राजनीति के मैदान में लगातार भारतीय जनता पार्टी से पटखनी खा रहे समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने सफलता की सीढ़ियां चढ़ने के लिए नई राह पकड़ ली है। इन दिनों अखिलेश काफी बदले-बदले नजर आ रहे हैं। एक तरफ तो वह सड़क पर संघर्ष करते दिखाई दे रहे हैं तो दूसरी ओर सपा के पुराने और नाराज साथियों को भी मनाने में लगे हैं। राजनीति के कुछ जानकार इस बदलाव को मुलायम की राजनैतिक शैली से जोड़ कर देख रहे हैं। नेताजी के नाम से विख्यात मुलायम हमेशा अपनी सियासत का तानाबाना सड़क पर संघर्ष करते हुए तैयार करते थे तो अपने वफादारों को कभी नाराज या अनदेखा नहीं करते थे। यही नेताजी की सियासी पूंजी हुआ करती थी लेकिन जबसे समाजवादी पार्टी में अखिलेश युग का प्रारम्भ हुआ तब से समाजवादी पार्टी की सियासत ड्राइंग रूम तक में सिमट कर रह गई थी। अखिलेश हाँ में हाँ मिलाने वाले चटुकारों से घिरे रहते हैं। सपा के संघर्ष के दिनों के नेताओं को यह अच्छा नहीं लगता था लेकिन उनकी कहीं सुनी नहीं जाती थी ऐसे में कई नेताओं ने समाजवादी पार्टी से किनारा कर लिया तो कुछ अपने घरों में सिमट गए।
खासकर मुसलमान नेताओं की नाराजगी समाजवादी पार्टी के लिए खतरे की घंटी नजर आ रही थी। विधान सभा चुनाव खत्म होने के बाद कई मुस्लिम नेताओं ने अखिलेश पर अनदेखी का आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ दी थी। एक के बाद एक सपा के मुस्लिम नेताओं के तीखे बयान सामने आ रहे हैं। कई मुस्लिम नेता पार्टी से इस्तीफा दे चुके हैं। आजम खान के मीडिया प्रभारी से लेकर सपा सांसद शफीकुर्रहमान बर्क तक अखिलेश के खिलाफ अपनी भड़ास निकाल रहे थे। संभल से समाजवादी पार्टी के सांसद डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क ने अपनी ही पार्टी पर हमला बोला। उन्होंने मीडिया से कहा कि भाजपा के कार्यों से वह संतुष्ट नहीं हैं। भाजपा सरकार मुसलमानों के हित में काम नहीं कर रही है। भाजपा को छोड़िए समाजवादी पार्टी ही मुसलमानों के हितों में काम नहीं कर रही। रालोद प्रदेश अध्यक्ष रहे डॉ. मसूद ने चुनाव नतीजे आने के कुछ दिनों बाद ही अपना इस्तीफा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को भेज दिया। इसमें उन्होंने रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी के साथ सपा मुखिया अखिलेश यादव पर जमकर निशाना साधा था। अखिलेश को तानाशाह तक कह दिया था। सपा पर टिकट बेचने का आरोप भी लगाया था। सहारनपुर के सपा नेता सिकंदर अली ने पार्टी छोड़ दी। पार्टी छोड़ते हुए सिकंदर ने कहा कि हमने दो दशक तक सपा में काम किया है। सपा अध्यक्ष कायर की तरह पीठ दिखाने का काम कर रहे हैं। मुस्लिमों की उपेक्षा की जा रही है।
सुल्तानपुर के नगर अध्यक्ष कासिम राईन ने भी अपने सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव को मुसलमानों पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने में कोई रुचि नहीं है। सपा सरकार में दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री रहे इरशाद खान ने 16 अप्रैल को पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव पर मुसलमानों की अनदेखी करने का आरोप लगाया। इरशाद ने कहा कि मुसलमान हमेशा से समाजवादी पार्टी के साथ रहा है लेकिन उसे सत्ता और संगठन में भागीदारी नहीं मिल पाई। पार्टी छोड़ने वाले ज्यादातर नेताओं का कहना था कि चुनाव में मुस्लिमों ने एकजुट होकर समाजवादी पार्टी के लिए वोट किया लेकिन सपा के यादव वोटर्स ही पूरी तरह से उनके साथ नहीं आए। इसके चलते चुनाव में हार मिली। इसके बाद भी मुस्लिमों से जुड़े मुद्दों पर अखिलेश का नहीं बोलना नाराजगी को बढ़ा रहा है। कभी समाजवादी पार्टी के सुपर थ्री नेताओं में