ग़मों की जांच में आंसू उबाल कर देखो, बनेंगे रंग किसी पर डाल कर देखो, तुम्हारे दिल की चुभन भी ज़रूर होगी कम, कांटा किसी के पांव का निकाल कर देखो।
बात साल 2007 की है। पिहानी चुंगी पर नौरंग बगिया में नेता जी की जनसभा थी। उनके सम्बोधन के बीच भीड़ से कातर स्वर संग दो हाथ लहराए और नेता जी ने उस शख्स को खड़ा कर बात पूछी। पूरी तफ्सील जानने के बाद नेता जी ने उसके दर्द को मरहम देने में देरी नहीं की। जनसभा से लौट कर हमने समाचार को गज़लों के कुंअर कहे जाने वाले कुंअर बेचैन की उपरोक्त चार लाइनों संग फाइल किया और अगले दिन राष्ट्रीय सहारा के प्रथम पृष्ठ पर प्रमुखता से बायलाइन प्रकाशित हुआ था। हरदोई और तमाम दूसरों सेण्टरों पर हमने नेता जी की इतनी रैलियां कवर कीं, कि अब संख्या समरण नहीं है। लेकिन, हर रैली में नेता जी किसी ना किसी का मर्म पकड़ लेते और मरहम धरने में देर नहीं करते। ये नैसर्गिक गुण था उनका, जो उन्हें अन्य समकालीन राजनेताओं से फरक करता था।
ऐसे ही 4 किस्से हरदोई से जुड़े हैं।
बात शायद 1993 - 94 की है। तत्कालीन बिलग्राम विधानसभा क्षेत्र से लगातार चुनाव हारने के बाद भी सपा के संस्थापक जिलाध्यक्ष बाबू विश्राम सिंह यादव को ही टिकट मिलना क्षेत्र के कतिपय यादव क्षत्रपों को हजम नही हो रहा था। एक कॉकस बना और हरदोई दौरे पर आए नेता जी के सामने दिल के छाले फोड़ने चालू किए। सबकी सुनने के बाद नेता जी बोले, ठीक है बिलग्राम से शिवपाल सिंह को और जसवन्त नगर (अपनी परम्परागत विधानसभा सीट) से विश्राम सिंह को चुनाव लड़ा देते हैं। नेता जी के इस अंदाज से कॉकस स्तब्ध रह गया।
साल 1997 का एक किस्सा है। सीएसएन कॉलेज में लखनऊ मण्डल के सक्रिय कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण कार्यक्रम आहूत किया गया था। कार्यक्रम का प्रारम्भ छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्रा करने आए तो और समापन में नेता जी पहुंचे थे। कार्यक्रम की व्यवस्था के तहत बिना रजिस्ट्रेशन और पहचान पत्र के कार्यक्रम स्थल पर प्रवेश निषेध था। नेता जी कार्यक्रम स्थल पर दाखिल होने लगे तो लोहिया वाहिनी के तत्कालीन जिलाध्यक्ष शिव कुमार यादव ने नेता जी को रोक लिया और बिना रजिस्ट्रेशन और पहचान पत्र के कार्यक्रम स्थल पर जाने देने में असमर्थता जताई। नेता जी मुड़े, रजिस्ट्रेशन काउण्टर पर पहुंचे, बाकायदा पंजीकरण कराया और पहचान पत्र जारी करा कार्यक्रम के मंच पर पहुंचे। तस्वीर में नेता जी रजिस्ट्रेशन कराते और प्रशिक्षण कार्यक्रम को सम्बोधित करते दिख रहे हैं। मतलब, नेता जी कार्यकर्ताओं को ही अनुशासन की सीख नहीं देते थे, खुद भी उदाहरण प्रस्तुत करते थे।
एक किस्सा सपा के पूर्व जिलाध्यक्ष पद्मराग सिंह यादव (पम्मू) से जुड़ा है। पम्मू के कार्यकाल के दौरान बिलग्राम में साम्प्रदायिक तनाव की एक घटना हो गई थी। हालांकि, एक हफ्ते के भीतर ही पम्मू ने दोनों पक्षों में सुलह करा एफआईआर स्पंज करा दी थी। लेकिन, पम्मू का विरोधी खेमा उनके विरुद्ध लगातार नेता जी के कान भर रहा था। नेता जी ने पम्मू को लखनऊ बुलाया। पम्मू पूरी तैयारी से पहुंचे। नेता जी ने उन्हें देखते ही खूब खरी-खोटी सुनाना शुरू कर दिया। पम्मू बीच-बीच में अपनी बात कहना चाहें, लेकिन नेता जी कुछ सुनने को ही तैयार नहीं। आखिर में पम्मू हत्थे से उखड़ गए। फाइल नेता जी की मेज पर पटक दी और तेज आवाज में विरोध दर्ज कराया और पैर पटकते हुए निकल गए। रात में नेता जी के तत्कालीन निजी सचिव अरविन्द सिंह का पम्मू के पास कॉल आया। उन्होंने बताया, नेता जी उनके व्यवहार से व्यथित हैं। हालांकि, इस बीच वरिष्ठ सपा नेताओं डॉ0 अशोक बाजपेयी और बाबू खां ने नेता जी को सही वस्तुस्थिति से अवगत कराया और पम्मू को डिफेंड किया। कुछ दिनों बाद जिलाध्यक्षों की बैठक में पम्मू लखनऊ पहुंचे। बैठक के बाद पम्मू निकलने लगे तो नेता जी ने उन्हें रोक लिया। पहले तो पम्मू के व्यवहार पर आपत्ति जताई। पम्मू ने कहा, आप हमारी सुनने को तैयार ही नहीं थे तो क्या करते, आप ने ही सही के लिए अड़ जाना सिखाया और वही किया। नेता जी ने कहा, वो देखना चाहते थे कि उनका कार्यकर्ता बदतमीज़ है या अनुशासित। मुस्कुरा के पीठ थपथपाई और बोले जाओ पार्टी का काम मन से करो।
ऐसा ही एक किस्सा नेता जी के रक्षा मंत्रित्व काल का है। मल्लावां के पूर्व विधायक वरिष्ठ नेता धर्मज्ञ मिश्रा ने रेल रोको आंदोलन किया था। रेल रोकने के आरोप में वह कार्यकर्ताओं संग जेल भेज दिए गए थे। जिद ये कि ज़मानत नहीं कराएंगे। जेल में निरुद्ध एक साधारण कार्यकर्ता की बहन की शादी उन्हीं दिनों थी। नेता जी जेल में निरुद्ध नेताओं-कार्यकर्ताओं से मिलने आए। उन्हें यह बात मालूम हुई तो कार्यकर्ता की बहन को आशीर्वाद देने पहुंच गए। सब हक्के-बक्के रह गए। नेता जी ने सगुन थमाया, फिर तो पीछे से हुजूम लग गया। साधारण परिवार की बिटिया को नेता जी विजिट ने मालामाल कर दिया था। ऐसे अनेक किस्से हैं नेता जी से जुड़े। मुमकिन है, उनके इसी अंदाज़-ए-बयां के चलते उन्हें धरतीपुत्र पुकारा गया। समाजवाद के अनथक यात्री को भावपूर्ण श्रद्धांजलि।
बृजेश कबीर ( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )