नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने पीएफआई यानी पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया पर आईएसआईएस जैसे वैश्विक आतंकवादी समूहों से कथित संबंध रखने और देश में सांप्रदायिक नफरत फैलाने की कोशिश का आरोप लगाते हुए आतंकवाद रोधी कानून यूएपीए के तहत पांच साल के लिए बैन लगा दिया हालांकि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पीएफआई की राजनीतिक शाखा एसडीपीआई यानी सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया को बख्श दिया है मगर उसे पूरी तरह से राहत मिल गई है ऐसा नहीं कहा जा सकता क्योंकि एसडीपीआई पहले से ही चुनाव आयोग की रडार पर है
फिलहाल गृह मंत्रालय ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया और उसके अन्य सहयोगियों पर प्रतिबंध लगाने की अपनी अधिसूचना में विशेष रूप से उसकी राजनीतिक शाखा सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) को गैरकानूनी संघ के रूप में नामित नहीं किया है हालांकि सूत्रों ने संकेत दिया कि कोई भी एसडीपीआई नेता या कैडर जो पीएफआई में भी सक्रिय रहा है या किसी भी गैरकानूनी गतिविधि में लिप्त है उसे पीएफआई के किसी भी प्रतिबंधित संगठन के सदस्य के समान ही परिणाम और कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के मुताबिक फिलहाल एसडीपीआई को इसलिए बख्शा गया है क्योंकि यह एक पंजीकृत राजनीतिक दल है जो भारत के संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ लेता है हालांकि कोई भी एसडीपीआई सदस्य जो पीएफआई की ओर से काम करता है या विध्वंसक और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में लिप्त होता है या सांप्रदायिक नफरत फैलाता है संदिग्ध कामों के लिए धन जुटाता है या दूसरों को कट्टरपंथी बनाने की कोशिश करता है उसके खिलाफ यूएपीए सहित प्रासंगिक कानूनों के तहत कार्रवाई की जाएगी
दरअसल गृह मंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचना से पता चलता है कि सडीपीआई नेताओं और उसके कैडरों द्वारा किए जाने वाले गैरकानूनी गतिविधियों के खिलाफ संभावित कार्रवाई के लिए अब दरवाजे खुल गए हैं अधिसूचना में आठ पीएफआई मोर्चों पर बैन लगाने की बात कही गई है मगर उसमें सहित शब्द का भी जिक्र किया गया है जो इस बात का संकेत है कि प्रतिबंध का दायरा आठ नामित पीएफआई संगठनों से भी काफी आगे है
अधिसूचना के अनुसार पीएफआई के आठ सहयोगी संगठनों- रिहैब इंडिया फाउंडेशन कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया ऑल इंडिया इमाम काउंसिल नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइजेशन नेशनल विमेन फ्रंट जूनियर फ्रंट एम्पावर इंडिया फाउंडेशन और रिहैब फाउंडेशन केरल के नाम भी यूएपीए यानी गैरकानूनी गतिविधियां (निवारण) अधिनियम के तहत प्रतिबंधित किए गए संगठनों की सूची में शामिल हैं
इसके अलावा एक तथ्य यह भी है कि एसडीपीआई एक पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल है और हो सकता है कि गृह मंत्रालय से मिले इनपुट और प्रतिबंध की अधिसूचना के आधार पर चुनाव आयोग कोई उपयुक्त कार्रवाई करे ऐसा इसलिए क्योंकि एसडीपीआई पहले से ही 2018-19 और 2019-20 में चंदा देने वालों की रिपोर्ट देने में विफल रहने की वजह से चुनाव आयोग के रडार पर है हालांकि इस दौरान उसने 5 करोड़ के चंदा मिलने की प्राप्तियां दिखाईं चुनाव आयोग में जमा कराए गए दस्तावेजों में पार्टी ने बताया है कि उसे 2018-19 में 5.17 करोड़ रुपये 2019-20 में 3.74 करोड़ रुपये और 2020-21 में 2.86 करोड़ रुपए का चंदा मिला है हालांकि इसने दान देने वालों की पहचान नहीं बताई
2009 में वजूद और 2010 में पंजीकरण
प्रतिबंधित पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) की राजनीतिक शाखा माने जाने वाले सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) को 2018-19 से 11 करोड़ रुपये से अधिक का चंदा मिला है निर्वाचन आयोग के पास उपलब्ध आंकड़ों से यह जानकारी मिली है दिल्ली में एक गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के रूप में एसडीपीआई का गठन जून 2009 में किया गया था और अप्रैल 2010 में निर्वाचन आयोग के पास इसे पंजीकृत कराया गया