महामंडलेश्वर बनाने के लिए 5 करोड़ वसूले जा रहे हैं। इसका खुलासा खुद ब्रह्मचारी सुबोध आनंद महाराज ने किया। वो ज्योतिष पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज और द्वारका शारदा पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी श्री सदानंद सरस्वती महाराज के निजी सचिव हैं। वो गुरुवार को मेरठ आए थे। राजराजेश्वरी मंदिर में उन्होंने महामंडलेश्वर बनने के नाम पर हो रहे भ्रष्टाचार को उजागर किया। महामंडलेश्वर बनाने के नाम पर हुए भ्रष्टाचार को बताया और आरोप लगाए
महामंडलेश्वर बनाने के नाम पर लिया 5 करोड़
सुबोध आनंद जी महाराज ने आरोप लगाते हुए कहा कि नरेंद्र गिरी ने प्रज्ञानंद गिरी से 5 करोड़ रुपया लेकर निरंजनी अखाड़े का महामंडलेश्वर बनाने की बात कही। वो केवल 3 करोड़ रुपया ही जमा कर पाए 2 करोड़ रुपया जमा नहीं किया इसलिए उनको हटा दिया। 3 करोड़ रुपया वापस भी नहीं किया। अब नरेंद्र गिरी रहे नहीं। उन्होंने कहा कि हमारे यहां एक आचार्य महामंडलेश्वर को निरंजनी अखाड़े ने बनाया उससे 5 करोड़ रुपया तय हुआ। उसने 3 करोड़ रुपया दिया 2 करोड़ रुपया दे नहीं पाया। उसका पैसा भी रख लिया उसको हटा भी दिया। शंकराचार्य के बारे में ये लोग दुकानदारी करेंगे जो बिल्कुल गलत है। महामंडलेश्वर बनाने के नाम पर ये खुलेआम भ्रष्टाचार है। ये मेरा आरोप है।
ऐसे तो नकली शंकराचार्यों की बाढ़ आ जाएगी
अखाड़ा परिषद् विवाद को लेकर कहा विवाद एकदम गलत है। उन्होंने कहा कि हमारे गुरुजी 1973 में शंकराचार्य हुए थे। उस समय कोई अखाड़ा नहीं थे। उनसे पहले कृष्णबोधाश्रम जी महाराज थे। वो वेस्ट यूपी आते थे। उनको बनाने में किसी का सहयोग नहीं रहा। कुछ लोग आज अखाड़ों के नाम पर फर्जी दुकानदारी शुरू करना चाहते हैं। कहा कि 13 अखाड़े हैं 4 शंकराचार्य होते हैं। फिर 13 शंकराचार्य बन जाएंगे। तो नकली शंकराचार्यों की बाढ़ आ जाएगी।
अविमुक्तेश्वरानंद ही ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य
सुबोध आनंद महाराज ने कहा कि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती को हमारे गुरुदेव ने ज्योतिषपीठ का शंकराचार्य बना दिया। बाकी जो बनेंगे वो नकली शंकराचार्य होंगे। हमारे गुरुजी ने अपना इच्छा पत्र लिखा जिसमें उन्होंने अविमुक्तेश्वरानंद का नाम लिखा है। गुरुदेव की भूसमाधि के समय ही उनका अभिषेक कर दिया गया। द्वारका और ज्योतिषपीठ दोनों के शंकराचार्य की घोषणा कर दी थी।
शंकराचार्य सिर्फ गद्दी नहीं ज्ञान का प्रचार-प्रसार है
सुबोध आनंद महाराज बोले शंकराचार्य होने के लिए योग्यताएं होती हैं। इसके लिए बचपन से तैयार किया जाता है तब शंकराचार्य बनते हैं। ये धर्म की सुरक्षा के लिए महंत की गद्दी नहीं है। शंकराचार्य ज्ञान के प्रचार प्रसार की गद्दी है। महाराज ने कहा कि आदि शंकराचार्य ने चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना कर अपने चार सुयोग्य शिष्यों को वहां बैठाया। मठान्याय महाअनुशासन के अनुसार कैसा व्यक्ति शंकराचार्य की गद्दी पर बैठे यह लिखा है। उसके अनुसार शुचि, जितेंद्रीय, बाल ब्रहमचारी हो, वेद और वेद के अंगों का विशारद हो, न्याय शास्त्र, व्याकरण शास्त्र व अन्य विषयों की जानकारी रखता हो। वही मेरी पीठ पर बैठे। गलत व्यक्ति बैठ गया तो तीन शंकराचार्य उसे हटा सकते हैं। शंकराचार्य खेल नहीं बेहद अहम पद है।
ज्ञानवापी में शिवलिंग नंदीश्वर हैं, वो हिंदुओं को मिले
ब्रह्मचारी सुबुध्दानंद ने कहा कि देश में हिंदूओं के मठ-मंदिरों पर हमले हुए। उनको छीना गया है। ज्ञानवापी में शिवलिंग तो हैं, जहां जहां विधर्मियों ने कब्जे किए वहां वहां हमारे देवता है। वो हिंदुओं को मिलना चाहिए। वहां पूजा होनी चाहिए। हिंदुओं को उनके स्थान वापस मिलना चाहिए। ज्ञानवापी में नंदीश्वर हैं, जो सबको दिखते हैं, शिवलिंग वहां निकली है तो हिंदुओं को मिलना चाहिए। कृष्ण जन्म स्थान जहां भगवान कान्हा का जन्म हुआ वहां मस्जिद बनी वो भी हिंदुओं को मिलना चाहिए। दक्षिण भारत में भी ऐसे तमाम स्थान हैं जहां कब्जे हुए वो हिंदुओं को वापस मिलें।
पहली बार यूपी में संत सीएम बड़ी बात है
सुबुध्दानंद जी ने कहा कि सीएम योगी और पीएम मोदी बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। संत समाज का व्यक्ति सीएम बना है। धर्म पूरी तरह सुरक्षित है। अपने अनुसार सब अच्छा काम कर रहे हैं। हमें सरकार का सहयोग करना चाहिए। सरकार के विरोध से कुछ नहीं मिलेगा। सुबोध आनंद महाराज दो शंकराचार्यों के निजी सचिव हैं। बद्रीनाथ, केदारनाथ मंदिर समिति में उपाध्यक्ष रहे हैं। सदस्य भी रहे हैं। चारधाम विकास परिषद् में उपाध्यक्ष रहे हैं।