नोएडा की जमीन में खनिजों में क्या रिएक्शन हो रहे हैं। जिससे यहां पानी का टीडीएस और जल स्तर घट रहा है। इसके लिए भाभा ऐटमिक रिसर्च सेंटर मुंबई ने अपनी रिसर्च शुरु की है। पहले फेज में यमुना बैंक यानी किनारे और नोएडा मिड प्वाइंट से 30 मीटर नीचे से सैंपल लिए गए है। ये सैंपल मानसून के समय के हैं। अब 4 से 8 नवंबर के बीच पोस्ट मानसून सैंपल लिए जाएंगे।
नोएडा में औसतन प्रतिसाल 1.79 मीटर की दर से जल स्तर घट रहा है। यही स्थिति रही तो नोएडा में भूजल समाप्त हो जाएगा। इसकी वजह रिचाज वेल और रिहायशी इमारतों का बनना भी है। हालांकि से तथ्य काफी पुराने हो चुके है। भूजल बढ़ाने के लिए तमाम प्रयास भी किए गए लेकिन नाकाफी हो रहे है। ऐसे में अब भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर मुंबई ने अपनी रिसर्च के लिए इस एरिया को चुना है। यहां के वैज्ञानिकों की टीम मई के बाद से अपनी जांच-पड़ताल शुरू कर दी है। इसकी सूचना नोएडा अथॉरिटी को भी है।
एटॉमिक रिसर्च सेंटर का यह रिसर्च नोएडा की धरती के नीचे केंद्रित है। इसमें यह पड़ताल हो रही है कि नोएडा के भू-गर्भ में कौन से खनिजों की अधिकता है और कौन से खनिजों की कमी है। इसके साथ ही जल स्तर गिरने का कारण क्या है। बारिश में कितना पानी नीचे पहुंचता है और इसका असर जल स्तर पर कितना पड़ता है।
प्राधिकरण के डीजीएम ने बताया कि पानी हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के मिलकर बनता है। ऐसे में नोएडा की जमीन के अंदर कौन कौन से खनिजों की कमी है। जिससे केमिकल रिएक्शन नहीं होने से यहां जल स्तर में कामी आ रही है। साथ ही इनको कैसे बढ़ाया जाए। इसकी जानकारी तभी होगी जब रिसर्च के बाद रिजल्ट सामने आएगा। फिर उसी दिशा में काम किया जाएगा।
टीडीएस से जुड़े सवालों के मिलेंगे जवाब
अभी रिसर्च टीम ने शहर में आकर उन जगहों की फिर पड़ताल करेगी, जहां पर जल स्तर की रिपोर्ट सैंपल के तौर पर तैयार की गई थी। इसमें यह देखा जाएगा कि बारिश के बाद जल स्तर कितना बढ़ा। अगर नहीं बढ़ा तो कारण क्या रहे। इसके साथ ही खनिजों को लेकर भी पड़ताल होगी।
उद्योगों के शहर नोएडा में भू-जल में टीडीएस का लेवल लगतार बढ़ रहा है। सीधे तौर पर गई जगहों से ट्यूबवेल से निकलने वाले पानी में टीडीएस का लेवल 2 हजार के ऊपर पहुंच जा रहा है। टीडीएस टोटल डिजाल्वड सॉलिड में पानी में घुले खनिजों का संतुलन रहना जरूरी है।
लेकिन नोएडा की धरती के नीचे से निकलने वाले पानी में यह खनिज ज्यादा पानी में आ रहे हैं। भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर की यह रिसर्च सफल रही तो टीडीएस लेवल से जुड़े कई सवालों का जवाब भी आ जाएगा।
रिचार्ज की तुलना में 106.90 प्रतिशत दोहन
मास्टर प्लान के अनुसार, शहर की आबादी 21 लाख हो जाएगी। इसके लिए सप्लाई पानी की क्षमता को बढ़ाकर 590 एमएलडी किया जाएगा। वर्तमान में 240 एमएलडी पानी की सप्लाई की जा रही है। यह सप्लाई 16 लाख की आबादी के अनुसार है। लेकिन डिमांड 332 एमएलडी पानी की है। पानी की मांग को पूरा करने के लिए नोएडा प्राधिकरण 44 प्रतिशत पानी भू-जल के जरिए निकालता है। बाकी गंगा वाटर गाजियाबाद प्रताप विहार प्लांट से आता है। भूजल रिचार्ज की तुलना में 106.90 प्रतिशत पानी का जमीन से दोहन हो रहा है।
सालाना 29 हजार हेक्टेयर मीटर भूजल रिचार्ज होता है
उत्तर प्रदेश भूगर्भ जल विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक जिले में सालाना 29233.06 हेक्टेयर मीटर भूजल रिचार्ज होता है। उससे ज्यादा 31251.26 हेक्टेयर मीटर भूजल का दोहन हो रहा है। यदि यही स्थिति रही तो आने वाले समय में नोएडा व आसपास के क्षेत्र में भूजल समाप्त हो जाएगा। भू-जल विभाग की ओर से अगस्त -2019 में समिति आकलन के अनुसार नोएडा का भू-जल स्तर औसतन 1.79 मीटर प्रतिवर्ष की दर से घट रहा है। यहां के कई सेक्टरों में भू-जल समाप्त की कगार पर है। इसकी एक वजह बारिश का पानी का जमीन में संचयन न होकर वेस्ट हो जाना है।
बारिश के पानी का सदुपयोग नहीं
प्रदेश में सालाना औसतन करीब 700 से 900 एमएम बारिश होती है। नोएडा में पिछले साल 1450 एमएम बारिश रिकॉर्ड की गई। यह सामान्य नहीं है। इसका अधिकांश हिस्सा दूषित हो गया और काफी बह गया। यदि इसका 65 प्रतिशत हिस्सा रिचार्ज कर भूजल को बढ़ाने में किया जाता तो आने वाले समय में भू-जल की समस्या कुछ कम जरूर होती।
भूजल रिचार्ज के लिए अपनाए जा रहे तरीके
पुराने खराब पड़े बोरवेल को रिचार्ज वेल में तब्दील किया जा रहा है। इससे पानी सीधे 300 फीट तक नीचे जाएगा
सेक्टर-54 और सेक्टर-91 में वेट लैंड का निर्माण
सभी 300 वर्गमीटर के भूखंडों पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग और रिचार्ज वेल
नोएडा में तालाब और वाटर बाडी बनाने का काम जारी