बसपा को पैसा लूटने वाला गिरोह कहने वाले इमरान मसूद अब बसपा के महावत बन चुके हैं। पूर्व सीएम एवं बसपा सुप्रीमो ने सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद भी दिया है। इमरान मसूद ने 2022 विधानसभा चुनाव से पहले एक चैनल को इंटरव्यू देते हुए यह साफ कहा था, बसपा को मैं पार्टी नहीं मानता और यह कोई राजनीतिक दल है।
वह तो राजनीतिक गिरोह है। जो राजनीतिक रूप से पैसों को लूटती है। टिकटों को बेचा जाता है। विचारधारा की नीलामी होती है। दलित के खिलाफ कुछ भी कर रखा हो। आपकी जेब में पैसा होना चाहिए। बस आपकों टिकट मिल जाएगा। दलित विरोधियों को भी पैसों के बल पर टिकट मिल जाता है। लेकिन अब वह भी इस गिरोह में शामिल हो चुके हैं। जिसकी राजनीतिक गलियारों में चर्चा आम है।
विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़ सपा में आए थे
2022 विधानसभा चुनाव से ठीक पहले इमरान मसूद कांग्रेस छोड़ सपा में शामिल हुए थे। एक ऑडियो 17 जनवरी 2022 को 18 सेकेंड का वायरल हुआ था। इसमें उन्होंने अपने समर्थकों को कहा था, मुसलमानों एक हो जाओ। तुम्हारे वजह से पैर पकड़ लिए हैं। तुम मुसलमान सीधे हो जाओ। मेरे से पैर पकड़वा दिए। मेरा कुत्ता बना दिया है। तुम एक हो जाओगे तो वह मेरे पैर पकड़कर खुद टिकट देंगे।
हालांकि 11 जनवरी को अखिलेश ने समर्थन की बात कहते हुए ट्वीट जरूर किया था। हालांकि अब वह हाथी के महावत बन चुके हैं। जिम्मेदारी भी वेस्ट यूपी के संयोजक की मिली है। ऐसे में मुस्लिम और दलित को एकजुट कर वह राजनीति के समीकरणों पर पूरा असर डाल सकते हैं।
2017 में कांग्रेस को दिलाई थी दो सीटें
इमरान मसूद का सहारनपुर जिले में अपना जनाधार है। 2017 चुनाव में कांग्रेस ने पूरे प्रदेश में सिर्फ 6 सीटें जीती थीं। इनमें दो सहारनपुर में थी। हालांकि इमरान मसूद इस चुनाव में नकुड़ विधानसभा से नजदीकी मुकाबले में चार हजार वोटों से भाजपा के पूर्व मंत्री डॉ.धर्म सिंह सैनी से हार गए थे। ये चुनाव कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में लड़ा था।
2007 में इमरान मसूद ने अपनी राजनीतिक शक्ति का अहसास राजनीति पार्टियों को करा दिया था। वह मुजफ्फराबाद बेहट विधानसभा सीट से निर्दलीय मैदान में उतर गए थे और जीत हासिल की थी। उन्होंने कैबिनेट मंत्री रहे जगदीश राणा को शिकस्त दी थी। जबकि 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगे के बाद 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में इमरान मसूद सहारनपुर से चुनाव हार गए थे। लेकिन, चार लाख से अधिक वोट हासिल कर जीत हासिल की थी।
जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा-सपा-रालोद गठबंधन में जीत बसपा उम्मीदवार हाजी फजलुर्रहमान की हुई थी। लेकिन कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े इमरान मसूद दो लाख वोट लेकर तीसरे नंबर पर रहे थे। दूसरे नंबर पर भाजपा के राघव लखनपाल शर्मा रहे थे। लेकिन 2007 के बाद इमरान मसूद कोई भी चुनाव नहीं जीत पाए।
बोटी-बोटी के बयान पर हुई थी गिरफ्तारी
2014 लोकसभा चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ बोटी-बोटी के बयान के बाद देशभर में चर्चित हुए थे। यही कारण था कि सपा मुखिया अखिलेश यादव ने भाजपा को शिकस्त देने और हिंदूवादी छवि दिखाने के लिए इमरान मसूद को हाशिए पर रखा। हालांकि इस बयान के बाद इमरान मसूद की गिरफ्तारी भी हुई थी।
लेकिन, तब कांग्रेस में रहते हुए, कांग्रेस ने भी उनके भड़काऊ बयान से किनारा कर लिया था। हालांकि बाद में इमरान मसूद ने भी अपने बयान के लिए माफी मांग ली थी। अक्टूबर 2022 में इमरान मसूद को शामली कोर्ट ने 5 हजार रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई थी।
