इतिहास के पन्नों पर 2 सितम्बर की तारीख भारतीय नौसेना के लिए स्वर्णाक्षरों में अंकित हो जाएगी क्योंकि 2 सितम्बर 2022 को नौसेना को स्वदेश में निर्मित देश का अपना पहला स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर मिल गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देश के इस पहले स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रांत को नौसेना को सौंप दिया गया है। इस मौके पर उन्होंने नए नौसेना ध्वज का भी अनावरण किया जो छत्रपति वीर शिवाजी को समर्पित है जिनकी समुद्री ताकत से दुश्मन कांपते थे। नए ध्वज के बारे में प्रधानमंत्री का कहना है कि नौसेना के झंडे पर अभी तक गुलामी की तस्वीर थी जिसे अब हटा दिया गया है और नया ध्वज नौसेना के बल और आत्मसम्मान को बल देगा। इसमें पहले नौसेना के ध्वज में लाल क्रॉस का निशान होता था जिसे हटाते हुए ध्वज में अब बायीं ओर तिरंगा तथा दायीं ओर अशोक चक्र का चिह्न अंकित किया गया है और इसके नीचे लिखा है शं नो वरुणः यानी वरुण हम सबके लिए शुभ हों।
आईएनएस विक्रांत के समुद्र में जलावतरण के अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी का इस विमानवाहक पोत के बारे में कहना था कि यह सशक्त भारत की शक्तिशाली तस्वीर है और यह बताता है कि मन में ठान लो तो कुछ भी असंभव नहीं है। दरअसल एक ओर जहां भारत का चीन के साथ लंबे समय से सीमा विवाद जारी है वहीं दूसरी ओर रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से वैश्विक स्तर पर तेजी से समीकरण बदल रहे हैं ऐसे में भारत के लिए रक्षा के हर मोर्चे पर ताकतवर बनना आज समय की सबसे बड़ी मांग है और कहना गलत नहीं होगा कि नौसेना के बेड़े में आईएनएस विक्रांत के शामिल होने के बाद समंदर में भारत की ताकत में कई गुना वृद्धि हो गई है। विक्रांत को लेकर प्रधानमंत्री का कहना है कि आईएनएस विक्रांत ने भारत को नए भरोसे से भर दिया है और यह न केवल भारत के लिए खास है बल्कि गौरवमयी भी है और यह केवल एक वारशिप नहीं है बल्कि समंदर में तैरता शहर है जो 21वीं सदी के भारत के कठिन परिश्रम कौशल और कर्मठता का प्रमाण है।
स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रांत का निर्माण कर भारत आज उन देशों की सूची में शामिल हो गया है जो अपनी तकनीक से ऐसे बड़े एयरक्राफ्ट कैरियर बना सकते हैं। भारत से पहले यह क्षमता दुनिया के केवल पांच देशों अमेरिका रूस चीन फ्रांस और इंग्लैंड में ही थी। भारत के पहले विमानवाहक पोत का नाम आईएनएस विक्रांत था और उसी को श्रद्धांजलि देने के लिए ही भारत के पहले स्वदेशी विमानवाहक पोत का नाम भी आईएनएस विक्रांत ही रखा गया है। पुराना आईएनएस विक्रांत ब्रिटेन से खरीदा गया युद्धपोत था जिसे भारतीय नौसेना में 4 मार्च 1961 में कमीशन किया गया था जिसने 1971 की जंग में अपने सीहॉक लड़ाकू विमानों से बांग्लादेश के चिटगांव कॉक्स बाजार और खुलना में दुश्मन के ठिकानों को तबाह कर दिया था। 31 जनवरी 1997 को उसे नौसेना से रिटायर कर दिया गया था और 25 साल से भी ज्यादा लंबे अंतराल के बाद एक बार फिर से आईएनएस विक्रांत का पूर्ण स्वदेशी अवतार में पुनर्जन्म हुआ है।
45 हजार टन के डिस्प्लेसमेंट वाला आईएनएस विक्रांत 52 किलामीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से समंदर में दौड़ सकता है। कोचीन शिपयार्ड में निर्मित किए गए आईएनएस विक्रांत की लंबाई 860 फीट बीम 203 फीट गहराई 84 फीट और चौड़ाई 203 फीट है। इसके ऊपर 30 से 35 विमानों को तैनात किया जा सकता है। बराक मिसाइलों से लैस इस एयरक्राफ्ट कैरियर पर ब्रह्मोस जैसी सुपरसोनिक मिसाइलों को भी तैनात किया जा सकता है जिसके लिए इंटीग्रेशन का कार्य किया जा रहा है। आईएनएस विक्रांत वास्तव में स्वदेशी सामर्थ्य स्वदेशी संसाधन और स्वदेशी कौशल का प्रतीक है। 