उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ की छवि योगी से अधिक जननायक वाले नेता की बनती जा रही है। योगी राज में जनता की समस्याओं का समाधान जिस तेजी से हो रहा है पूर्व की सरकारों में ऐसा होते नहीं देखा गया है। जनता की समस्याएं लाल फीताशाही में फंस कर रह जाती थीं। ऐसा इसलिए होता था क्योंकि अधिकारियों की जनता के काम के प्रति कोई रुचि नहीं रहती थी। अधिकारियों के इस रवैये के कारण कई सरकारों को सत्ता तक से हाथ छोना पड़ गया लेकिन नौकरशाही ने अपना रवैया नहीं बदला। ब्यूरोक्रेट्स का कुछ ऐसा रवैया योगी राज में भी देखने को मिल रहा था लेकिन योगी ने ऐसे अधिकारियों की नकेल कसने से गुरेज नहीं की। ऐसे अधिकारियों को चाहे वह जितना भी पॉवरफुल हो अब साइड लाइन किया जा रहा है। यह सिलसिला योगी-2 की सरकार में और तेज हो गया है। सभी प्रकार की जनसमस्याओं को मौके पर निस्तारित करने को वरीयता देने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अब सुस्त पड़े अफसरों के पेंच कसने में लगे हैं। मुख्यमंत्री कार्यालय उन जिलों पर विशेष नजर रखे हुए है जहां से सबसे अधिक लोग मुख्यमंत्री के जनता दरबार में पहुंचते हैं। यह माना जाता है कि जिलों से शिकायत लेकर लोग इसीलिए लखनऊ आते हैं क्योंकि उनकी शिकायत का निपटारा जिले में नहीं हो पाता है। जनता दर्शन में तमाम जिलों से आए लोगों के आधार पर ही यह तय किया जाता है कि किस जिले का अधिकारी अपना काम कितनी लापरवाही से कर रहा है। ऐसे अधिकारियों को महत्वपूर्ण पदों से हटाने या फिर सजा के तौर पर उनका निलंबन भी किया जा रहा है। कई लापरवाह नौकरशाहों की बर्खास्तगी या सेवा समाप्ति के लिए केन्द्र को भी लिखा गया है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा 16 सीनियर आइएएस अफसरों का तबादला करने के बाद अब उनके निशाने पर वह 73 अफसर हैं जो जनसमस्याओं के निस्तारण में कम रुचि ले रहे हैं। इन अधिकारियों को नोटिस दे दिया गया है। सीएम योगी आदित्यनाथ के तेवर सख्त देख माना जाता है कि इनमें से भी अधिकांश अधिकारियों का कार्यक्षेत्र बदला जाना तय है। सीएम योगी आदित्यनाथ के निशाने पर पांच कमिश्नर के साथ दस जिलाधिकारी भी है जो सीधा जनता की समस्या को निरस्तारित करने के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं। इसके साथ ही कानून-व्यवस्था के कार्य में ढीला रवैया अपनाने वाले तीन एडीजी और पांच आइजी भी सीएम योगी आदित्यनाथ के रडार पर हैं।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जनता की समस्याओं के तुरंत निस्तारण को अपनी शीर्ष प्राथमिकता में रखे हैं। इसके बाद भी अधिकारियों को इससे कोई लेना-देना नहीं है। जिलों में थाने और तहसील की बात क्या की जाए शासन स्तर पर बैठे विभागाध्यक्ष मंडलायुक्त जिलाधिकारी एडीजी आइजी और एसएसपी की लंबी सूची है जो जनसमस्याओं के निस्तारण में बाधक साबित हुए हैं। मुख्यमंत्री के जनता दरबार में जिलों की समस्या अधिक आने पर अधिकारियों को चेता चुके सीएम योगी आदित्यनाथ अब बड़ा कदम उठाने जा रहे हैं।
जनता की शिकायतों के निस्तारण पर मुख्यमंत्री कार्यालय से पैनी नजर रखी जा रही है। समन्वित शिकायत निवारण प्रणाली (आइजीआरएस) और सीएम हेल्पलाइन (1076) पर आने वाली शिकायतों के आधार पर विभागों की रैंकिंग जारी की जाती है। जिन विभागों में शिकायतें ज्यादा लंबित रहती हैं उसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों की पूरी रिपोर्ट तैयार की जा रही है। ऐसी ही जुलाई की रिपोर्ट तैयार हुई है जिसमें शासन से लेकर थाना-तहसील स्तर के अधिकारी मुख्यमंत्री के रडार पर आ गए हैं। सरकारी प्रवक्ता ने बताया कि इस रिपोर्ट के आधार पर शासन स्तर के दस विभागाध्यक्षों पांच मंडलायुक्तों दस जिलाधिकारियों पांच विकास प्राधिकरण उपाध्यक्षों पांच नगरायुक्तों और दस तहसीलों को नोटिस जारी किया गया है। इसी तरह पुलिस विभाग में तीन एडीजी पांच आइजी-डीआइजी एसएसपी और एसपी सहित थानों से भी स्पष्टीकरण मांगा गया है।
