बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने स्पष्ट कर दिया है कि पार्टी की कोर कमेटी से चर्चा करके के बाद ही सरदार शहर विधानसभा उपचुनाव के लिए बीजेपी का उम्मीदवार तय होगा। उन्होंने विधानसभा उपचुनाव को लेकर प्रदेश बीजेपी मुख्यालय पर मीडिया से बातचीत में कहा- सहानुभूति राजनीति में एक कारक होती है, लेकिन हमेशा कारगर हो जाए ऐसा होता नहीं है। ऐसे बहुत से उदाहरण हुए हैं। पूनिया ने विधानसभा उपचुनाव को 2023 से पहले सेमीफाइनल मानने से इनकार करते हुए कहा- एक उपचुनाव कभी भी सेमीफाइनल नहीं होता है। कांग्रेस के साथ ऐसा होता है कि उपचुनाव कांग्रेस जीतती है और मुख्य चुनाव बीजेपी जीतती है। इसलिए हर बार एक धारणा नहीं होती है।
बेरोजगारों और किसानों के मुद्दे सरदारशहर में कारगर होंगे
पूनिया बोले- मुझे लगता है बेरोजगारों के मुद्दे सरदारशहर में कारगर होंगे। किसानों के मुद्दे भी कारगर होंगे। कानून व्यवस्था वहां अच्छी होगी, ऐसा है नहीं। कुल मिलाकर सिम्पैथी केवल राजनीतिक चर्चा का कारण हो सकता है, प्रभावी कारण नहीं होगा। वहां पर सरकार के खिलाफ मुद्दों की चर्चा जनमानस में अभी भी है और चुनाव में भी बड़ा मुद्दा बनेगा।
सब दम लगाकर लड़ेंगे तो परिणाम निकाल सकते हैं
बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष बोले-हम विपक्ष में हैं प्रदेश कांग्रेस सरकार की तानाशाही, सियासी रवैये और CM के षड़यंत्र हमें सबसे लड़ना है। हम लड़ेंगे और पूरा भरोसा है कि सब लोग दम लगाकर लड़ेंगे तो अपेक्षित परिणाम निकाल सकते हैं।
युद्ध में तो सारे ही मंत्र काम आते हैं, सभी मंत्रों से काम करेंगे
दिल्ली में प्रदेश बीजेपी कोर कमेटी की बैठक के बाद अब ये चुनाव होने जा रहे हैं, वहां जो जीत के मंत्र पार्टी आलाकमान ने दिए क्या वो इस चुनाव में कारगर साबित होंगे ? मीडिया के इस सवाल पर पूनिया ने कहा- युद्ध में तो सारे ही मंत्र काम आते हैं सभी मंत्रों से काम करेंगे। पार्टी पूरी तरह एकजुट होकर चुनाव लड़ेगी। इस बात पर सबकी सैद्धांतिक सहमति है। आने वाले समय में भले ही वर्चुअल होगा,लेकिन कोर कमेटी से इसकी विधिवत चर्चा करके आगे बढ़ेंगे।
बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष के बयान के क्या हैं सियासी मायने ?
सरदारशहर की विधानसभा सीट कांग्रेस सरकार में पूर्व मंत्री भंवरलाल शर्मा के निधन से खाली हुई है। उनके पुत्र अनिल शर्मा और पत्नी मनोहरी देवी कांग्रेस से टिकट के लिए मजबूत दावेदार हैं। अनिल शर्मा मौजूदा गहलोत सरकार में राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त हैं। वह राजस्थान आर्थिक पिछड़ा वर्ग EWS आयोग के अध्यक्ष हैं। उन्हें टिकट मिला तो सहानुभूति की लहर के आधार पर उनकी बड़ी जीत हो सकती है। क्योंकि पिछले विधानसभा उपचुनाव के ट्रेंड इस बात का सबूत हैं। जिसमें सहानुभूति लहर के कारण 4 सीटों पर उपचुनाव कांग्रेस ने जीता और 1 पर बीजेपी ने जीता है। बीजेपी को इसी बात की चिन्ता सता रही है। इसलिए बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने इस उपचुनाव को विधानसभा चुनाव से पहले सेमीफाइनल मानने से इनकार कर दिया। उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि उपचुनाव कांग्रेस जीतती है लेकिन मुख्य चुनाव बीजेपी। इससे यह भी साफ है कि बीजेपी का पूरा फोकस 2023 विधानसभा चुनाव पर ही है।
