त सुरक्षा में रहता है. इंस्टीट्यूट का परिसर काफी बड़ा है, इसके अंदर कई बड़ी बिल्डिंग्स हैं. हालांकि ये जिस जगह पर है, वहां आसपास कुछ इंडस्ट्री भी लगती हैं. हालांकि ये जगह पहाड़ों के बीच है. इंस्टीट्यूट के पीछे पहाड़ियां साफ नजर आती हैं.
इस इंस्टीट्यूट की सुरक्षा में हमेशा चीन के सैनिक तैनात रहते हैं. यहां काम कर चुके साइंटिस्ट के अनुसार इस लैब के चारों ओर 24 घंटे कड़ी सुरक्षा होती है, किसी के लिए भी इसमें घुसना आसान नहीं होता. इसमें आसपास का इलाका रिहाइशी भी नहीं है. मतलब यहां काम करने वाले लोग आमतौर पर वुहान में रहते हैं. वहां से रोज आते हैं. इस लैब में अक्सर कुछ विदेशी वैज्ञानिक भी आते रहते हैं
वैसे तो चीन इस लैब को सिविलियन कामों के लिए बनाई गई लैब कहता है लेकिन अमेरिका का कहना है कि ये लैब सीक्रेट तौर पर चीनी की सेना के लिए काम करती है और यहां कई सीक्रेट प्रोजेक्ट चल रहे होते हैं. यहां चीनी सेना की कई चीजों को लेकर रिसर्च चलती रहती हैं. कहां जाता है कि चीन की इस लैब के संपर्क अमेरिका, फ्रांस और कनाडा की कई लैब से भी हैं. वो दिखाने के लिए उनके साथ मिलकर काम करती है लेकिन बहुत कुछ छिपाकर भी होता है.
हालांकि वुहान की इस लैब में चमगादड़ को लेकर जिस तरह सालों से रिसर्च चल रही थी और कोरोना वायरस से संबंधित रिसर्च चल रही थीं, उससे इस दावे को बल मिलता है कि हो सकता है कि वायरस लीक यहीं से हुआ हो. वैसे वुहान के मीट मार्केट में इस बीमारी के फैलने का दावा करने से पहले ही इंस्टीट्यूट के कई वैज्ञानिक कोरोना वायरस संबंधी लक्षणों के साथ बीमार हुए थे.
अमेरिकी दस्तावेज कहते हैं कि वुहान लैब में जैव सुरक्षा मानक पुख्ता नहीं थे. यहां पिछले कुछ सालों से अमेरिका की एक प्रयोगशाला के साथ मिलकर गेन ऑफ फंक्शन शोध हो रहा था, जिसके लिए पैसा अमेरिकी यूनिवर्सिटी और संस्थान भी देते थे. चमगादड़ों में पाए जाने वाले वायरसों पर लैब का गेन ऑफ फंक्शन खतरों से भरा पड़ा था.
दरअसल इस लैब की साधारण स्तर पर स्थापना 1956 में हुई. फिर उसके बाद कई बार इसका नाम और स्टेटस बदला गया. फिर 2003 में इसको बॉयोसेफ लैब में तब्दील करने की बात हुई. चीन ने ऐसा करने की अनुमति दे दी लेकिन इसको विस्तार देने और पूरी तरह बनने में फिर 11 साल लगे. इस पर बहुत मोटा धन भी खर्च हुआ. वर्ष 2018 से इसमें रिसर्च आपरेशंस शुरू हो गए
ये लैब इतनी सुरक्षित जगह है कि यहां कभी बाढ़ आने का खतरा नहीं है. कभी यहां भूकंप आने का खतरा भी नहीं है. क्योंकि ये भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र में नहीं है. यहां कभी भूकंप नहीं आया. वैसे अगर आ भी जाए तो ये रिक्टर स्केल पर 07 तीव्रता वाले भूकंप को बर्दाश्त कर सकती है