लखीमपुर हिंसा: मां का दर्द- बेटे की मौत के 45 लाख बहू ले गई दो बेटियां शादी को बैठी

लखीमपुर हिंसा: मां का दर्द- बेटे की मौत के 45 लाख बहू ले गई दो बेटियां शादी को बैठी

जऊन पईसा मिला रहा ऊ बहू लिए चली गई। कौऊनो सहारा नाहीं देत है मांगत हैं तौ पईसा नाई देत है। कईसे हमार परिवार चलै सामने दू दू सयानी लड़की बईठी हैं। भगवान कईसे इनकर शादी करी कईसे कर्जा देई कईसे अपन घर चलाई कमवइया नाई रह गवा दू सौ रुपिया मजूरी मा का करी।ये शब्द हैं उस मां के जिसने आज से ठीक 1 साल पहले अपने बेटे और घर के इकलौते कमाने वाले को खो दिया था। लखीमपुर हिंसा भले ही लोगों के दिल और दिमाग से उतर गई हो लेकिन ये परिवार आज भी उसका दर्द झेल रहा है। इस हिंसा में श्याम सुंदर को भीड़ ने पीट पीटकर मार डाला था। लेकिन उनका परिवार उस दिन से लेकर आज तक रोज तिल तिल मर रहा है। लखीमपुर हिंसा की आग अब शांत हो गई है। मामला कोर्ट कचहरी के चक्कर काट रहा है। 1 साल का समय बीत गया है लेकिन श्याम सुंदर का परिवार आज भी उस दिन को भुला नहीं पाया है।श्याम सुंदर के घर में दो बहनें एक बीमार पिता एक मां और दो छोटे भाई हैं। जब भास्कर की टीम श्याम सुंदर के घर पहुंची तो उसकी मां हम लोगों को देखकर डर गईं। घर में कोई भी मर्द नहीं था। दोनों भाई मजदूरी ढूंढने निकले थे। बीमार पिता भी खेतों पर काम करने गए थे।हम लोगों को देखकर दोनों बहनें घर के अंदर चली गईं। मां फूलमती को लगा कि कोई अपने पैसे मांगने आया है। वो हाथ जोड़े हुए हमारे पास आईं और कहने लगी भइया अभी इंतजाम नहीं है। जब हमने उनको अपने बारे में बताया तब वह थोड़ा शांत हुईं।छप्पर से ढके श्याम सुंदर के घर में रहने के लिए बस एक कमरा है। महिलाओं के कपड़े भी फटे हैं जिन्हें वो छुपा रही हैं। घर के अंदर सामान के नाम पर कुछ नहीं है। बस एक पलंग है जिस पर बीमार पिता लेटते हैं। पूरा परिवार जमीन पर ही सोता है।किचन के अंदर रखे सारे बर्तन टूटे हैं। राशन के नाम पर एक डिब्बे में नमक रखा है। एक पोटली चावल की भी रखी हुई है। सिल बट्‌टे पर थोड़ा नमक बिखरा हुआ है। घर में एक पंखा तक नहीं है।श्याम सुंदर की मां फूलमती अपने बेटे का जिक्र सुनते ही फूट फूटकर रोने लगीं। रुंधे हुए गले से उसने हम लोगों से बातचीत शुरू की। मां ने बताया 3 अक्टूबर की सुबह 8 बजे मेरा बेटा चाय पीकर घर से बनवीरपुर के लिए निकला था। बेटे ने कुछ नहीं खाया था क्योंकि उसको दंगल में जाने के लिए देर हो रही थी। श्याम आशीष को बहुत अच्छे से जानता था। श्याम ने कहा था दोपहर तक वापस आ जाएगा। लेकिन शाम तक बेटे की कोई खबर नहीं आई। जहां घटना हुई थी वहां से हमारा घर 25 किलोमीटर दूर था। हमें लगा कि हो सकता है दंगल लंबा चला हो लेकिन इसी बीच पता चला कि दंगल के पास में विवाद हो गया है। मैंने बहू से बेटे को फोन करने के लिए कहा लेकिन श्याम का फोन बंद आ रहा था। मेरा दिल बैठने लगा। बेटे का पता लगाने के लिए मैं मौके पर जाने लगी। तभी खबर आई कि विवाद में श्याम को गंभीर चोट आई है। मैंने गांव के सोनू से कहा मुझे घटनास्थल पर ले चलो। मुझे अपने बेटे को देखना है लेकिन सोनू ने मुझसे माहौल खराब होने की बात कही। उसने कहा चाची तुम वहां न जाओ। मैं वहीं गांव में इधर उधर घूम कर बेटे का इंतजार करती रही। लेकिन खबर तो उसकी मौत की आई। फोन पर किसी ने बताया श्याम की मौत हो गई है।