अलीगढ़ की अल्दुआ मीट फैक्ट्री जहां गुरुवार को अमोनिया गैस लीक हुई। 59 लोगों की जान पर बन आई। फैक्ट्री के 6 अधिकारी गिरफ्तार भी हुए। मगर इतनी बड़ी घटना होने के बाद भी फैक्ट्री के आसपास के लोग इसके बारे में बोलने को तैयार नहीं थे। उन्हें अजीब सा डर था। वे बस यही कह रहे थे कि घटना के समय वह मौके पर नहीं थे। कुछ देर पहले ही वहां आए हैं।मगर फैक्ट्री में काम करने वालों में नाबालिगों की संख्या बहुत ज्यादा है। अस्पताल पहुंचने वालों में 12 नाबालिग हैं जबकि 12 की उम्र 18 से 22 साल के बीच है। ये सिर्फ 7 हजार रुपए महीने में जान हथेली पर रखकर फैक्ट्री में काम कर रहे हैं। उनसे हर दिन 12 12 घंटे काम लिया जा रहा है।12 साल तक की लड़कियां कर रही कामफैक्ट्री में हादसे की खबर सुनकर अमीना नाम की एक महिला दौड़ते हुए फैक्ट्री पहुंची। उसकी 4 बेटियां फैक्ट्री में काम करती हैं। अमीना ने बताया कि उसकी बेटियों के नाम रुक्साना संजना रितु और तस्लीम हैं। इनमें से एक की उम्र 17 साल है दूसरी की 15 तीसरी की 16 और चौथी की 12 साल है।अमीना ने बताया कि उसका गांव मानू नगला है। मगर वह अपने परिवार के साथ अलीगढ़ ही रहती है। उसकी बेटियां हर दिन अलीगढ़ से फैक्ट्री आती हैं। उसे पता नहीं था कि बेहोश हुए लोगों को अस्पताल भेजा गया है। इसलिए वह सीधे फैक्ट्री दौड़ी चली आई।दो बेटियों की मां बोली 12 12 घंटे कराते हैं कामअमीना के साथ एक अन्य महिला अपनी बेटियों का पता करने के लिए फैक्ट्री पहुंची थी। यह महिला भी अलीगढ़ ही रहती है। उसकी दो बेटियां महक और बुशरा दोनों फैक्ट्री में काम करती हैं। उसने बताया कि महक की उम्र 17 है और बुशरा की 18 साल है।उन्होंने बताया कि फैक्ट्री की ओर से उन्हें कोई सूचना नहीं मिली थी। अन्य लोगों से हादसे की जानकारी मिली। इसके बाद वह खुद को नहीं रोक पाई और सीधे फैक्ट्री भागी चली आई। अब वह जाकर अपनी बेटियों का पता करेंगी कि उनकी बेटियां कहां पर हैं। दशहत में थे इलाके के लोगमीट फैक्ट्री के अंदर अमोनिया गैस के रिसाव से बड़ा हादसा होते होते बचा। पुलिस प्रशासन का अमला यहां पहुंच गया। लेकिन जब आसपास के लोगों से बातचीत की गई तो उन्होंने किसी तरह की जानकारी होने से साफ इनकार कर दिया।फैक्ट्री के बिल्कुल सामने स्थित ढाबे पर काम करने वाले भूरा ने बताया कि जब फैक्ट्री में हादसा हुआ तो उन्हें कुछ पता ही नहीं चला। एक डेढ़ बजे जब एंबुलेंस और प्रशासन की गाड़ियां आईं तो उन्हें लगा कि फैक्ट्री में कुछ हुआ है। इस दौरान वह काफी डरे हुए भी लग रहे थे। युवक बोला हमे तो लोगों ने बतायाफैक्ट्री के नजदीक ही रहने वाले दानिश ने बताया कि वह भी एक फैक्ट्री में काम करता है। लेकिन अमोनिया के रिसाव की उसे जानकारी नहीं हो पाई। उसके एक परिचित ने उसे घर आकर बताया कि ऐसा हादसा हुआ है। इसके बाद वह घटनास्थल पर पहुंचा है। उसे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।जर्राह बोला होते रहते हैं हादसेफैक्ट्री संचालकों के खिलाफ कोई बोलने को तैयार नहीं था। मौके पर कुछ ऐसे लोग भी थे जो आसपास के लोगों को धमका रहे थे और वहां से जाने को बोल रहे थे। लेकिन इन्हीं के बीच में जर्राह की दुकान चलाने वाले दीपेश गोस्वामी ने बताया कि फैक्ट्री में ऐसे हादसे होते रहते हैं।उसने बताया कि लगभग 45 दिन पहले भी गैस लीक हुई थी जिसमें 15 लड़कियां बेहोश हो गई थी। इसके बाद उन्हें उसके क्लिनिक में लाया गया था। वहीं पर उनका इलाज हुआ था। लेकिन इस बार घटना ज्यादा बड़ी थी। उसके सामने एक बस में लगभग 40 लड़कियों को ले जाया गया। दीपेश ने बताया कि फैक्ट्रियों में अक्सर गैस रिसाव के मामले होते रहते हैं। फैक्ट्री के आसपास दिखे संदिग्धघटना के बाद फैक्ट्री में मजदूरों का कोई रिकॉर्ड नहीं मिला है। इससे यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि यहां बाहरी लोग ज्यादा काम कर रहे हैं। जांच अधिकारी इन मजदूरों का कनेक्शन रोहिंग्या और बांग्लादेशियों से भी जोड़ रहे हैं। मगर यह स्थिति जांच के बाद ही साफ हो पाएगी।घटना के बाद फैक्ट्री के आसपास कुछ संदिग्ध लोग भी नजर आए। देखने में वे लोग फैक्ट्री में काम करने वाले लग रहे थे। मगर जब उनसे बात की गई तो वे उल्टे सीधे जवाब देने लगे। न तो उन्होंने अपना नाम बताया और न ही पता। पूछने पर बोले कि कासगंज रहते हैं और टहलते हुए फैक्ट्री के पास पहुंच गए। उनके जवाब से ऐसा लग रहा था कि वह संदिग्ध हैं और उनका कोई स्थायी पता नहीं है। फैक्ट्री से 50 मीटर दूरी पर है बेसिक स्कूलअल्दुआ फैक्ट्री से लगभग 50 मीटर की ही दूरी पर एक बेसिक शिक्षा विभाग का स्कूल संचालित है। इस स्कूल के दोनों तरफ मीट फैक्ट्री संचालित हो रही हैं। कुछ लोगों ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि घटना के बाद बच्चों को वहां से हटाया गया।मगर बड़ा सवाल यह है अगर किसी दोनों तरफ से फैक्ट्रियां हैं और आसपास कई फैक्ट्रियां चल रही हैं। अगर गैस लीक की स्थिति संभलती नहीं तो स्कूल में पढ़ने वाले मासूमों की जिंदगी पर भी संकट आ सकता था।
7 हजार के लिए जोखिम में डालते हैं जान फैक्ट्री में 12-12 घंटे की होती है शिफ्ट



