कहने के लिए तो SRN (स्वरूपरानी नेहरू) अस्पताल मंडल का सबसे बड़ा अस्पताल है। लेकिन, यहां हर कदम पर लापरवाही ही लापरवाही मिलेगी। इसकी जद में एक जज की सास भी आ गईं। मामला आगे बढ़ गया। अस्पताल के स्पेशल प्राइवेट वार्ड में जज की सास भर्ती थीं। तीमारदार ने बेडशीट बदलने की बात कही तो वहां के स्टाफ ने यह कहकर पीछा छुड़ा लिया। बेडशीट शाम को नहीं बल्कि सुबह बदली जाएगी।
इसकी जानकारी जब जज को हुई तो वह रात में ही अस्पताल के उस स्पेशल वार्ड में जा पहुंचे। जहां उनकी सास भर्ती थीं। उन्होंने मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. एसपी सिंह और एसआईसी डॉ. अजय सक्सेना को तलब किया। आनन-फानन प्राचार्य ने दो पुरुष नर्स और एक वार्डब्वाय को सस्पेंड कर दिया। नर्स अंकित सिंह और संदीप यादव, जबकि वार्डब्वाय अभिषेक मिश्रा हैं।
हाथ जोड़कर मांफी मांगते रहे प्राचार्य और एसआईसी
अस्पताल में जज के सख्त रवैये को देखते हुए कालेज के प्राचार्य डॉ. एसपी सिंह और एसआईसी डॉ. अजय कुमार सक्सेना हाथ जोड़कर माफी मांगते रहे। जज ने प्राचार्य से पूछा, कि सरकार मरीजों के लिए क्या-क्या सुविधाएं देती है? क्या चादर भी बाहर से मंगाई जाती है? इस पर प्राचार्य मौन रहे, सिर्फ सॉरी सर, सॉरी सर कहते रहे। प्राचार्य ने लापरवाही करने वाले स्वास्थ्कर्मियों को भी जज के सामने पेश किया। उन लोगों ने भी इस पर माफी मांगी।
तीन कर्मचारियों को सस्पेंड किया
मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. एसपी सिंह ने बताया कि जज साहब की सास स्पेशल प्राइवेट वार्ड में भर्ती थीं, डॉक्टरों के द्वारा उनका बेहतर इलाज किया गया। लेकिन, वार्डब्वाय और नर्स की लापरवाही से उनकी बेडशीट नहीं बदली गई थी। इस पर उन्होंने नाराजगी जताई थी।
हम लोगों ने माफी मांगी और लापरवाही करने वाले तीन स्टाफ को सस्पेंड कर दिया गया है। इस संबंध में जब अस्पताल के एसआईसी डॉ. अजय सक्सेना के मोबाइल पर संपर्क करने का प्रयास किया तो उन्होंने कॉल नहीं रिसीव की।
सामान्य मरीजों को नहीं मिलती बेडशीट
एसआरएन अस्पताल की हकीकत देखनी हो तो किसी भी जनरल वार्ड में चले जाइए। मरीज टूटे-फूटे बेड पर भर्ती पड़े रहते हैं। कुछ तीमारदार घर से चादर लाकर बिछा लिए तो ठीक वरना मरीज वैसे ही लेटा रहता है।
इतना ही नहीं 90% भर्ती मरीजों की दवाएं बाहर के मेडिकल स्टोर से मंगाई जाती है। यहां के जूनियर डॉक्टर आए दिन मरीज और तीमारदारों से मारपीट करते रहते हैं, लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती।