मेरठ में आर्मी पब्लिक स्कूल की छात्रा ने एल्जाइमर यानी भूलने की एक मानसिक बीमारी पर मोबाइल ऐप बनाया है। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंट पर बेस यह ऐप आम जनता को एल्जाइमर की जानकारी देगा। साथ ही एल्जाइमर से पीड़ित व्यक्ति कहीं मिस हो गया है तो उसे भी ट्रैस कर लेगा। छात्रा के बनाए इस ऐप को यूनेस्को ने सराहा है। दिल्ली में हुए ऐपटेक में इंडिया के टॉप-10 ऐप में 5वें नंबर पर रहा।
10वीं की छात्रा डिंपल दिनकर पाटिल ने दिल्ली में यूनेस्को के सामने इंडिया के टॉप 10 मोबाइल ऐप में अपना प्रोजेक्ट शोकेज किया। यूनेस्को ने इस मोबाइल ऐप को इंडिया के टॉप 5 प्रोजेक्ट में रखा है।
मेरे पापा फौज में हैं और दादी एल्जाइमर से पीड़ित
मैं आर्मी पब्लिक स्कूल में 10वीं की छात्रा हूं। मेरे पापा दिनकर पाटिल फौज में हैं। हम लोग मेरठ के कंकरखेड़ा में रहते हैं। मगर पापा फौज के कारण घर से दूर रहते हैं। उन्हें छुट्टी भी बहुत कम मिलती है। घर पर केवल मम्मी, मैं और दादी हैं। मेरी दादी बूढ़ी हैं और उन्हें भूलने की बीमारी है। डॉक्टरों ने बताया कि उन्हें एल्जाइमर है। वो अक्सर नाम, पता भूल जाती हैं। एक दो बार दादी खो भी चुकी हैं। हमारे घर में ऐसा कोई नहीं जो दादी के खोने पर उन्हें खोज सके।
काश मेरे पास भी दादी को खोजने की डिवाइस हो
एक बार मैं अपने पापा के साथ सिनेमाहॉल में फिल्म देख रही थी। वो फिल्म भारतीय फौज पर थी। मूवी में मैंने देखा था कि एक फौजी बॉर्डर पर ड्यूटी देता है। उसकी मां को भूलने की बीमारी होती है और मां दूसरे गांव में हैं जो खो जाती है। उसे एक ट्रैकिंग डिवाइस की मदद से खोजा जाता है। अपनी दादी को देखकर मुझे लगता है कि मेरे पास भी ऐसी ट्रैकिंग डिवाइस होती तो मैं अपनी दादी को फौरन खोज सकती हूं। इसी मूवी को देखकर मुझे आइडिया आया कि इस डिवाइस की जरूरत हर फौजी और आम इंसान के घर पर है। वहीं से मैंने यह डिवाइस बनाने का आइडिया लिया और यूनेस्को के जरिए मौका भी मिला।
ऐप को बनाने में लगा 6 महीना
इस ऐप को बनाने में पूरा 6 महीना लगा। 3 महीने केवल रिसर्च पर लगे। 10 न्यूरोलाजिस्ट के पास जाकर मैंने खुद पहले एल्जाइमर को पूरा समझा। इसके रोगियों से जुड़ी हर बात जानी और बारीकी से काम किया। इसके बाद अपने टीचर्स की हेल्प से इस ऐप को डिजायन कर पाई। यह ऐप पूरी तरह आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर बेस्ड है।
ब्रेनी एक एंड्रायड एप्लीकेशन है
मेरा बनाया यह मोबाइल ऐप इसे मैंने ब्रेनी नाम दिया है। ब्रेनी में एल्जाइमर कैसे, क्यों और किन्हें होता है, इससे बचाव, जागरूकता की सारी जानकारी है। एल्जाइमर है तो कैसे अपने मूड को सेहतमंद करना है। एक सेक्शन इसका भी है। एल्जाइमर के लक्षण भी ऐप से जान सकते हैं। मैं अपने इस ऐप को टीचर्स की हेल्प से जल्द पेटेंट कराऊंगी। इसके बाद गूगल प्ले स्टोर के जरिए यह ऐप आम जनता की मदद के लिए खुल जाएगा। एल्जाइमर मरीजों, उनके परिवारों के लिए यह बहुत मददगार होगा।
एल्जाइमर की कंप्लीट डिटेल मिलेगी
एल्जाइमर मरीजों की देखभाल, जागरूकता, डायग्नोस की सारी जानकारी इस ऐप से मिल जाती है। 15 मिनट का फेस टेस्ट लेकर इस ऐप के जरिए एल्जाइमर है या नहीं चेक कर सकते हैं। एल्जाइमर कौन-सी स्टेज का है ये भी बता देगा। अपनी सीटी स्कैन रिपोर्ट को इस मोबाइल ऐप में अपलोड कर जान सकते हैं कि एल्जाइमर से बचाव के लिए आपको क्या करना है। यह आयोजन आईटीसी मौर्या में हुआ था। इस आयोजन में पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण भारत के चारों कोनों से स्कूलों के छात्र-छात्राएं अपना प्रोजेक्ट लेकर आए थे। इसमें टॉप 5 में मेरा प्रोजेक्ट यूनेस्को ने चुना।
5 सेक्शन में काम करेगा ये ऐप
एल्जाइमर मरीजों की मदद और लोगों में एल्जाइमर को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए बनाया गया यह मोबाइल ऐप 5 सेक्शन में बंटा है। एल्जाइमर है क्या, ट्रीट कैसे करना है, कैसे होता है, क्या इलाज है हर जानकारी इसमें मिलेगी।
1.डिटेक्शन: एल्जाइमर है या नहीं इसकी जांच खुद इस ऐप के जरिए कुछ सवालों के जवाब देकर कर सकते हैं।
2. एल्जाइमर स्टेज: ऐप के दूसरे सेक्शन में मरीज अपनी सीटी स्कैन रिपोर्ट को इस ऐप में अपलोड करके यह जांच सकता है कि वो एल्जाइमर के कौन से स्टेज पर है।
3. ट्रीट: तीसरे सेक्शन में मरीज को एल्जाइमर से कैसे बचना है, कैसे इलाज करना है इसकी पूरी जानकारी मिलेगी।
4. सर्विसेज: ऐप के इस सेक्शन में एल्जाइमर से जुड़ी हर जानकारी, जागरूकता, मरीज क्या करें क्या नहीं यह मिलेगा।
5.पेशेंट सेल्फ ट्रेकिंग: इस सेक्शन के जरिए एल्जाइमर के मरीज को उसकी लोकेशन ट्रेस कर ढूंढ़ा जा सकता है। ऐप जीपीएस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर काम करेगा
यूनेस्को की तरफ से सराहा गया ऐप
आर्मी पब्लिक स्कूल की प्रिंसिपल डॉ. रीटा गुप्ता ने बताया कि स्कूल की छात्रा ने एल्जाइमर रोगियों की सहायता के लिए यह ऐप ब्रेनी बनाया है। यूनेस्को के प्रोग्राम में इस ऐप को शोकेज किया गया। इंटेल और सीबीएसई की ओर से देश के टॉप 10 ऐप को इस प्रोग्राम के लिए चुना गया। इसमें हमारे स्कूल की छात्रा के बनाए ऐप ब्रेनी टॉप 10 में 5वें नंबर पर पहुंचा। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर भारत में हो रहे काम के तहत ये प्रोग्राम हुआ जिसमें हमारे स्कूल का ऐप भी चुना गया।
CSIR के लिए बनाया फार्मिंग ऐप
स्कूल में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की शिक्षिका युक्ति कहती हैं डिंपल इससे पहले CSIR के लिए फार्मिंग एप बना चुकी है। इस ऐप को भारत सरकार ने सराहा था। साथ ही कृषि मंत्रालय और सीएसआईआर ने ऐप के निर्माण और इसे लागू करने के लिए फंडिंग भी की है। इसकी मदद से यह फार्मिंग ऐप देश के किसानों के लिए लाया जा सके। छात्रा के बनाए फार्मिंग ऐप में देश की 10 भाषाओं में कृषि से संबंधित ढेरों जानकारियों को शामिल किया गया है। साथ ही खेत को कब कितना खाद पानी देना है इसकी जानकारी भी इस ऐप के जरिए किसानों को मिलेगी।