कुछ साल पहले रवीश सर ने हरदोई के तत्कालीन NDTV के रिपोर्टर को एक ख़बर के सम्बंध में कॉल किया , उस ख़बर का इनपुट रवीश सर को किसी अनजान व्यक्ति ने ट्रेन पर सफर करते हुए हरदोई स्टेशन पर आई एक परेशानी के चलते दिया था , रवीश सर ने लखनऊ डेस्क या एसाइनमेंट के किसी व्यक्ति से बात करने के बजाय सीधे लोकल रिपोर्टर को एप्रोच किया ताकि ग्राउंड रिपोर्ट मिल सके ।
लोकल रिपोर्टर जो थे उस समय हरदोई जिले के उनको ये अंदाजा नही था कि सीधे रवीश सर फोन करेंगे उन्हें , रवीश सर ने जब उस रिपोर्टर को फोन पर कहा कि फलाने जी मैं रवीश कुमार बोल रहा हूँ दिल्ली से तो उन लोकल रिपोर्टर ज़नाब ने अपनी हरदोईया भाषा मे जबाब दिया अरे रक्खउ यार , काहे घुसे हउ । दरहसल हरदोई वाले रिपोर्टर साहब ने समझा कि उनका कोई दोस्त मौज ले रहा है ।
थोड़ी देर बाद कमाल सर का कॉल आता है और उन्होंने अपने अंदाज में रिपोर्टर साहब से कहा कि फलाने जी ये किस लहजे में आपने रवीश सर से बात की , बिना देर किए उन्हें कॉल बैक करिये ।
डरे सहमे उन लोकल रिपोर्टर को लगा कि अब तो नौकरी गयी , किसी तरह उन्होंने रवीश सर को कॉल किया और Sorry कहा , रवीश सर ने बिना किसी नाराजगी के पूरी खबर का प्लॉट समझाया और कहा कि लोकेशन पर पहुंचिए ।
अब उन ज़नाब लोकल रिपोर्टर साहब का कॉल आता है मुझे और उन्होंने मुझे सुनाई पूरी कहानी और इल्तिज़ा की कि मैं ये स्टोरी करने में उनकी मदद करूँ , उनके बस की है नही , मैंने अपने एक साथी को साथ लिया और पहुंच गया स्टेशन पर , खबर थी वो लाखो खर्च कर रेलवे स्टेशनों पर लगाए गए वाटर एटीएम के खराब होने के चलते उपजी पानी की समस्या को लेकर । अब यहां से रवीश सर की अपनी ख़बर की बारीकी को जानने और जमीनी तौर पर खबर से जुड़ने के ज़ज़्बे को देखा हमने । जो साथी मेरा विज़ुअल्स बना रहा था रवीश सर उसके साथ लाइन पर थे , रवीश सर खुद उसको समझा रहे थे कि किस एंगल से कवर करना है , किस तरह से बाईट लेनी है , असल स्थिति क्या है रेलवे स्टेशन की आदि आदि । अमूमन स्टेट एसाइनमेंट पर बैठा कोई व्यक्ति निर्देशित भर कर देता है लोकल रिपोर्टर को कि ये स्टोरी करनी है आपको पर रवीश सर ने इस स्टोरी को खुद लीड किया और हरदोई जैसे छोटे हेड के रिपोर्टर को गाइड कर बारीकी से स्टोरी बनवाई ।
ये स्टोरी उस रात प्राइम टाइम पर रन हुई और 2 दिन नही बीते वाटर एटीएम के टेंडर वाली कम्पनी का जिम्मेदार गुजरात से हरदोई पहुंच गया मेंटेनेंस करवाने ।
ये हैं रवीश , यूँ ही कोई रवीश नही बन जाता , हम कुछ मसलों या विचारधाराओं की नींव पर उनसे असहमत हो सकते हैं पर एक पत्रकार के तौर पर मैंने उनसे ही सीखा है , और हमेशा सीखता रहूंगा ।
अभिनव
( लेखक KhanzarSutra.com के संपादक हैं )
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