राजस्थान में राजनीतिक सरगर्मी एक बार फिर बढ़ने लगी है। इस बार यह हलचल बढ़ने का कारण विधायक और मंत्री हैं। पिछले कुछ दिनों में कई विधायकों-मंत्रियों ने सरकार पर अलग-अलग मसलों को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। अपनी मांगों और मसलों को लेकर नेताओं ने इस बार धमकी और चेतावनी भरे अंदाज में सरकार को घेरा है। यह इस बार इसलिए खास है क्योंकि सरकार को घेरने वाले नेताओं में कई वो हैं जिन्हें सीएम अशोक गहलोत का करीबी माना जाता था।
खाचरियावास ने एसीआर मुद्दे से की शुरुआत
राजस्थान सरकार को लगातार मंत्री राजेंद्र गुढ़ा और विधायक दिव्या मदेरणा पहले से राजनीतिक फ्रंट पर घेर ही रहे थे। मगर अब कई नेताओं ने अलग-अलग जमीनी मुद्दों पर सरकार को घेरना शुरू कर दिया। इसकी शुरुआत मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने की। खाचरियावास ने एसीआर भरने के मुद्दे को लेकर सीएम से जवाबदेही मांगी। इस मसले पर उन्होंने प्रदेश की नौकरशाही पर भी सवाल उठाए।
ओबीसी मसले पर हरीश चौधरी-राजेंद्र गुढ़ा भड़के
खाचियावास का मसला सुलझा भी नहीं था कि हरीश चौधरी ने ओबीसी आरक्षण को लेकर सरकार को घेरना शुरू कर दिया। पूर्व सैनिकों को ओबीसी कोटे में दिए जा रहे आरक्षण को लेकर चौधरी ने सीएम को घेरा। इसी मसले को लेकर राजेंद्र गुढ़ा ने विरोधी स्वर दिखाते हुए सरकार को चेतावनी दे डाली कि अगर पूर्व सैनिकाें को आरक्षण से हटाया गया तो वे ईंट से ईंट बजा देंगे।
राजेंद्र यादव-हरीश मीना ने भी दिखाई आंखें
ये मसला चल ही रहा था कि गृह राज्यमंत्री राजेंद्र यादव ने कोटपूतली को जिला बनाने की मांग कर डाली। उन्होंने कहा कि लम्बे समय से कोटपूतली को जिला बनाने की मांग उठाई जा रही है। मगर कोई सुनवाई नहीं हो रही। इसी दौरान देवली-उनियारा विधायक हरीश मीना ने सरकारी स्कूलों को विलय करने के मसले पर सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर सरकार इस बारे में गंभीरता से नहीं सोचती है तो अगले विधानसभा सत्र में वे इसका विरोध करेंगे।
विधायकों-मंत्रियों के बदले सुर की 3 बड़ी वजहें
पिछले कुछ समय में लगातार मंत्रियों और नेताओं के बयान सामने आने के बाद यह सवाल उठने लगे हैं कि अचानक मंत्री-विधायक सरकार के खिलाफ मुखर कैसे हो गए हैं। भास्कर ने जब कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं, राजनीतिक विश्लेषकों से बातचीत की तो इसके पीछे तीन प्रमुख वजहें सामने आई।
नेताओं की वफादारी व्यक्ति से विधानसभा पर शिफ्ट हुई
राजस्थान में सालभर बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में नेताओं के पास चुनाव के लिए कम समय बचा है। इसे देखते हुए अब नेता अपनी विधानसभा में खुद को मजबूत करना चाहते हैं। इसे देखते हुए अपने जातिगत और क्षेत्रीय मुद्दों पर नेता शिफ्ट हो गए हैं। ऐसे में विधायक किसी भी एक नेता के प्रति वफादारी दिखाने से बच रहे हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अब नेताओं के लिए स्थानीय मुद्दे महत्वपूर्ण हैं।
मांगे पूरी कराने का अंतिम मौका है
राजस्थान सरकार अब अपने अंतिम वर्ष में हैं। ऐसे में अगले साल आने वाला सरकार का यह अंतिम बजट है। इसी को देखते हुए विधायक अपने क्षेत्र से जुड़ी मांगे पूरी कराने में लग गए हैं। उन्हें मालूम है कि चुनाव से पहले ये अंतिम बजट है। जो होना है इसी बजट में होगा। ऐसे में अगर सही समय पर अपने मांगें और जरूरी योजनाएं पूरी नहीं कराई गई तो वोट मांगने में दिक्कत आएगी। जिले बनाना, स्कूलों को बंद होने से रोकना, आरक्षण जैसे मुद्दे इसलिए चर्चित हो रहे हैं।
कांग्रेस के टिकट पर लड़ना है चुनाव
राजस्थान में कांग्रेस पार्टी का कैडर मजबूत है। ज्यादातर विधानसभाओं में जमीनी स्तर पर कार्यकर्ता मौजूद हैं। ऐसे में राजस्थान में कांग्रेस की स्थिति अन्य राज्यों की तुलना में कमजोर नहीं है। चुनाव नजदीक हैं और नेताओं को अगले चुनाव में कांग्रेस से टिकट चाहिए। ऐसे में अब नेता किसी भी गुटबाजी में बंटने या दिखने के बजाय पार्टी और जनता के प्रति वफादार दिखना चाहते हैं। यही वजह है कि किसी भी खेमे या उस खेमे के नेता के प्रति झुकाव दिखाने के बजाय हाईकमान और पार्टी को यह दिखाना चाहते हैं कि वे मजबूत हैं और जनता के मुद्दे उठाने से जनता में उनकी पकड़ है।
अस्थिरता का फायदा उठाएंगे विधायक-मंत्री
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अब राजस्थान में इसी तरह की बयानबाजी देखने को मिलेगी। राजस्थान के मंत्री और विधायक अब लगातार अपनी मांगों को लेकर मुखर होते दिखेंगे। जानकारों का कहना है कि राजस्थान में नेतृत्व को लेकर जो अस्थिरता है उसका फायदा विधायक और मंत्री उठाने काे देखेंगे। नेतृत्व किसी के भी हाथ में हो, सत्ता चाहे किसी की भी हो। मगर विधायक और मंत्री लगातार इसी तेवर में सरकार को घेरते दिखेंगे।