20 हजार करोड़ रुपये की लागत से 76 फीसदी स्वदेशी उपकरणों से निर्मित दो फुटबॉल ग्राउंड के बराबर आईएनएस विक्रांत मौजूदा समय में देश का दूसरा एयरक्राफ्ट कैरियर है। इससे पहले विदेश से खरीदा गया आईएनएस विक्रमादित्य नौसेना के जंगी बेड़े में शामिल है। आईएनएस विक्रांत 20 मिग-29 फाइटर जेट्स ले जाने में सक्षम है और यह हिंद महासागर में भारतीय नौसेना का दबदबा बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इस एयरक्राफ्ट कैरियर की स्ट्राइक रेंज 1500 किलोमीटर है जबकि इसकी सेलिंग रेंज 15 हजार किलोमीटर है। यह दुश्मन के एयरक्राफ्ट्स मिसाइलों और फाइटर जेट्स को मार गिराने की अद्भुत क्षमता रखता है। 1.1 लाख हॉर्सपावर की ताकत देने के लिए इसमें जनरल इलेक्ट्रिक टरबाइन लगाए गए हैं। आईएनएस विक्रांत में 14 डेक्स का निर्माण किया गया है जिनमें विमानों के साथ ही 1700 से ज्यादा क्रू मेंबर्स की तैनाती की जा सकती है। इस एयरक्राफ्ट कैरियर में मैस जिम अस्पताल के अलावा विमानों में होने वाली छोटी-मोटी मरम्मत किए जाने जैसी सुविधाएं भी हैं। इसमें जितनी बिजली पैदा होती है जिससे पांच हजार घरों को रोशन किया जा सकता है। इसमें 76 एमएम की 4 ओटोब्रेडा ड्यूल पर्पज कैनन और 4 एके630 प्वाइंट डिफेंस सिस्टम गन लगाई गई हैं।
चीन के फुजियान एयरक्राफ्ट कैरियर को चीन का सबसे ताकतवर एयरक्राफ्ट कैरियर माना जाता है और अगर भारत के आईएनएस विक्रांत की उससे तुलना करें तो यह चीनी एयरक्राफ्ट कैरियर को कड़ी टक्कर देने में सक्षम है। फुजियान एयरक्राफ्ट कैरियर की लंबाई 300 मीटर और चौड़ाई 78 मीटर है जबकि उसका डिस्प्लेसमेंट 80 हजार टन है जो चीन के पुराने एयरक्राफ्ट कैरियर्स लियाओनिंग और शैनडोंग के मुकाबले बड़ा है। इन एयरक्राफ्ट कैरियर में डीजल गैस टरबाइन इंजन लगे हैं। अमेरिकी युद्धपोतों की तर्ज पर फुजियान में कैटापॉल्ट एसिस्टेड टेक ऑफ अरेस्टेड रिकवरी का इस्तेमाल किया गया है। फुजियान पर एक समय में 36 से ज्यादा विमानों को तैनात किया जा सकता है जबकि आईएनएस विक्रांत पर भी 30 से 35 विमान तैनात किए जा सकते हैं। यूएस गेराल्ड आर फोर्ड अमेरिका का सबसे आधुनिक विमानवाहक पोत है जिसे 22 जुलाई 2017 को अमेरिकी नौसेना में कमीशन किया गया था। गेराल्ड आर फोर्ड 337 मीटर लंबा है जो समुद्र में 56 किलोमीटर प्रति घंटा की स्पीड से चल सकता है।
विमानवाहक पोत वास्तव में समुद्र में चलता-फिरता एक हवाई अड्डा होता है जहां से विमानों को ऑपरेट किया जा सकता है और अलग-अलग तरीके के विमान इस पोत के डेक पर उतर सकते हैं उड़ सकते हैं ईंधन भर सकते हैं। विमानों को विमानवाहक पोत पर हथियारों से लैस किया जा सकता है और समुद्र में काफी दूर तक हवाई क्षमता को बनाए रखा जा सकता है। दुश्मन के इलाके में नेवल ब्लॉकेज लगाने में भी विमानवाहक पोत बड़ा योगदान देते हैं। जहां तक आईएनएस विक्रांत की बात है तो 2009 में इसका निर्माण शुरू हुआ था और 29 अगस्त 2011 को इसका ढ़ांचा बनकर तैयार हुआ। 12 अगस्त 2013 को इसे लांच किया गया और 4 अगस्त 2021 को इसे पहली बार समुद्र में उतारा गया जिसके बाद जुलाई 2022 तक इसके सी-ट्रायल हुए। इसे बनाने के लिए स्पेशल ग्रेड स्टील भारत की स्वदेशी कम्पनी स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने बनाया है और इस एयरक्राफ्ट कैरियर के लिए कई वेपन सिस्टम तथा उपकरणों का निर्माण भारत की डिफेंस रिसर्च एंड डेवलेपमेंट ऑर्गनाइजेशन (डीआरडीओ) ने किया है। डीआरडीओ का सहयोग करने वालों में नेवल डिजाइन ब्यूरो भारत इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड सहित किर्लोस्कर एलएंडटी केल्ट्रॉन जीआरएसई और वार्टसिला इंडिया इत्यादि कुछ निजी कम्पनियां भी शामिल रही। भारतीय नौसेना में हालांकि आईएनएस विक्रांत को 2 सितम्बर 2022 को कमीशन कर लिया गया है लेकिन इसे पूरी तरह ऑपरेशनल होने में अभी जून 2023 तक का समय लग सकता है।