UP: मैनपुरी लोकसभा, रामपुर और खतौली में विधानसभा सीट पर उपचुनाव हो रहा है। सपा की सीधी टक्कर सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी से है। मगर इस चुनाव में बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष ने बिना कैंडिडेट उतारे ही एंट्री ली है। उन्होंने कहा कि पसमांदा मुस्लिम का राग बीजेपी बेवजह से लगा रही है। मुस्लिमों को लेकर बीजेपी का ट्रैक रिकॉर्ड किसी से छिपा नहीं है। बीजेपी की निगेटिव सोच की वजह से मुस्लिम आज भी पिछड़े हुए हैं।
मायावती ने भले ही उप चुनाव को लेकर बड़ा स्टेटमेंट जारी किया हो, मगर उन्होंने उप चुनाव में अपना कैंडिडेट नहीं उतारा है। अब सवाल यह उठ रहा है कांग्रेस-बसपा के उम्मीदवार नहीं उतारने पर उनके वोटर्स किसके पाले में जाएंगे। किसको फायदा होगा और किसका ये नुकसान करेंगे।
5पॉइंट में सबसे पहले मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव समीकरण को समझते हैं...
1.यादव बनाम नॉन यादव OBC शाक्य उम्मीदवार
मैनपुरी लोकसभा सपा के संरक्षक रहे मुलायम सिंह यादव की पारिवारिक सीट मानी जाती है। इस सीट पर चार लाख के करीब यादव आबादी तो तीन लाख के करीब शाक्य वोटर्स है। इसके बाद ब्राह्मण, दलित और मुस्लिम वोटर्स आते हैं। फिलहाल डिंपल को प्रत्याशी बनाने से पहले अखिलेश यादव ने पूर्व मंत्री रहे शाक्य जाति से आने वाले को जिला अध्यक्ष नियुक्त किया। बीजेपी में शामिल हुए रघुराज सिंह शाक्य भी सपा को छोड़कर ही आए हैं। यहां यादव बनाम गैर यादव उम्मीदवार की टक्कर है।
2. रघुराज के लिए खुद को साबित करने की चुनौती
कभी शिवपाल यादव के करीबी रहे रघुराज सिंह शाक्य को बीजेपी ने डिंपल यादव के सामने उतार दिया है। फिलहाल बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य रघुराज सिंह शाक्य के नामांकन में मैनपुरी मैं मौजूद रहने वाले हैं। ऐसे में भाजपा ने पूरी ताकत के साथ प्रचार करने और सीट जीतने का दावा शुरू कर दिया है। लेकिन कभी सपाई रहे रघुराज सिंह शाक्य कितने वोट बीजेपी के मूल वोट से अलावा पाते हैं। ये एक बड़ी चुनौती भी है।
3.शिवपाल का स्टार प्रचारक में शामिल
शिवपाल सिंह यादव की विधानसभा जसवंत नगर मैनपुरी लोकसभा सीट में आती है। सपा की तरफ से जारी की गई स्टार प्रचारकों की सूची में शिवपाल यादव शामिल हैं। नेताजी मुलायम सिंह यादव के निधन से पहले हुए उपचुनाव में शिवपाल यादव का नाम स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल नहीं रहा। नेताजी के निधन के बाद हो रहे चुनाव में शिवपाल सिंह यादव का नाम स्टार प्रचारकों की सूची में है। चुनाव से पहले यह पारिवारिक एकता को लेकर अखिलेश का बड़ा संदेश भी है।
4.उपचुनाव में अखिलेश कर रहे पत्नी के लिए प्रचार
नेता जी के निधन से पहले हुए उपचुनाव के में अखिलेश ने प्रचार नहीं किया था। अखिलेश यादव आजमगढ़ की लोकसभा सीट पर प्रचार किए और रामपुर की लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में प्रचार किए थे। सपा के जानकार मानते हैं कि नेताजी के निधन के बाद अखिलेश ने पहले उपचुनाव में प्रचार करने का फैसला किया है। फिलहाल पारिवारिक खींचतान के बीच अखिलेश ने पत्नी डिंपल को चुनाव जिताने के लिए मैनपुरी में डेरा डाल रखा है। अखिलेश ने मीडिया के दिए बयान में कहा भी कि वह मैनपुरी लोकसभा सीट जीत रहे है।
5.बसपा-कांग्रेस के उम्मीदवार का न लड़ना
मैनपुरी लोकसभा सीट बीएसपी भले ही कभी जीती नहीं हो लेकिन उसने यहां अच्छा प्रदर्शन किया है। 1996 से लेकर 2014 तक हुए लोकसभा के सभी चुनाव और उपचुनाव में बीएसपी को 14 से लेकर 31% तक वोट मिला है। बीएसपी का एक सीट पर करीब 15% वोट पक्का है तो लोकसभा के उपचुनाव में कितने वोटों का इधर से उधर होना नतीजों को निश्चित रूप से प्रभावित करेगा। वहीं राजनीतिक जानकार मानते हैं कि कांग्रेस का वोट सपा को जाता है। लखीमपुर खीरी के उप चुनाव के बाद सपा ने आरोप लगाया था कि बसपा का वोट भाजपा में ट्रांसफर किया जाता है। इस बार मैदान में बीएसपी के न होने का क्या परिणाम होगा, फिलहाल ये कहना मुश्किल है।
अब आपको मैनपुरी संसदीय सीट की 5 विधानसभा के बारे में भी बताते हैं...
