बनारस में गंगा नदी के सकरमाउथ कैट फिस मिलने के बाद बगहा के नारायणी नदी की शाखा हरहा नदी में मिली सकरमाउथ कैटफिश मछली ने लोगों को हैरत में डाल दिया है। बुधवार को बनचहरी गांव के समीप हरहा नदी में मछली मारने के दौरान मछुआरे के जाल में यह मछली फंस गई। यह अजीबोगरीब मछली मिलने के बाद मछली को देखने के लिए लोगों का तांता लग गया।
वाल्मिकी टाइगर रिजर्व यानी VTR के साथ काम करने वाले संस्था डब्ल्यूटीआई और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के विशेषज्ञ इस मछली को देखकर हैरत में हैं। नदी के सामने एक नया संकट मछली के रूप में आया जो यहां से कई हजार किलोमीटर दूर दक्षिण अमेरिका की अमेजन नदी में पाई जाती है। मछली का नाम है सकरमाउथ कैटफिश है।
15000 किमी दूर अमेजन में मिलती है
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के एरिया कोऑर्डिनेटर कमलेश मौर्या ने बताया कि यह चिंता का विषय है क्योंकि यह मांसाहारी है। चंपारण में बहने वाली नदियों के लिए यह खतरनाक है। मछली हरहा नदी में मिली है। लेकिन इसका घर भारत की नदियां नहीं। बल्कि यहां से हजारों किलोमीटर दूर अमेरिका की अमेजन नदी में है। बावजूद इसके यह मछुआरों के जाल में फंस कर इस बात की तस्दीक कर दी है कि अब इसका बसेरा स्थानीय नदियों में भी बनने लगा है। जिससे पर्यावरणविद चिन्तित हो गए हैं।
पर्यावरण से जुड़े लोग जता रहे हैं चिंता
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के एरिया कोऑर्डिनेटर कमलेश मौर्य और डब्ल्यूटीआई के सुब्रत लेहरा ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि यह मछली मांसाहारी है और अपने इकोसिस्टम के लिए खतरा भी है। अजीब से मुंहवाली मछली साउथ अमेरिका के अमेजॉन नदी में हजारों किलोमीटर दूर पाई जाती है। इन लोगों ने दावा किया है कि स्थानीय नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र का मछली विनाश कर सकती है।
आखिरकार हजारों किलोमीटर दूर मछली कहां से पहुंची
अब लोगों के अंदर सवाल उठ रहा है कि आखिर हजारों किलोमीटर दूर साउथ अमेरिका के अमेजॉन नदी में पाई जाने वाली यह मछली बिहार में कैसे पहुंच गई। इस बाबत कमलेश मौर्या ने बताया कि यह मछली अपनी अलग पहचान के वजह से लोग इसे एक्योरियम में पालते हैं। लेकिन एक्यूरम में काफी छोटी होती है। जबकि एक नदी में इसका आकार बढ़ गया है।
केवल मांसाहारी है ये मछली
हो सकता है कि किसी ने एक्यूरम से छोड़ा हो और इसका आकार धीरे-धीरे बढ़ गया हो। परिस्थितिकी तंत्र के लिए बहुत बड़ा खतरा इसलिए है क्योंकि यह मछली मांसाहारी है और आसपास के जीव-जंतुओं को खाकर जिंदा रहती है। इस वजह से यह किसी महत्वपूर्ण मछली या जीव को पनपने नहीं देती है। इस लिहाज से यह बिहार के नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बड़ा खतरा है।