पूनिया ने एक और बात की ओर इशारा किया है। जो बताता है कि बीजेपी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। उन्होंने कहा- बीजेपी में हम सब लोग दम लगाकर लड़ेंगे तो अपेक्षित परिणाम निकाल सकते हैं। पार्टी पूरी तरह एकजुट होकर चुनाव लड़ेगी। इस बात पर सबकी सैद्धांतिक सहमति है। आने वाले समय में भले ही वर्चुअल होगा,लेकिन कोर कमेटी से इसकी विधिवत चर्चा करके आगे बढ़ेंगे। इससे यह मैसेज जाता है कि पार्टी में एकजुट होकर चुनाव लड़ने पर सबकी सैद्धांतिक सहमति ही है। लेकिन अंदरूनी तौर पर खींचतान है। इसीलिए उन्होंने कहा- कोर कमेटी से विधिवत चर्चा कर आगे बढ़ेंगे।
प्रभारी अरुण सिंह भी कह चुके- उपचुनाव में सहानुभूति की लहर होती है
दो दिन पहले बीजेपी प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह ने भी कहा था कि उपचुनाव की बात अलग होती है। सहानुभूति लहर होती है। लेकिन बीजेपी चुनाव जीतने के लिए चुनाव लड़ती है। हमारा मुख्य टारगेट तो 2023 का विधानसभा चुनाव है। उसी को देखकर पूरी रणनीति बना रहे हैं। 2023 चुनाव में कांग्रेस का पूरा सूपड़ा साफ हो जाएगा।
सहानुभूति लहर के कारण उपचुनाव में जीते 4 कांग्रेस, 1 बीजेपी विधायक
पिछले विधानसभा उपचुनाव की बात करें, तो वल्लभनगर से कांग्रेस के दिवंगत विधायक गजेंद्र सिंह शक्तावत की पत्नी प्रीति शक्तावत, सहाड़ा सीट से कांग्रेस के दिवंगत विधायक कैलाश त्रिवेदी की पत्नी गायत्री देवी, सुजानगढ से कांग्रेस के दिवंगत विधायक मास्टर भंवरलाल मेघवाल के पुत्र मनोज मेघवाल को मतदाताओं ने अपना विधायक चुना। इन सभी सीटों पर सहानुभूति वोट और सिम्पैथी फैक्टर हावी रहा। लेकिन जब बीजेपी ने धरियावद से पार्टी विधायक गौतमलाल मीणा के निधन से हुए उपचुनाव में उनके बेटे कन्हैयालाल मीणा का टिकट काटकर खेत सिंह को चुनाव लड़ाया, तो कांग्रेस के पूर्व विधायक नगराज मीणा के हाथों उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। सहानुभूति वोट लेने से बीजेपी चूक गई। यह बड़ा रणनीतिक फेलियर रहा। जिसे बाद में पूनिया ने स्वीकार भी किया। क्योंकि सिम्पैथी का वह वोट बीजेपी से नाराज होकर कांग्रेस प्रत्याशी के खाते में चला गया। लेकिन जब बीजेपी ने राजसमंद से अपनी दिवंगत विधायक किरण माहेश्वरी की बेटी दीप्ति माहेश्वरी टिकट देकर चुनाव लड़ाया था, तो सिम्पैथी वोटों से उनकी जीत हुई थी।
सरदारशहर सीट पर बीजेपी से टिकट के प्रमुख दावेदार
पूर्व विधायक अशोक पिंचा, विधि प्रकोष्ठ के पूर्व सह-संयोजक शिवचंद साहू, पूर्व प्रधान सत्यनारायण सारण, पूर्व प्रधान सत्यनारायण सारण, सत्यनारायण झांझड़िया, गिरधारीलाल पारीक, प्रधान प्रतिनिधि मधुसूदन राजपुरोहित बीजेपी से टिकट के प्रमुख दावेदार हैं। पार्टी के सामने यह भी मुश्किल है कि ब्राह्मण को उम्मीदवार बनाए या किसी जाट को मैदान में उतारा जाए। क्योंकि क्षेत्र में सबसे ज्यादा संख्या जाट समाज की बताई जाती है। सूत्रों के मुताबिक सरदारशहर के विधानसभा उपचुनाव में जातीय समीकरणों के खिलाफ जाकर अगर बीजेपी ने किसी गैर जाट को उम्मीदवार बना दिया। तो निश्चित रूप से कोई प्रभावी जाट RLP से चुनाव लड़ेगा। जो चुनाव में त्रिकोण बनाकर BJP से जाट वोटर को दूर करने की कोशिश करेगा। इससे कांग्रेसी उम्मीदवार बनाए जाने पर विधायक स्वर्गीय भंवरलाल शर्मा के पुत्र अनिल शर्मा या उनकी पत्नी मनोहरी देवी सहानुभूति वोट का फायदा उठाने में कामयाब हो जाएंगे। जिसका नुकसान बीजेपी को उठाना पड़ेगा। ये बड़ा फैक्टर भी पार्टी नेतृत्व के सामने रखते हुए जाट समाज से दावेदारों ने टिकट की मांग उठाई है।
सरदारशहर विधानसभा सीट के जातीय समीकरण अनुमानित
जाति
कितने वोटर हैं
कुल वोटर
289500
ग्रामीण
219500
शहरी
67000
जाट
74500
हरिजन
55000
ब्राह्मण
40500
मुसलमान
23000
राजपूत
20000
माली
10000
कुम्हार
8000
स्वामी
8500
जैन
4000
अग्रवाल
4000
सोनी
8000
सुथार
7000
सिद्ध
7000
बाकी जातियां
19500
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