डिंपल यादव फिर चुनावी मैदान में उतर रहीं हैं। वह मुलायम की सीट मैनपुरी से लोकसभा उपचुनाव लड़ेंगी। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने उनके नाम की घोषणा कर दी है। मुलायम के निधन से यह सीट खाली हुई है। इस सीट पर 5 दिसंबर को वोटिंग है।
डिंपल सियासी दंगल में 3 साल बाद वापसी कर रहीं हैं। 2019 में उन्होंने कन्नौज से लोकसभा चुनाव लड़ा था। इसमें वह भाजपा के सुब्रत पाठक से हार गईं थीं। तब से वह सीधे तौर पर राजनीति में नहीं उतरीं। 2022 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने कौशांबी समेत कुछ सीटों पर प्रचार किया था।
डिंपल 5वीं बार चुनाव लड़ेंगी डिंपल
44 साल की डिंपल 5वीं बार चुनाव लड़ेंगी। मैनपुरी सपा की पारिवारिक सीट है। 1996 में यहां मुलायम सिंह ने पहली बार चुनाव लड़ा था। तब से इस सीट पर सपा का कब्जा है। तेज प्रताप यादव और धर्मेंद्र यादव ने भी अपनी सियासी पारी की शुरुआत इसी सीट पर जीत से की थी।
मुलायम के निधन के बाद इस सीट पर तेज प्रताप यादव और धर्मेंद्र यादव का नाम भी चल रहा था। हालांकि, अखिलेश ने डिंपल के नाम पर आखिरी मुहर लगाई है। राजनीति के जानकारों का कहना है कि मुलायम की सीट यानी उनकी विरासत पर डिंपल के उतारने के गहरे सियासी मायने भी हैं। डिंपल अब फिर सक्रिय राजनीति में आएंगी।
डिंपल यादव के बारे में आपको कुछ फैक्ट पढ़वाते हैं
कन्नौज से दो बार सांसद रहीं
15 जनवरी 1978 को महाराष्ट्र के पुणे में पैदा हुईं डिंपल कन्नौज से दो बार सांसद रह चुकी हैं। उनका परिवार मूल रूप से उत्तराखंड की रहने वाला है। उनके पिता रिटायर कर्नल हैं। डिंपल 3 बहनों में दूसरे नंबर की हैं। डिंपल की शुरुआती पढ़ाई सैनिक स्कूल में हुई। उनके माता-पिता अभी उत्तराखंड के काशीपुर में रहते हैं। डिंपल और अखिलेश यादव ने प्रेम विवाह किया था।
2009 में फिरोजाबाद उपचुनाव में बनी थीं उम्मीदवार
2009 लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश की दो सीटों फिरोजाबाद और कन्नौज से चुनाव लड़ा। बाद में अखिलेश ने फिरोजबाद सीट छोड़ दी और उपचुनाव में डिंपल को वहां से उम्मीदवार बनाया। लेकिन, डिंपल कांग्रेसी नेता राज बब्बर से चुनाव हार गईं।
2012 में कन्नौज से सपा ने डिंपल पर ही जताया था भरोसा
अखिलश यादव के कन्नौज लोकसभा सीट छोड़ने के बाद वहां 2012 में उपचुनाव हुआ। सपा ने इस बार भी डिंपल यादव पर भरोसा जताया। वहीं, इस चुनाव में बसपा, कांग्रेस, भाजपा ने उनके खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं उतारा जबकि, दो लोगों के नामांकन वापस लेने के बाद डिंपल निर्विरोध चुनाव जीतने में कामयाब रहीं। वहीं 2014 लोकसभा चुनाव में भी वह कन्नौज सीट बचा ले गईं। इस बार भी वो कन्नौज से ही सपा की उम्मीदवार हैं।
अब हम आपको एक पॉलिटिकल एनालिसिस भी पढ़वाते हैं कि आखिर डिंपल ही मैनपुरी से चुनाव का चेहरा कैसे बनी। क्योंकि विकल्प तेज प्रताप यादव और धर्मेंद्र यादव का भी था
विधानसभा 2022 में हिट प्रचारक थीं डिंपल
इसके पीछे यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में उनका चुनाव प्रचार रहा। चुनाव प्रचार में डिंपल यादव हिट रहीं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने उन्हें आखिरी चरणों में मुश्किल सीटों पर प्रचार के लिए उतारकर सीटें अपनी झोली में डलवा ली। कौशांबी और जौनपुर में हुई जनसभाओं में सिर्फ एक सीट ही भाजपा के खाते में जुड़ सकी। वो भी बहुत कम मार्जिन के साथ।
सीट वार पढ़िए कि डिंपल का जादू कैसे काम कर गया
25 फरवरी : सिराथू
पल्लवी से कांटे की टक्कर में हारे डिप्टी सीएम केशव