तीन MLA सपा के दो पर बीजेपी का कब्जा
यूपी की मैनपुरी संसदीय सीट में पांच विधानसभा आती हैं। इसमें जसवंतनगर, करहल, किशनी, मैनपुरी शहर और भोगांव हैं। इसमें जसवंत नगर से शिवपाल सिंह यादव, करहल से सपा प्रमुख अखिलेश यादव, किशनी से सपा के बृजेश सिंह विधायक हैं, जबकि मैनपुरी शहर सीट से जयवीर सिंह और भोगांव विधानसभा से रामनरेश अग्निहोत्री विधायक हैं।
अब बात करते हैं रामपुर विधानसभा के उपचुनाव की...
आकाश सक्सेना से बीजेपी को आस, आसिम रजा पर आजम की साख
बीजेपी के नेता आकाश सक्सेना एक बार फिर से चुनाव मैदान में है। पेशे से व्यवसायी आकाश सक्सेना ने 43 मुकदमे आजम खान और उनके परिवार पर दर्ज कराएं हैं। इनमें सबसे चर्चित मुकदमा बर्थ सर्टिफिकेट के मामले में अब्दुल्ला आजम का है। ऐसे में सत्तारूढ़ पार्टी की आस आकाश सक्सेना पर ही टिकी हुई है।
वहीं आसिम राजा रामपुर में सपा के नगर अध्यक्ष पद पर हैं। वह शहर के जाने-माने लोगों में शुमार होते हैं। इसके साथ ही आसिम रजा 10 बार के विधायक आजम के करीबी हैं। आजम खान के भरोसेमंद नेताओं में भी हैं। रामपुर सीट पर हुए लोकसभा उपचुनाव में भी आसिम रजा को सपा का प्रत्याशी बनाया गया था। उस चुनाव में उन्हें हार का समाना करना पड़ा था। बीजेपी उम्मीदवार घनश्याम लोधी ने वह उपचुनाव जीत लिया था।घनश्याम ने सपा उम्मीदवार आसिम राजा को 42,048 वोटों से हराया था। अब फिर से आजम खान ने आसिम रजा पर भरोसा जताया है। आजम के सियासी सफर के वारिस आसिम रजा पर उनकी साख भी टिकी हुई है।
क्या कहते हैं समीकरण
मुस्लिम में पठान, अंसारी सबसे ज्यादा
यहां कुल मतदाता 3,88, 994 हैं। इनमें महिला मतदाता 182052 और पुरूष मतदाता 206904 हैं। रामपुर विधानसभामुस्लिम बाहुल्य है। मुस्लिम में भी सबसे ज्यादा पठान और अंसारी हैं। जिनके अनुमानित मतदाताओं की संख्या करीब 80 हजार है। इसके अलावा तुर्क समेत अन्य बिरादरियां भी हैं। हिंदुओं में वैश्य और लोधी समाज के मतदाता करीब 35-35 हजार हैं।
वहीं, यादव, सैनी और अनुसूचित जाति-जनजाति के भी मतदाता अच्छी संख्या में हैं। इस निर्वाचन क्षेत्र में मुस्लिम मतदाता 53% और हिंदू मतदाता 47% हैं। वैश्य और लोध राजपूत समुदायों के मतदाता भी अच्छी संख्या में हैं। साथ ही, निर्वाचन क्षेत्र की 6.14% आबादी अनुसूचित जाति की है।
अब बात खतौली विधानसभा सीट की...
