आप कल्पना कीजिए कि यदि किसी पुलिस वाले ने आपकी शिकायत पर एफआईआर दर्ज नहीं की तो उसकी नौकरी जा सकती है।
लाइसेंस नहीं बना तो आरटीओ के कर्मचारी की नौकरी जा सकती है।
ऐसी एक या दो नहीं, राजस्थान में लोगों से जुड़ी सैकड़ों सर्विसेज हैं, जो जल्द ही एक ऐसे कानून के दायरे में आ जाएंगी, जिसके तहत एक तय समय में काम नहीं करने पर अधिकारियों और कर्मचारियों को सजा मिलेगी।
दरअसल, राजस्थान सरकार जल्द ही लोक सेवाओं की गारंटी और जवाबदेही विधेयक लाने जा रही है। इस संबंध में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक आदेश जारी कर प्रशासनिक सुधार विभाग को विधेयक का मसौदा तैयार करने के आदेश भी दे दिए हैं। इस विधेयक से लोगों के काम न सिर्फ एक तय समय में होंगे, बल्कि काम न करने वाले अधिकारी-कर्मचारियों की जवाबदेही तय होगी और उन्हें सजा भी मिलेगी।
इस कानून के लिए पिछले दो सालों से सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय और उनके सहयोगी निखिल डे आंदोलन कर रहे हैं। विधेयक के मसौदे पर प्रशासनिक सुधार विभाग ने काम शुरू कर दिया है और लोगों से सुझाव भी मांगे गए हैं।
कितने दिन में करना होगा काम?
सूत्रों के मुताबिक हर काम के लिए अलग-अलग समय-सीमा तय होगी। किसी भी काम के लिए अधिकतम 30 दिन दिए जा सकते हैं। इस विधेयक में कितनी सर्विसेज शामिल की जाएंगी, यह मसौदा तैयार होने के बाद ही सामने आएगा। इसके साथ ही कानून लागू होने के बाद भी समय-समय पर लोगों से जुड़ी सेवाएं जोड़ी जा सकेंगी।
नौकरशाही में हो रहा विरोध
सूत्रों का कहना है कि राज्य की नौकरशाही में इस कानून को लेकर उत्साह होना तो दूर बल्कि अंदरखाने विरोध हो रहा है। सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों का मानना है कि इस कानून से काम करने की क्षमता प्रभावित हाेगी और सरकारी नौकरी करना बहुत कठिन हो जाएगा।
क्यों पड़ी इस कानून की जरूरत?
अभी तक राज्य सरकार के विभिन्न विभागों में अगर किसी आम आदमी का कोई काम नहीं होता है या उसे चक्कर कटवाए जाते हैं, तो किसी सरकारी कर्मचारी के खिलाफ सामान्यत: कोई कड़ी कार्रवाई नहीं होती है। ऐसे में सरकारी कर्मचारियों में काम करने या न करने के प्रति कोई लगाव या भय जैसी कोई भावना नहीं होती और इससे लोगों के काम अटक जाते हैं। ऐसे में यह जरूरत लंबे अरसे से महसूस की जा रही है कि जवाबदेही कानून बनाया जाए ताकि कर्मचारियों की जवाबदेही तय हो और जानबूझकर काम न करने पर कर्मचारी को नौकरी गंवानी पड़े।
चुनावी वर्ष में आ सकती है मुश्किल
प्रदेश में अगले साल नवंबर-दिसंबर तक चुनाव होना तय है, जिनकी आचार संहिता अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में लग सकती है। ऐसे में कानून पर आम लोगों से राय लेने, फिर उनका परीक्षण करने, विधि विभाग की मंजूरी लेने, नियम बनाने, कैबिनेट में ले जाने और उसके बाद विधानसभा में विधेयक पेश करने और लागू करवाने में बहुत समय लगेगा। ऐसे में अगर सरकार ने अपने प्रयास तेज नहीं किए तो यह कानून या तो लागू ही नहीं हो पाएगा या फिर लागू हुआ भी तो सशक्त कानून नहीं बन सकेगा।
9 नवंबर तक दे सकते हैं सुझाव
प्रशासनिक सुधार विभाग ने विधेयक के मसौदे को लेकर लोगों से सुझाव मांगे हैं। इसके लिए विभाग ने एक सूचना अपनी वेबसाइट पर भी जारी कर दी है। विभाग के शासन सचिव आलोक गुप्ता ने भास्कर को बताया कि 9 नवंबर आखिरी तारीख तय की है।
कानून के लिए आंदोलन कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे ने भास्कर को बताया कि इस कानून को बनाने के लिए दो साल पहले मुख्यमंत्री गहलोत ने कहा था, अब बहुत देरी हो चुकी। सरकार को अपने प्रयासों को तेज करने चाहिए, ताकि कानून जल्द लागू हो