विधानसभा चुनाव के पांचवें चरण में पहली जनसभा डिंपल ने सिराथू में पल्लवी पटेल के लिए की। पल्लवी के सामने यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य खुद चुनाव मैदान में थे। डिंपल की जनसभा होने के बाद यहां पल्लवी टक्कर में आ गई। वो इस सीट से जीत गईं।
25 फरवरी : चायल
कड़े मुकाबले के बाद साइकिल ही चली
कौशांबी की ही चायल विधान सभा में पार्टी प्रत्याशी पूजा पाल के समर्थन में सभा की। पूजा पाल पूर्व विधायक राजू पाल की पत्नी हैं। यहां पूजा का मुकाबला अपना दल सोनेलाल के नागेंद्र प्रताप सिंह पटेल से था। 88818 वोट लेकर पूजा पाल ने जीत दर्ज की।
25 फरवरी : मंझनपुर
यहां भाजपा संगठन के प्रचार के खिलाफ डिंपल की एक जनसभा ही भारी
यहां भाजपा की तरफ से लाल बहादुर चुनावी मैदान में थे। भाजपा संगठन उनके लिए प्रचार कर रहा था। डिंपल ने यहां इंद्रजीत सरोज के लिए सिर्फ एक जनसभा की थी। यहां भी सपा प्रत्याशी ही जीता।
26 फरवरी : मड़ियाहूं
सिर्फ 1206 वोट से फिसली बाजी
भाजपा के घटक दल अपना दल सोनेलाल के प्रत्याशी डॉ. आरके पटेल जौनपुर की मड़ियाहू सीट से खड़े थे। उन्हें सपा की प्रत्याशी सुषमा पटेल से चुनौती थी। यहां डिंपल ने जनसभा की। यहां कांटे की टक्कर ऐसी कि पूरी बाजी सिर्फ 1206 वोटों से ही सरकी।
26 फरवरी : मछलीशहर
डिंपल के प्रचार का डॉक्टर रागिनी को फायदा
सातवें चरण के प्रचार में मछलीशहर आता है। मछलीशहर से डॉ. रागिनी चुनाव लड़ रही थीं। सपा की इस डॉक्टर प्रत्याशी के लिए भी डिंपल ने प्रचार किया। नतीजा ये रहा कि रागनी को 91659 वोट मिले। भाजपा के प्रत्याशी महिलाल 83175 वोट पाकर हार गए थे।
सपा ने इस बार भी अपने परिवार पर ही भरोसा जताया है, अब आपको बताते हैं कि ऐसा पहले कब-कब हुआ है
तेज प्रताप और धर्मेंद्र यादव को भी लड़वा चुके हैं चुनाव
समाजवादी पार्टी को परिवार पर भरोसा है। यह रणनीति वह मैनपुरी पर लागू की गई है। सपा की यह रणनीति पहले भी कामयाब हो चुकी है। मैनपुरी लोकसभा सीट पर 2014 में मुलायम ने जब मैनपुरी सीट छोड़कर आजमगढ़ की सीट संभाली थी। तब भी उपचुनाव में परिवार के तेज प्रताप यादव को मैनपुरी से उतारा था। तेज प्रताप ने तब 3 लाख से अधिक वोटों से चुनाव जीता था।
इससे पहले 2004 उपचुनाव में धर्मेंद्र यादव भी मैनपुरी लोकसभा सीट से चुनाव लड़कर जीत चुके हैं। तब भी मुलायम ने यह सीट खाली की थी। यानी इस बार भी सपा इसी पर भरोसा कर रही है। 2019 में जब मुलायम आजमगढ़ लोकसभा सीट छोड़ मैनपुरी गए तो आजमगढ़ से अखिलेश यादव लोकसभा पहुंचे। हालांकि, 2022 में वह यह सीट छोड़ करहल से विधायक बने। धर्मेंद्र यादव को आजमगढ़ उपचुनाव लड़ाया तो लेकिन वह हार गए।
भाजपा अब किसे बनाएगी उम्मीदवार, बहू अपर्णा की चर्चा शुरू
डिंपल यादव के चुनावी मैदान में उतरने के बाद समीकरण बदले हैं। भाजपा ने अभी अपने उम्मीदवार का चेहरा स्पष्ट नहीं किया है। यहां से शिवपाल यादव के नाम पर की चर्चा चल रही थी। यादव वोटर उनका समर्थन कर सकते हैं, अगर पिछली जाति के के कद्दावर नेता का सपोर्ट उन्हें मिले, तो मैनपुरी सीट निकाल सकते हैं।
उनके अलावा मुलायम की बहू अपर्णा यादव पर भी सबकी नजर है। ये सीट मुलायम की है। अपर्णा यादव को वोटर्स की सहानभूति मिल सकती है। दरअसल, मैनपुरी लोकसभा में सबसे ज्यादा यादव मतदाता है। इनकी संख्या 4 लाख से भी ज्यादा की है। इसके बाद शाक्य मतदाता लगभग 2.25 लाख के आसपास हैं। ऐसे में एक चर्चा ये भी है कि भाजपा यहां कोई शाक्स नेता बतौर उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतार सकती है।