सरदारशहर उप चुनाव काे लेकर भले ही भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनियां और प्रभारी अरुण सिंह ने यह कहकर खुद काे सेफ साइड रखा था कि उपचुनाव में सहानुभूति की लहर रहती है, लेकिन इस चुनाव की मॉनिटरिंग की कमान दिल्ली के हाथ में है। ऐसे में भाजपा की प्रदेश इकाई को इस उपचुनाव में करामात दिखाकर खुद को साबित करने की भारी चुनौती है।
हाईकमान इस चुनाव काे जीतकर राजस्थान में एक साल बाद होने वाले मुख्य चुनाव से पहले भाजपा की मजबूती का बड़ा संदेश देना चाहता है। राजस्थान में पिछले चार साल में अब तक हुए आठ उप चुनावों में भाजपा के खाते में सिर्फ एक सीट ही पायी है जबकि बाकी सात सीटों पर उसकी हार हुई। ऐसे में सरदारशहर उपचुनाव में भाजपा पर अपना ट्रैक रिकॉर्ड सुधारने का बड़ा दबाव है।
कांग्रेस विधायक भंवरलाल शर्मा के निधन के कारण सरदारशहर सीट पर उप चुनाव हाे रहा है। कांग्रेस ने यहां से भंवरलाल शर्मा के बेटे अनिल शर्मा को मैदान में उतारा है वहीं भाजपा ने एक बार पहले यहां से विधायक रहे अशोक कुमार पींचा को टिकट दिया है। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी ने यहां से लालचंद मूंड को अपना प्रत्याशी बनाकर भाजपा-कांग्रेस के वोटों में सेंध मारने की स्थिति पैदा कर दी है।
कांग्रेस प्रत्याशी अनिल शर्मा अपने दिवंगत पिता की सहानुभूति की लहर पर हैं ताे भाजपा प्रत्याशी भी पिछली हार की सहानुभूति पर सवार है। कांग्रेस इस उप चुनाव से ज्यादा राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की तैयारी पर है। वहीं भाजपा ने इस चुनाव काे जीतने के लिए खास रणनीति तैयार की है।
पहली बार भाजपा ने 40 नेताओं काे प्रचार का जिम्मा दिया है। उप चुनाव जीतने के लिए भाजपा ने इन्हें गुजरात से चुनाव प्रचार से भी दूर कर दिया है। केंद्रीय संगठन की और से जारी सूची में सभी बड़े नेताओं काे उप चुनाव पर फोकस करने का जिम्मा दिया है। अब ये नेता 20 नवंबर के बाद से उप चुनाव वाली जगह कैंप करते दिखेंगे।
पुरानी कमजोरी दूर करने का उपाय : अशोक कुमार पींचा पूर्व में विधायक रह चुके हैं और पिछला चुनाव 16 हजार से अधिक वोटों से हारा था। ऐसे में पार्टी के वरिष्ठ नेता और पींचा कमजोर कड़ियों काे खोजकर मजबूती देने और चुनावी समीकरण काे साधने की दिशा में वर्किंग भी कर रहे हैं ताकि पुराना गैप भरकर चुनाव जीता जा सके।
चुनावी मैदान में 12 उम्मीदवार
सरदारशहर विधानसभा उपचुनाव के लिए 12 उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किए हैं। कांग्रेस से अनिल शर्मा, BJP से अशोक कुमार पिंचा, RLP से लालचंद मूंड, CPI(M) से सांवरमल मेघवाल, इंडियन पीपुल्स ग्रीन पार्टी से परमाराम नायक, निर्दलीय- उमेश साहू, प्रेम सिंह, सुभाष चंद्र, राजेंद्र भाम्बू, विजयपाल श्योराण, सांवरमल प्रजापत, सुरेंद्र सिंह राजपुरोहित ने नॉमिनेशन फाइल किए हैं।
उपचुनाव में सहानुभूति फैक्टर कैसे काम करता है...पिछले परिणामों से समझा जा सकता है
पिछले उपचुनावों की बात करें, तो वल्लभनगर से कांग्रेस के दिवंगत विधायक गजेंद्र सिंह शक्तावत की पत्नी प्रीति शक्तावत, सहाड़ा सीट से कांग्रेस के दिवंगत विधायक कैलाश त्रिवेदी की पत्नी गायत्री देवी, सुजानगढ से कांग्रेस के दिवंगत विधायक मास्टर भंवरलाल मेघवाल के पुत्र मनोज मेघवाल को मतदाताओं ने अपना विधायक चुना।
इन सभी सीटों पर सहानुभूति वोट और सिम्पैथी फैक्टर हावी रहा। लेकिन जब बीजेपी ने धरियावद से पार्टी विधायक गौतमलाल मीणा के निधन से हुए उपचुनाव में उनके बेटे कन्हैयालाल मीणा का टिकट काटकर खेत सिंह को चुनाव लड़ाया, तो कांग्रेस के पूर्व विधायक नगराज मीणा के हाथों उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। सहानुभूति वोट लेने से बीजेपी चूक गई। यह बड़ा रणनीतिक फेलियर रहा। क्योंकि सिम्पैथी का वोट बीजेपी से नाराज होकर कांग्रेस प्रत्याशी के खाते में चला गया।
लेकिन जब बीजेपी ने राजसमंद से अपनी दिवंगत विधायक किरण माहेश्वरी की बेटी दीप्ति माहेश्वरी को टिकट देकर चुनाव लड़ाया, तो सिम्पैथी वोटों से उनकी जीत हुई थी।