आजमगढ़ जिले के पुरानी कोतवाली में चल रही ऐतिहासिक रामलीला में श्रीराम के वनगमन को देख श्रद्धांलुओं की आंखे नम हो गईं। कलाकारों ने श्रीराम-केवट संवाद का मनोहारी वर्णन किया। केवट संवाद प्रसंग का मंचन देख श्रद्धालु भाव विभोर हो गए। इस दौरान मेरी नैया में सीताराम नदिया धीरे बहो आदि भजन पर प्रभु श्री राम के जयकारे गूंज उठे। देर रात तक चली रामलीला में श्रद्धालु अंत तक डटे रहे। शूर्पणखा नककटैया के मंचन ने दर्शको को खूब हंसाया।श्रीराम ने किया केवट से आग्रह
मंचन के दौरान कलाकारों ने दर्शाया कि जब सुमंत ने प्रभु श्रीराम से 14 दिन बाद घर जाने के लिए आग्रह किया तो राम ने मना कर दिया। लक्ष्मण ने भी मना कर दिया। सीता ने भी मना कर दिया। मेरे प्रभु श्री राम जहां रहेंगे, वहीं मेरा वास है। यह सुनकर राम आगे बढ़े सुमंत वापस अयोध्या को आ गए। उधर भगवान श्री राम सरयू नदी किनारे खड़े केवट से नदिया पार करने के लिए नाव में बिठाने का आग्रह करने लगे।
केवट हां करता हुआ आगे नहीं जा रहा था। कहने लगे कि हमे गंगा पार कर दो और हमें आगे जाने दो। केवट प्रभु श्री राम के पास आया और बोला कि आप कौन हैं कहां से हैं और कहां जा रहे हैं। अपना परिचय दो। प्रभु श्री राम ने केवट को अपना परिचय दिया तो केवट वहां से भाग कर दूर हो गया और कहा कि आप वही राम हैं जिनके छूते ही पत्थर की शिला आसमान में उड़ गई। मेरी नाव काठ की है यह तो छूमंतर हो जाएगी। मैं अपने परिवार का पालन पोषण कैसे करूंगा। मैं आपको नदी पार नहीं कर सकता। प्रभु ने कहा कि केवट ऐसा कोई उपाय है जिससे तुम हमें नदी पार करा दो। तो केवट ने कहा कि हां पहले अपने चरण धुलवाओ। चरण धोने के बाद केवट ने नदी पार कराई। नदी हिचकोले लेने लगी तो केवट ने गीत गाया कि मेरी नैया में सीताराम नदिया धीरे बहो गाया। नदी पार करने के बाद प्रभु श्री राम ने सीता की अंगूठी केवट को नाव उतराई बतौर दी।केवट को लगा लिया गले
केवट कहने लगा कि हे प्रभु आप यह क्या कर रहे हैं। मजदूर कहीं मजदूरों को नहीं देते, मल्लाह कहीं मल्लाह को नहीं देते, मैं आपको बताता हूं मेरा घर तो यहां पर है और आपका बैकुंठधाम है। जब मैं आपके धाम पर आऊं तो मुझे पार लगा देना। इतनी सुनकर केवट को प्रभु श्रीराम ने अपने गले लगा लिया। बाद में कलाकारों ने शूर्पणखा नककटैया का मंचन किया। जिसे देख दर्शक हंसते-हंसते लोट-पोट हो गए। इस दौरान भगवान श्रीराम के जयकारे से पंडाल गूंज उठा।