नाराज मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जनसमस्या के निस्तारण में रुचि ना लेने वाले इन सभी 73 अधिकारियों से स्पष्टीकरण तलब कर लिया है। इसमें से कई का संतोषजनक जवाब न मिलने पर कार्रवाई का चाबुक चलना लगभग तय है। मुख्यमंत्री ने जनसुनवाई पोर्टल पर जनसमस्याओं के निस्तारण में हीलाहवाली करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। सूत्र बताते हैं जिन विभागों का प्रदर्शन सबसे खराब माना जा रहा है उसमें नियुक्ति कार्मिक आयुष प्राविधिक शिक्षा कृषि विपणन अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास आवास एवं शहरी नियोजन व्यावसायिक शिक्षा नमामि गंगे ग्रामीण जलापूर्ति पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन आदि विभाग शामिल हैं। कहा जा रहा है कि उक्त विभाग में तमाम अधिकारियों की जनता की समस्याओं के तुरंत समाधान में कम या जरा भी रुचि नहीं दिख रही है। ऐसे अधिकारी जनसमस्याओं के निस्तारण में बाधक साबित हुए हैं।
विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश सरकार ने गत दिवस जब बहुप्रतीक्षित प्रशासनिक फेरबदल किया तो कई दिग्गज नौकरशाहों के नीचे से जमीन खिसक गई। सरकार ने पुराने दिग्गजों की जगह नए चेहरों को मौका देकर साफ संकेत दिया है कि सरकार में काम करने वालों को ही मौका मिलेगा। सेवानिवृत्त अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश अवस्थी की विदाई के साथ ही शासन में हुए बदलाव ने लखनऊ से लेकर दिल्ली तक हलचल मचा दी। मंत्रियों और उप मुख्यमंत्री से अदावत रखने वाले अफसरों को साइड लाइन कर स्पष्ट कर दिया गया है कि सरकार की छवि और जनता से जुड़े मामलों में जीरो टॉलरेंस की नीति पर काम होगा। एमएसएमई सूचना और खादी एवं ग्रामोद्योग विभाग के एसीएस नवनीत सहगल को खेलकूद विभाग में भेजना और राज्यपाल के अपर मुख्य सचिव महेश गुप्ता को मुख्य धारा में वापस लाकर ऊर्जा जैसे महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी देना शासन सत्ता और राजनीति के गलियारे के लिए चौंकाने वाला रहा।
जानकारों का मानना है कि भले ही प्रमुख सचिव और अपर मुख्य सचिव स्तर के नौकशाहों की तबादला सूची रातोंरात जारी हुई हो लेकिन इसकी तैयारी करीब एक महीने पहले से की जा रही थी। अवस्थी को सेवा विस्तार नहीं मिलने की स्थिति में उनका गृह गोपन विभाग किसी विश्वासपात्र और ऐसे अधिकारी को दिया जाना था जो पुलिस से समन्वय कर मुख्यमंत्री की अपेक्षाओं को पूरा कर सके। करीब तीन वर्ष से मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव के रूप में काम कर रहे संजय प्रसाद को इसके लिए सबसे योग्य अफसर माना गया। कृषि उत्पादन आयुक्त की ओर से ग्राम्य विकास विभाग के कामकाज में दिलचस्पी नहीं लेने की जानकारी सत्तारुढ़ दल के विधायक सांसद और सरकार के मंत्री भी दे रहे थे। सूत्रों के मुताबिक उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी मनोज कुमार सिंह के कामकाज से खास संतुष्ट नहीं थे। लिहाजा सरकार ने एपीसी से ग्राम्य विकास विभाग लेकर कामकाज को लेकर सख्त छवि के अफसर डॉ. हिमांशु कुमार को ग्राम्य विकास विभाग में तैनात किया है। हाथरस कांड के बाद अपर मुख्य सचिव नवनीत सहगल की सूचना एवं जनसंपर्क विभाग में वापसी हुई थी। उनके कामकाज से भी सरकार संतुष्ट नहीं थी लिहाजा उन्हें हटाकर खेलकूद जैसे छोटे महकमे में भेजा गया है। ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट से पहले सहगल को मुख्य धारा से हटाने के निर्णय के अलग-अलग मायने निकाले जा रहे हैं।