इतना बताते ही वह जोर जोर से रोने लगी।फिर खुद को संभालते हुए बोली मैं समझ नहीं पा रही थी कि अब मैं क्या बोलूं। घर से मेरी बेटियां और बहू रोते हुए आ रही थीं। उस दिन हमने अपने घर का एक और सहारा खो दिया था। मेरा एक और बड़ा बेटा बीमारी के चलते खत्म हो गया था। दूसरे दिन जब श्याम का शव गांव आया तो उसके साथ बहुत भीड़ थी। सब इंसाफ न्याय की बात कर रहे थे। कई नेता भी आए थे लेकिन मैं तो बस अपने बेटे को देख रही थी। उसके माथे पर गहरी चोट लगी थी। हाथ भी कटा हुआ था। मेरी बेटियां भाई को पकड़कर रोने लगीं। मेरी बहू की चूड़ी गांव की महिलाएं तोड़ रही थीं। उसका सुहाग मर चुका था। ये सब देखकर मन में बस यही ख्याल आ रहा था कि मेरे बेटे की जगह भगवान ने मुझे क्यों नहीं बुलाया। उस दिन आखिरी बार बेटे के सिर पर हाथ फेरा था। गांव के सभी लोग मेरे घर पर थे लेकिन फिर भी अकेलापन लग रहा था। मां ने बताया धीरे धीरे मुआवजे की बात सरकार की ओर से हुई। सरकार ने 45 लाख रुपए मुआवजा देने की बात कही। बेटे की तेरहवीं से पहले बहू को 45 लाख का चेक मिल गया। ये पैसे बेटे की कमी पूरी नहीं कर सकते थे लेकिन हां तब भी ये लग रहा था कि बेटियों की शादी हो जाएगी। लेकिन चेक मिलने के दूसरे दिन ही मेरी बहू घर से चली गई। उसने कहा वो पैसा लेकर वापस आ जाएगी लेकिन वो नहीं आई।बेटे की तेरहवीं में वो मेरी दोनों पोतियों जैन्सी 4 और अंशिका 2 को लेकर आई। वो अपने कमरे में गई और दो बैग में सारा सामान रख लिया। शाम को सारे मेहमानों के जाने पर वो भी बैग उठाकर जाने लगी। इस पर मेरी बड़ी बेटी ने उसको रोका। उनसे कहा भाभी सारा पैसा कहां है आप यहां से कहां जा रही हो ये सुनकर मेरी बहू मेरी बेटी पर चिल्लाने लगी।मां ने बताया इस पर बहू ने कहा कि कौन से पैसे मेरी दो बेटियां हैं उनको कौन पालेगा। अब तो इनका बाप भी नहीं रहा। किसी को कोई पैसा नहीं मिलेगा। इतना कहकर वो चली गई। उसके बाद से वो आज तक नहीं लौटी। श्याम के जाने के बाद घर में कोई कमाने वाला नहीं बचा। मेरे छोटे बेटे राज्यपाल और संजय ने पढ़ाई छोड़ दी। दोनों बेटियां गीता 16 और पूजा 18 भी घर पर बैठ गई हैं। दोनों छोटे बेटों ने मजदूरी करनी शुरू कर दी है। बेटियां भी काम करना चाहती थीं लेकिन इज्जत के डर से उनको बाहर नहीं भेजा। मेरे पति की हालत बहुत खराब है लेकिन मजबूरी में वो भी खेतों में काम करते हैं। साड़ी के पल्लू से आंसू पोछते हुए मां ने कहा हम लोग कई बार भूखे ही सो जाते हैं। महीने में 1 या 2 बार घर में कोई सब्जी बन जाती है। वरना रोज रोटी और नमक ही खाते हैं।वह बताती हैं रोज तो बेटों को मजदूरी मिलती नहीं है। जो भी पैसे मिलते हैं उससे मेरे पति की दवा आती है। दो बहनों की शादी तो श्याम ने कर दी थी। पता नहीं अब इन दोनों की शादी कैसे होगी। हमारा जीवन तो खत्म हो गया है। उधारी चुकाने के लिए भी हम लोग पैसे जोड़ रहे हैं। कभी कभी तो मन करता है कि जहर खाकर जान दे दें।


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x01mp3rx0z@mailto.plus, 11 December 2022

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yhfee@chitthi.in, 10 June 2023

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