खतौली विधानसभा चुनाव में क्या किसान नेता बिगाड़ेंगे खेल
मुजफ्फरनगर के खतौली सीट पर भी कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है। यह सीट भाजपा विधायक विक्रम सैनी को एमपी-एमएलए कोर्ट से दो साल की सजा के बाद खाली हुई है। इसके चलते उनकी विधायकी चली गई है। यह सीट राकेश टिकैत परिवार का गृह क्षेत्र है। ऐसे में देखना होगा कि भाजपा को यहां जीत मिलती है या फिर सपा और रालोद के कैंडिडेट को समर्थन मिलता है।हालांकि ये सीट कभी भी किसी पार्टी विशेष का गढ़ नहीं रही।
अभी दो बार से ये सीट बीजेपी की झोली में आ रही है। इस सीट पर रालोद (RLD), बसपा (BSP), सपा (SP) और CPI तक जीत दर्ज कर चुकी हैं। खतौली विधानसभा सीट पर इस साल हुए चुनाव में बीजेपी के विक्रम सिंह सैनी ने आरएलडी के टिकट पर लड़ रहे राजपाल सिंह सैनी को 16 हजार वोट के अंतर से हराया था। वहीं 2017 में भी बीजेपी के विक्रम सैनी ने समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी चंदन सिंह चौहान को हराकर ये सीट जीती थी। बसपा दोनों ही चुनावों में तीसरे पायदान पर रही थी।
आरएलडी का जाट-गुर्जर-मुस्लिम दांव
खतौली विधानसभा सीट पर बीजेपी के खिलाफ आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी ने मदन भैया पर दांव लगाकर 2012 वाला सियासी दांव चला है। आरएलडी ने 2012 के चुनाव में खतौली सीट पर गुर्जर समुदाय से आने वाले करतार सिंह भड़ाना को उतारकर अपना कब्जा जमाया था। इसी फॉर्मूले पर आरएलडी ने गुर्जर समुदाय से आने वाले मदन भैया को प्रत्याशी बनाया है ताकि जाट-गुर्जर-मुस्लिम समीकरण के दम पर खतौली सीट पर जीत का परचम फहरा सके।
आरएलडी यह समीकरण सिर्फ खतौली सीट पर ही नहीं बल्कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कई सीटों पर निर्णायक भूमिका अदा कर सकता है। इसीलिए जयंत चौधरी ने मदन भैया के जरिए बड़ा दांव चला है।
खतौली सीट का सियासी समीकरण
खतौली विधानसभा सीट के सामाजिक समीकरण में भी गुर्जर और सैनी समाज का दबदबा है। इस सीट पर करीब तीन लाख मतदाता है, जिनमें 27 फीसदी मुस्लिम 73 फीसदी हिंदू मतदाता है। 80 हजार के करीब मुस्लिम वोटर है, जो किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं तो 40 हजार दलित मतदाता है। सैनी समुदाय के 35 हजार वोट हैं तो जाट 27 हजार है और गुर्जर भी करीब 29 हजार है। साथ ही ब्राह्मण 12 हजार और राजपूत वोट 5 हजार है और 10 हजार कश्यप वोटर हैं।
रामपुर- खतौली में कांग्रेस-बसपा अब हासिये पर आ गई
खतौली विधानसभा में केवल एक बार ही 1980 में कांग्रेस इंदिरा से धर्मवीर सिंह चुनाव जीती है। उसके बाद कभी भी कांग्रेस का खाता नहीं खुला।
बहुजन समाज पार्टी के 2007 में बसपा के योगराज सिंह एक बार ही खतौली विधानसभा पर चुनाव जीती है। उसके बाद उनका प्रत्याशी जीत नहीं दर्ज करा सका।
साल 2019 में ऐसा पहली बार हुआ था जब रामपुर विधान सभा में कांग्रेस महज 4182 वोटों पर सिमट गई और बसपा इससे भी कम 3441 वोटों पर रह गई। इससे साफ है कि रामपुर की सियासत में कांग्रेस और बसपा किस कदर हासिये पर आ गई हैं।