नई दिल्ली, मुफ्त चुनावी सौगातों को लेकर देश में जारी बहस के बीच निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों के समक्ष आदर्श चुनाव संहिता में संशोधन का एक प्रस्ताव रखा है. आयोग ने इसके तहत चुनावी वादों की वित्तीय व्यवहार्यता के बारे में मतदाताओं को प्रामाणिक जानकारी देने को लेकर राजनीतिक दलों की राय मांगी है और कहा है कि राजनीतिक दलों को चुनावी वादों का विवरण देना होगा और वे उनका खर्च कहां से और कैसे उठाएंगे इसका भी खुलासा करना होगा. हालांकि अब इस पर कानून मंत्री किरेन रिजिजू की प्रतिक्रिया भी आ गई है और उन्होंने कहा कि इस मसले पर सरकार चुनाव आयोग के साथ चर्चा कर रही है और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम आरपी एक्ट में संशोधन के माध्यम से प्रमुख चुनावी सुधारों के लिए विधायी समर्थन देने पर विचार कर रही है.कानून मंत्री ने चुनाव आयोग के प्रस्ताव पर क्या कहा टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक, कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि बदलते समय और स्थिति के मुताबिक कुछ चुनावी कानूनों में बदलाव की जरूरत है जिनमें पर्याप्त पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने की कमी दिखती है. यह पूछे जाने पर कि क्या हाल के प्रस्तावों को पेश करने से पहले चुनाव आयोग ने सरकार से परामर्श किया था इस पर मंत्री रिजिजू ने कहा मैं पहले से ही आरपी यानी जन प्रतिनिधित्व अधिनियम और अन्य चुनाव नियमों में बड़े बदलावों का अध्ययन करने के लिए चुनाव आयोग के साथ विस्तृत चर्चा कर रहा हूं. केंद्र प्रमुख चुनावी सुधारों के लिए उचित परामर्श के बाद कदम उठाएगा जो नए बदलते समय और स्थिति के अनुसार आवश्यक हैं.तो सरकार करेगी जन प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन कानून मंत्री की टिप्पणी से यब बात स्पष्ट होता है कि सरकार और चुनाव आयोग व्यापक चुनावी सुधार लाने पर काम कर रहे हैं और इन परिवर्तनों को आवश्यक विधायी समर्थन देने के लिए आरपी अधिनियम में संशोधन भी किया जा सकता है. गौरतलब है कि चुनावों में काले धन के इस्तेमाल पर अंकुश लगाने के लिए निर्वाचन आयोग ने हाल ही में कानून मंत्रालय को लिखा था कि पार्टियों द्वारा प्राप्त नकद चंदे को उनकी कुल प्राप्तियों के 20 फीसदी तक सीमित करने के लिए आरपी अधिनियम में बदलाव किया जाए. इतना ही नहीं चुनाव आयोग ने कालाधन खत्म करने के लिए गुमनाम राजनीतिक चंदे को 20000 रुपये से घटाकर 2,000 रुपये करने का प्रस्ताव भेजा है.चुनाव आयोग ने क्या प्रस्ताव दिया दरअसल चुनाव संहिता में संशोधन को लेकर सभी मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय दलों को लिखे गए एक पत्र में आयोग ने उनसे 19 अक्टूबर तक उनके विचार साझा करने को कहा है. निर्वाचन आयोग ने कहा कि वह चुनावी वादों पर अपर्याप्त सूचना और वित्तीय स्थिति पर अवांछित प्रभाव की अनदेखी नहीं कर सकता है क्योंकि खोखले चुनावी वादों के दूरगामी प्रभाव होंगे. आयोग ने कहा चुनावी घोषणा पत्रों में स्पष्ट रूप से यह संकेत मिलना चाहिए कि वादों की पारदर्शिता समानता और विश्वसनीयता के हित में यह पता लगना चाहिए कि किस तरह और किस माध्यम से वित्तीय आवश्यकता पूरी की जाएगी. आयोग के आदर्श चुनाव संहिता में प्रस्तावित संशोधन के अनुसार चुनाव घोषणा पत्रों में चुनावी वादों का औचित्य दिखना चाहिए.निर्वाचन आयोग को भी आदर्श आचार संहिता की जरूरत सिब्बल राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने चुनावी वादों की वित्तीय व्यवहार्यता के बारे में मतदाताओं को प्रामाणिक जानकारी देने को लेकर आदर्श आचार संहिता में बदलाव के संबंध में राजनीतिक दलों से राय मांगने के लिए निर्वाचन आयोग पर निशाना साधते हुए बुधवार को कहा कि हो सकता है चुनाव निगरानीकर्ता को खुद एक आचार संहिता की जरूरत हो. सिब्बल ने कहा निर्वाचन आयोग उच्चतम न्यायालय में मुफ्त सौगात पर होने वाली बहस से अलग रहने का हलफनामा दाखिल करने के बाद पलट जाता है. यह धोखा देने के बराबर होगा। अब इसे आदर्श आचार संहिता में शामिल करना चाहते हैं. उन्होंने ट्विटर पर कहा हो सकता है निर्वाचन आयोग को ही आदर्श आचार संहिता की जरूरत हो
चुनावी कानूनों में हो सकता है बड़ा बदलाव: निर्वाचन आयोग संग इस प्लान पर काम कर रही सरकार