निकाय चुनाव और लोकसभा चुनाव में बदलेंगे सियासी समीकरण
नगर निगम और नगर निकाय चुनाव से पहले सहारनपुर ही नहीं वेस्ट यूपी में सियासी समीकरण बदल सकते हैं। बसपा मुस्लिम-दलित का कार्ड खेलने के लिए अपने पाशे फेंक दिए हैं। अब इन पाशों की बिसात बिछाकर बसपा विपक्षी दल को मात देने की तैयारी में भी जुट गई है। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस का साथ छोड़कर सपा में शामिल हुए इमरान मसूद पार्टी में खुद को अलग-थलग मान रहे थे। जिस कारण उन्होंने सपा को छोड़कर दूसरा ठिकाना तलाश करना शुरू कर लिया था।
सपा की राह हो सकती है कांटों भरी
सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद किसी एक बड़े मुस्लिम नेता का टूटना उसके लिए आगे की राह मुश्किल कर सकता है। क्योंकि इमरान के साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई दिग्गज मुस्लिम नेता संपर्क में हैं। ऐसे में यदि सपा से मुस्लिम नेताओं का टूटना शुरू हो गया और दलित मुस्लिम समीकरण बनना शुरू हो गया तो सपा की राह टेढ़ी हो जाएगी और बसपा के लिए रास्ते खोलना आसान होगा।
वेस्ट यूपी की सियासी बिसात में दलित कितने
सहारनपुर: 21.73%
मुजफ्फरनगर: 13.50%
मेरठ: 18.44%
बागपत: 10.98
गाजियाबाद: 18.04%
गौतमबुद्ध नगर: 16.31%
बिजनौर: 2094%
बुलंदशहर: 20.21%
आगरा: 21.78%
फिरोजाबाद: 15.86%
बरेली: 12.65%
रामपुर: 13.38%
वेस्ट यूपी के 24 जिलों में मुस्लिम 27.5% हैं, जिसमें 52.2% रामपुर जिले में हैं। सूबे में 143 सीटें ऐसी हैं, जिनमें नतीजे मुस्लिम तय कर सकते हैं और इनमें 60 वेस्ट यूपी में हैं। 1993 से 2012 तक मुस्लिम विधायकों की संख्या बढ़ती रही। लेकिन, 2017 में वोटों में बिखराव और भाजपा की लहर के कारण सिर्फ 35 मुस्लिम विधायक बने। 1993 में 28, 1996 में 38, 2002 में 46, 2007 में 56 और 2012 में 68 मुस्लिम जीते थे।
बसपा के कारण 27 सीटों पर हारी थी सपा
2022 विधानसभा चुनाव में बसपा ने सपा के सामने मुस्लिम कैंडिटे्ट उतारे थे। जिस कारण सपा को सीधे तौर पर 27 सीटों से हाथ धोना पड़ा था। 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की रिजर्व सीट घटी थी। यूपी में 86 सीटें रिजर्व थीं। इनमें से भाजपा और सहयोगी पार्टी ने 68 सीटें जीती थीं।
मायावती ने उड़ाया था इमरान का मजाक
2022 विधानसभा चुनाव में बसपा सुप्रीमो मायावती ने मंडल की संयुक्त रैली की थी। मायावती ने नाम लिए बिना ही कहा था, सहारनपुर के एक नेता हैं जो कांग्रेस छोड़कर सपा में गए हैं। सपा ने उन्हें उनकी औकात बता दी है। अखिलेश यादव मुसलमानों को अपनी जेब में समझते हैं, लेकिन मुसलमानों को टिकट देने में परहेज करते हैं। सियासी मजबूरी ऐसी थी कि जब मायावती इमरान का उपहास उड़ा रही थीं। तब मंच पर उनके जुड़वां भाई नोमान मसूद भी बैठे थे।
वेस्ट यूपी की राजनीति का बड़ा नाम हैं मसूद
इमरान मसूद वेस्ट यूपी की राजनीति के बड़े नेता हैं। वह 2007 का विधानसभा, 2014 का लोकसभा और 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। हालांकि, 2007 को छोड़कर हर बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 2007 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मुजफ्फराबाद वर्तमान में बेहट सीट से पहली और आखिरी बार विधायक चुने गए थे। उस वक्त इमरान मसूद ने सपा के मंत्री जगदीश राणा को हराया था। इमरान सहारनपुर में नगरपालिका अध्यक्ष भी रह चुके हैं।