गिने जाने वाले आजम खां तक गुस्से में थे लेकिन अखिलेश को तो मानो किसी की नाराजगी की परवाह ही नहीं थी। पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद कुंवर रेवती रमण सिंह भी अखिलेश यादव से नाराज चल रहे हैं। रेवती रमण और अखिलेश के बीच मनमुटाव की खबर पहले भी सामने आई थी लेकिन यह मनमुटाव उस समय और तेज हो गया जब अखिलेश ने उनकी जगह पूर्व कांग्रेसी नेता कपिल सिब्बल को राज्यसभा भेज दिया था। रेवती रमण सिंह आठ बार के विधायक दो बार लोकसभा के सांसद और वर्तमान में राज्यसभा के सांसद हैं। 2004 में उन्होंने बीजेपी के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी को हराया था। रेवती की गिनती मुलायम के करीबी नेताओं के रूप में होती थी।
खैर, हाल में अखिलेश की सियासत में आए बदलाव की बात की जाए तो थोड़ा ही समय बीता होगा जब समाजवादी पार्टी नेतृत्व और अखिलेश यादव से आजम खान की नाराजगी की खबरें सुर्खियों में रहा करती थीं। सीतापुर की जेल में रहने के दौरान अखिलेश कभी आजम खान से मिलने नहीं गए। बाहर आने के बाद आजम भी इशारों ही इशारों में अखिलेश पर निशाना साधते रहे लेकिन अखिलेश ने आजम पर चुप्पी साधे रखी। अखिलेश और आजम के बीच बढ़ती दूरियां यूपी की सियासत में बड़ा मुद्दा बनीं। फिर भी अखिलेश इन चीजों की परवाह करते नहीं दिखे लेकिन रामपुर और आजमगढ़ लोकसभा उप-चुनाव में सपा को मिली हार ने अखिलेश को आईना दिखा दिया। अखिलेश अपनी सियासी रणनीति बदलने को मजबूर हो गए।
पिछले कुछ दिनों से समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने मुसलमानों और आजम खान के मुद्दे पर मुखर होकर बोलना शुरू कर दिया है। मदरसों का सर्वे वक्फ बोर्ड की संपत्ति की जांच या पीएफआई के खिलाफ कार्रवाई सब पर अखिलेश मुखर होकर मोदी-योगी सरकार पर हमलावर हैं। इसी मानसून सत्र में अखिलेश ने विधानसभा में भी आजम की यूनिवर्सिटी की जांच का मुद्दा उठाया था। करीब एक दर्जन विधायकों के साथ राजभवन पहुंचकर उन्होंने आजम खान के मसले पर राज्यपाल आनंदी बेन पटेल को ज्ञापन सौंपा था। राजभवन से निकलने के बाद अखिलेश ने बताया कि उन्होंने राज्यपाल से इस मामले में दखल देने और आजम खान को इंसाफ दिलाने की मांग की है।
देखा जाये तो पिछले विधानसभा चुनाव और उसके बाद आजमगढ़-रामपुर लोकसभा उपचुनाव में हार के बाद अखिलेश यादव ने अपनी रणनीति में कई बदलाव किए हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि दरअसल अखिलेश ने यह समझ लिया है कि उन्हें 2024 के लोकसभा चुनाव और यूपी में 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव तक पार्टी को भाजपा से मुकाबले के लिए तैयार रखना है तो फिर पार्टी में पूरी तरह एकजुटता कायम करनी होगी। इसी क्रम में उन्होंने पार्टी के पुराने नेताओं और सिपहसलारों को नए से सिरे जोड़ने की कवायद शुरू कर दी है। पिछले दिनों आजमगढ़ जाकर जेल में बंद रमाकांत यादव से मुलाकात करना और लगातार आजम खान का मुद्दा उठाना इसी रणनीति का हिस्सा है। इधर रामपुर में जौहर विश्वविद्यालय से दीवार तोड़कर बड़ी संख्या में किताबें निकाले जाने और जमीन की खुदाई कर सफाई की मशीनें निकाले जाने की खबरें आईं तो सपा एक बार फिर एक्टिव हो गई है। विधानसभा में आजम खान का मुद्दा उठाते हुए अखिलेश यादव ने कहा था कि यूनिवर्सिटी की जांच तो ऐसे हो रही है जैसे कोई बम रख दिया हो। पिछले दिनों अखिलेश यादव ने आजम खान के अस्पताल से डिस्चार्ज होने पर दिल्ली जाकर भी उनसे मुलाकात की थी। अखिलेश के निर्देश पर कुछ समय पहले पश्चिमी यूपी के दौरे पर गए सीएम योगी आदित्यनाथ से भी आजम को लेकर पार्टी सांसद एचटी हसन की अगुवाई में सपा नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल मिला था।